इंसान की बक़ा के लिए रोटी, कपड़ा और मकान बहुत ज़रूरी हैं लेकिन उन के साथ पानी की भी अपनी अहमीयत है। रोटी, कपड़ा और मकान ना मिलने के बावजूद इंसान कुछ अर्सा तक ज़िंदा रह सकता है लेकिन पानी के बिना उस का ज़िंदा रहना मुश्किल है।
मिसाल के तौर पर अगर रोटी मिल जाए लेकिन पानी ना मिले तो निवाला हलक़ में फंसे का फंसा रह जाएगा और ऐसा निवाला पानी ना मिलने के बाइस मौत का निवाला बन जाएगा। पानी और इंसान की बक़ा का बहुत गहरा ताल्लुक़ है।
दुनिया के वजूद में आने के साथ ही इंसानों ने उन मुक़ामात के क़रीब अपनी बस्तीयां बसाईं, जहां पानी के ज़ख़ीरा बाशमोल तालाब, कुंटे वग़ैरा मौजूद थे। आबी ज़ख़ीरों के ममालिक में शहर हैदराबाद हमेशा से ख़ुश किसमत रहा।
इस शहर पर अल्लाह रब्बुल इज़्जत ने ख़ास रहमो करम फ़रमाया, जिस के नतीजे में जितने भी हुक्मरानों (सिर्फ़ शाही) ने जहां हुक्मरानी की उन्हों ने शहरीयों को साफ़ सुथरा और मीठा पानी फ़राहम करने पर ख़ुसूसी तवज्जा मर्कूज़ की, लेकिन जम्हूरीयत का सूरज तलूअ होते ही शहर के तालाब, कुंटे, झीलें, बाउलियां और कुँवें सूखने लगे यानी मुफ़ाद परस्त अनासिर ने उन आबी ज़ख़ाइर के पेट मिट्टी से भरने शुरू कर दिए और फिर उन पर बस्तीयां बसा दी गईं। इस का नतीजा ये निकला कि शहरीयाने हैदराबाद को पीने के पानी की क़िल्लत का सामना करना पड़ा।
क़ारईन, आप ने बाम रुक्नुद्दौला (रुक्नुद्दौला झील) नाम ज़रूर सुना होगा। किसी ज़माने में 104 एकड़ अराज़ी पर फैली हुई इस झील का नामो निशान तक़रीबन मिट चुका है। सब से हैरत की बात ये हैकि 19 फ़ेब्रुअरी को सिर्फ़ 24 घंटों में इस झील की 13 एकड़ 17 गुन्टे अराज़ी पर ना सिर्फ़ नाजायज़ क़ब्ज़ा कर लिया गया बल्कि उस की हिसारबंदी भी करदी गई।
शिवराम पल्ली पुलिस अकेडमी के बिलकुल रूबरू वाक़े इस झील की अराज़ी पर नाजायज़ क़ब्ज़ा किए जाने पर अवाम और समाजी जहदकारों बाशमोल आबी ज़ख़ाइर के तहफ़्फ़ुज़ में मसरूफ़ तंज़ीमों से वाबस्ता अफ़राद में काफ़ी ब्रहमी पाई जा रही है। इस शीट में सिर्फ़ इन तालाबों और झीलों के नक़्शे होते हैं जो 10 एकड़ अराज़ी से ज़ाइद रक्बा पर मुहीत हों।
बहरहाल इस तारीख़ी झील को नाजायज़ क़ाबिज़ीन के क़ब्ज़ा से बचाना अवाम और ओहदेदारों की ज़िम्मेदारी है। इस लिए सब से पहले सरकारी मह्कमाजात को सख़्त इक़दामात करने होंगे।