हैदराबाद 12 अप्रैल: आफ़ाते समावी जैसे तूफ़ान ज़लज़ले कहतसाली वग़ैरा आमाल का नतीजा होते हैं। जब गुनाहों की कसरत होती है तो अल्लाह बारिश आसमानों में रोक लेते हैं।
बारिश का ना होना ज़लज़ले तूफ़ान और ज़ालिम हुक्मराँ का मुसल्लत होना भी अल्लाह के अज़ाब में शामिल है। इन्सानों के गुनाहों की कसरत की वजह से बारिश ना होने के असरात का शिकार मासूम बच्चे जानवर चरिंद परिंद सब होने लगते हैं। अल्लाह क़ुरआन-ए-मजीद में गुनाहों से अस्तग़फ़ार का हुक्म देते हुए इरशाद फ़रमाते हैं कि जब तुम अपने गुनाहों से ताइब होगे तो आसमानों से बारिश का नुज़ूल होगा। मुल्क में जारी क़हत की सूरत-ए-हाल पर माहिरीन मौसमियात के साथ कई शोबाहयात से ताल्लुक़ रखने वाले इस बेहस में पड़ चुके हैं कि बारिश ना होने के सबब पैदा शूदा सूरत-ए-हाल से किस तरह निमटा जाये ? माहिरीन मौसमियात साईंसदानों और माहीरीन-ए-माहूलीयात से ये दरयाफ़त कर रहे हैं कि बारिश ना होने की वजूहात क्या हैं? जबकि दीने हक़ ने ये वाज़िह कर दिया है कि कहतसाली दर-हक़ीक़त अल्लाह के अज़ाब की एक शक्ल है और जब बंदा अहकाम इलहि से मुँह मोड़ लेता है तो ये अज़ाब नाज़िल होता है।
नाप तौल में कमी बे-हयाई दीन से दूरी जैसे गुनाह-ए-अज़ीम के मुर्तक़िब बंदों में जब तक एहसास-ए-नदामत पैदा नहीं होता और वो अल्लाह की बारगाह में रुजू होते हुए तौबा नहीं करते उस वक़्त तक रहमत के दरवाज़े खुलने की कोई तवक़्क़ो नहीं की जा सकती। बारिश ना होने के अज़ाब से नजात का तरीक़ा भी दीने हक़ में बता दिया गया है और सलातुला इसतिसक़ा के ज़रीये गुनाहों से अस्तग़फ़ार और रहमत वाली बारिश की दुआ की ताकीद की गई है।
हिंदुस्तान भर की कई रियासतों में कहतसाली के सबब अवाम कई मुश्किलात का सामना कर रहे हैं। हैदराबाद में बरसहा बरस से शहरीयों को सेराब करने वाले दो बड़े ज़ख़ाइर आब पूरी तरह से ख़ुशक हो चुके हैं जो ज़ख़ाइर आब शहरीयों की पानी की ज़रूरत को पूरा किया करते थे वो अब ज़मीन की मानिंद नज़र आरहे हैं।
हिमायत सागर-ओ-उसमान सागर से पानी की सरबराही का सिलसिला तो बंद हो चुका है लेकिन अगर आइन्दा मौसमे बरसात में भी रहमत ख़ुदावंदी नाज़िल नहीं होती है तो एसी सूरत में हालात इंतेहाई अबतर होजाने का ख़दशा है। देही इलाक़ों में ज़िंदगी गुज़ार रहे अवाम जिन परेशानीयों का सामना कर रहे हैं शहरी इलाक़ों में अभी इतनी तकालीफ़ का सामना नहीं है चूँकि शहरी अवाम का इन्हिसार बोरवेल पर हो चुका है लेकिन महिकमा आबरसानी-ओ-माल की तरफ से तैयार करदा रिपोर्ट इंतेहाई तशवीशनाक है चूँकि माहिरीन का कहना है कि ज़रे ज़मीन सतह-ए-आब में भी मुसलसल गिरावट रिकार्ड की जा रही है जो मुस्तक़बिल में बड़े मसाइल का सबब बन सकती है।
बारिश के ना होने और ज़ख़ाइर आब के ख़ुशक होजाने की वजूहात का जायज़ा लेने पर तवज्जा मर्कूज़ करते हुए इस मौज़ू पर सियासत करने के बजाये अगर हम अपने गुनाहों की तौबा के लिए अल्लाह से रुजू हो जाएं तो मुम्किन है के पिछ्ले महाराष्ट्रा-ओ-दुसरे रियासतों को दरपेश आबी मसाइल जैसी सूरत-ए-हाल से हम महफ़ूज़ रह सकते हैं।