रेप के गुनाहगारों के साथ नरमी न बरतें अदालतें

नई दिल्ली, 28 अगस्त: सुप्रीम कोर्ट ने मुल्क की अदालतों को मंगल के दिन आगाह किया है कि इज्तिमायी इस्म्तरेज़ि के गुनाहगारों के साथ कोई नरमी न बरतें।

आली अदालत ने साफ किया कि रेप की शिकार खातून और मुल्ज़िमो के बीच समझौते को सजा कम करने का बेस नहीं बनाया जा सकता। अदालतें गैंगरेप जैसे घिनौने जुर्म के खिलाफ पूरी इमानदारी दिखाएं।

चीफ जस्टिस पी सदाशिवम, जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई और जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने हरियाणा के नारनौल जिले में 18 साल पहले हुए गैंगरेप के मामले में फैसला देते हुए ताजिराते ए हिंद की दफा 376 (2) के कानून की खिलाफवर्जी पर अफसोस ज़ाहिर की।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गैंगरेप में कम से कम दस साल कि सजा है। लेकिन दफा 376(2) के तहत अदालतों को खुसूसी इख्तेयारात है कि वह खास हालात के मद्देनजर दस साल से कम की सजा भी दे सकती हैं।

रेप सिर्फ खातून से किया गया जुर्म नहीं है। यह पूरे समाज को घिनौना करने वाला संगीन जुर्म है। इसी वजह से पार्लियामेंट ने इस साल फौजदारी कानून (तरमीम) कानून पास किया और गैंगरेप की कम से कम सजा बीस साल कर दी।

हालांकि मौजूदा मामला नए कानून के दायरे में नहीं आता। लेकिन जुर्म और सजा के बीच तवाज़न इंसाफ का अहम पहलू है।

सुप्रीम कोर्ट ने कुबूल किया कि सजा की मुद्दत तय करना एक पेचीदा काम है। अदालतें इस मौजू पर हमेशा से मुश्किल में रही हैं। लेकिन संगीन जुर्मों के गुनहगारों से किसी तरह की हमदर्दी जताना ठीक नहीं है।

रेप के जुर्म को दोनों फरीक के बीच समझौते की बुनियाद पर निपटाया नहीं जा सकता। इस बात का ज़्यादा इम्कान रहता है कि रेपिस्ट मुतास्सिरा खातून पर दबाव डालकर उसे समझौते के लिए मजबूर करते हैं।

रेप से मुतास्सिर खातून सदमे में रहती है और मजबूर होकर दरिंदों के दबाव डालने पर समझौते के लिए तैयार हो जाती हैं |