नई दिल्ली, 26 मई: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि रेप को लेकर बने सख्त कानून का कभी-कभी ख्वातीन की तरफ से गलत इस्तेमाल करने का मामला सामने आता है। जिसमें ख्वातीन पहले अपनी मर्जी से मर्द दोस्त के साथ जिस्मानी रिश्ता कायम करती हैं, लेकिन जब यह रिश्ता टूट जाता है तो ख्वातीन रेप के झूठे मुकदमें दर्ज कराती हैं और मर्द दोस्त पर शादी का दबाव बनाती हैं। ऐसे मामलों में कानून को बतौर हथियार इस्तेमाल कर बदला लेने की मंशा छिपी होती है।
हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए अपने तब्सिरे में कहा कि रेप व रज़ामंदी से जिस्मानी ताल्लुकात बनाने में काफी फर्क होता है, जिसे समझना चाहिए।
जस्टिस कैलाश गंभीर ने कानून के गलत इस्तेमाल के मामलों पर अपने तब्सिरे में कहा कि यह साफ तौर पर कानून के साथ खिलवाड़ करना है। बेंच ने मज़कूरा तब्सिरे एक मामले की सुनवाई करते हुए दी, जिसमें एक खातून ने अपने मर्द दोस्त के साथ आपसी सहमति से जिस्मानी ताल्लुकात बनाए, लेकिन जब दोनों में आपसी तनाजे की वजह से अलगाव हो गया तो रेप का मामला दर्ज करा दिया।
अदालत ने मुल्ज़िम को जमानत देते हुए कहा कि कई मामलों में यह बात सामने आई है कि अपने मर्द दोस्त से ताल्लुकात टूटने के बाद उसके खिलाफ रेप का फर्जी मामला दर्ज करा कर मर्द दोस्त को हरासानी (harassment) किया गया। अक्सर मामले इसलिए भी दर्ज करा दिए जाते हैं, ताकि मर्द दोस्त पर शादी के लिए दबाव बनाया जा सके।
बेंच ने कहा कि अदालत को इस बात के लिए चौकन्ना रहना चाहिए कि कहीं रेप का मामला फर्जी तो नहीं है।