रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के ज़िले में पिछड़ जाति के व्यक्ति को सीएम बनाने की मांग

शम्स तबरेज़, सियासत न्यूज़ ब्यूरो।
लखनऊ: वर्ण व्यवस्था और मनुस्मृति को मानने वाली संघ को इन दिनों सवर्ण और गैर सवर्ण जातियों से नाराज़गी झेलनी पड़ सकती है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक बड़ी जीत हासिल की है, इस जीत में जितना सवर्ण कही जाने वाली जातियों का जितना बड़ा योगदान है उतना ही बड़ा योगदान पिछड़े और दलितों का है। उत्तर प्रदेश का ग़ाज़ीपुर ज़िला कई मामलों में खास है इसी ज़िले के सांसद मनोज सिंह है जो केन्द्र सरकार में रेल राज्यमंत्री और संचार प्रभार मंत्री हैं। मनोज सिन्हा का नाम इस समय सीएम कैडिडेट के तौर पर सबसे ज्यादा आ रहा है, मनोज सिन्हा भूमिहार जाति से सम्बन्ध रखते हैं जो सवर्ण जाति मानी जाती है। लेकिन दलित वर्ग की मांग ये है कि यूपी का मुख्यमंत्री एक पिछड़ी जाति के व्यक्ति को चुना जाए। कभी बहुजन समाज पार्टी का सबसे बड़ा वोटर माने वाले दलितों ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मायावती का दामन छोड़कर मोदी लहर का साथ दिया और वही हाल इस बार 2017 के विधानसभा चुनाव में हुआ जिसमें मायावती को करारे हार का सामना करना पड़ा। ठीक यही हाल पिछड़ों और मुसलमानों का भी है। कभी भाजपा का दुशमन माने जाने वाले मुसलमानों का एक बड़े वर्ग ने भाजपा को समर्थन किया है। मुस्लिम वोट पाने दावा बीजेपी भी कर रही है। लेकिन अब दलितों और पिछड़ों की ये मांग उठने लगी है कि बीजेपी यूपी के सीएम के तौर पर केशव प्रासाद मौर्य या ओमप्रकाश राजभर को चुने। लेकिन बीजेपी में सवर्ण और ऊंची जाति माने जाने वालों की संख्या बल अधिक और बीजेपी में अधिकांश की संख्या आरएसएस के स्वयं सेवकों का है ऐसे में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये होगी कि वो यूपी के मुख्यमंत्री के तौर पर किसी पिछड़े या दलित के नाम पर अपना मुहर लगाए लेकिन आरएसएस मनुस्मृति के तहत वर्ण व्यवस्था का पालन करता है और वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे और बाद में पिछड़ों व दलितों का नाम आता है। ऐसे में संघ और बीजेपी के लिए यूपी का सीएम चुनना एक टेढ़ी खीर हो सकती है। 16 मार्च को बीजेपी तय करेगी कि यूपी का सीएम कौन होगा?