रोगों में गुणकारी है-नफरत की यह शर्तिया दवा

पिछले चार साल से एक नया फैशन चल पड़ा है-नफरत फैलाने का फैशन। यह एकदम लेटेस्ट फैशन शो है और सरकार की कृपा से खूब चल पड़ा है। वैसे कोई फैशन अपने-आप नहीं चलता। पैर तो होते नहीं उसके, जो आपको बाय -बाय कहे और चल पड़े- एक अनजान सफर पर। उसे तो कार की तरह स्टार्ट करना पड़ता है और फुल स्पीड पर चलाकर कार को क्रैश होने से बचाना पड़ता है।

आप कहेंगे इसके फैशन डिजाइनर कौन हैं/ वैसे आप समझ ही गए होंगे-मेरे जितने कमअक्ल भी नहीं हैं- फिर भी आप चाहते हैं कि मैं ही बताऊं तो बता देता हूं। इसके डिजाइनरों का मुख्यालय नागपुर में है, यह वहीं बैठते हैं बल्कि बैठते कहां हैं, विराजते हैं और इसके थोक विक्रेता दिल्ली में बैठते, फिर गलत लिख गया विराजते हैं बल्कि बैठते-विराजते नहीं ,निरंतर गतिमान- चलायमान रहते हैं। उन्हें चलायमान कहना भी उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना है, क्योंकि वह तो पुष्पक विमान में सवार होकर एक दिन में कम से कम चार जगह जाते हैं,तब जाकर उन्हें संतोष होता है कि आज जय श्रीराम की कृपा से काफी ‘देशसेवा’ की, नागपुरी भगवा प्रॉडक्ट खूब मेहनत से और खूब बेचा।

जहां तक इसके स्टोर्स और फ्रैंचाइज का सवाल है, वह तो अब देशभर में हैं बल्कि गांव-गांव में हैं। यह देसी हैं न! पतंजलि प्रॉडक्ट से लगी हुई अगली दुकान अक्सर इन्हीं की होती है। इससे फायदा यह है कि इसे भी असली जड़ी-बूटियों से बना विशुद्ध देसी आयुर्वेदिक प्रॉडक्ट समझकर लोग खरीद लेते हैं। उसके बाद पछताते हैं या नहीं, इसका मार्केट-सर्वे अभी चल रहा है। अगले साल मई तक रिपोर्ट आ जाने की उम्मीद है। आप-हम जैसे ‘पश्चिमी विचारधारा’ से प्रभावित या अप्रभावित साधारण लोग सर्दी-जुकाम तक तो शहद-च्यवनप्राश आदि से काम चला लेते हैं, मगर मामला गंभीर हो, चीजें हद से गुजरने लगी हों, तो एलोपैथी ही लेते हैं, इसी कारण हम बदनाम भी हैं। यह एलोपैथी लें तो कोई हर्ज नहीं, हम -आप लें तो कहते हैं- ‘भेजो पाकिस्तान’ या ‘इसका यहीं, अभी अखलाक या पहलू खां बना दो’। गलती से अगर दया आ जाए तो ‘जय श्री राम’ उच्चारते हुए कम से कम इसका स्वामी अग्निवहश तो बना ही दो। बुजुर्ग हैं तो क्या हुआ, भगवा पहनते हैं तो भी क्या हुआ, आर्य समाजी हैं तो भी क्या हुआ, विश्व हिंदू परिषद तो नहीं हैं न! इसलिए अपवित्र हैं, नक्सली हैं, उन्हें मारो। नफरत का कोई तो ‘सुनहरा’ बहाना चाहिए। मुसलमान नहीं हो, ईसाई भी नहीं हो और दलित भी नहीं हो, ‘परिवारवादी’ भी नहीं हो, स्वामी हो तो भी क्या हुआ! हमारे वाले ‘स्वामी’ नहीं हो। जो हमारा नहीं होता, वह नक्सली होता है, कांग्रेसी दलाल होता है, वामी होता है। उसे मारना परम धर्म है। समस्त रोगों में गुणकारी है- नफरत की यह शर्तिया दवा। रोगों में ही नहीं, ‘शक्तिवर्द्धन’ में भी। ‘शक्तिवर्द्धन’ करना हो तो इसे कैप्सूल के रूप में ले लो। यह वह वाली शक्तिवर्द्धक नहीं, जो दो घंटे बाद असर करती है, यह तुरंत रिजल्ट देती है, चाहे उम्र आपकी और उसकी कुछ भी हो। इससे इतना ‘शक्तिवर्द्धन’ हो जाता है, जिंदा आदमी को मार देने का इतना साहस पैदा हो जाता है कि दिल्ली से मंत्री दौड़ा-दौड़ा उत्साहवर्द्धन करने आ जाता है- फूलमाला डालता है, जेल में मिलने आ जाता है, ‘लिचिंगवीरों’ के कष्टों से पिघलकर रोने-बिसूरने लग जाता है।

तो भाइयो-बहनो, यह नई काट के नई ड्रेस दिखाने वाला फैशन शो नहीं है, जहां मॉडल काठ की लकड़ी की तरह आती है और उसी तरह चली जाती है। यह टिकट और पासवाला फैशन शो नहीं है। यह बड़े लोगों द्वारा आयोजित वह वाला फैशन शो है, जिसके मॉडल सड़क पर मारकाट मचाकर हंसते-मुस्कराते, लड्डू बांटते हैं, विडियो बनाकर वॉट्सऐप पर डालते हैं। मूंछ न हो तो भी काल्पनिक मूंछों पर ताव देकर अपने को शिवाजी और महाराणा प्रताप समझते हैं। यह फैशन शो एक शाम का फैशन शो नहीं है। यह हिंदुस्तान को लिंचिस्तान बनाने का, विश्व गुरु बनाने का शो है।

लेखक: विष्णु नागर

(डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं)
स्रोत: नवभारत टाइम्स