रोजना डेढ़ किलो रेत खाकर भी सेहतमंद हैं ये ज़ईफ खातून

40 साल से हर दिन एक से डेढ़ किलो रेत खाकर भी 93 साल की सुदामा देवी पूरी तरह से सेहतमंद हैं। रेत खाने वाली ये ज़ईफ खातून लोगों के लिए हैरत बनी हुई हैं।

जिला हेडक़्वार्टर से 16 किमी. दूर विकासखंड निगोही में गांव कजरी नूरपुर में सुदामा देवीअपने छोटे पुत्र के साथ रहती हैं। आमतौर पर हमल के दौरान ख्वातीन को मिट्टी वगैरह खाने की खाहिश जाग जाती है, जो औलाद की पैदाइश के बाद खत्म हो जाती है।

लेकिन सुदामा देवी को हमल के दौरान रेत खाने की जो लत लगी वो आज तक नहीं छूटी। सुदामा का मायका विकासखंड सिंधौली में है। सुदामा कॊ दस बच्चे हुए। इनमें से शुरुआती पांच की जचगी के दौरान मौत हो गई। बड़ा बेटा प्रेम कुमार 50 साल का है तो लल्लन 40 और छोटा रामकुमार 28 साल का। पूरा खानदान कर गुजर बसर करता है।

सुदामा ने बताया कि लल्लन जब पेट में थे, तभी अचानक घर की भट्टी में दहक रही रेत को खाने का मन हुआ। शुरूआत आधा किलो से हुई, जो आज एक-डेढ़ किलो तक पहुंच गई है। वह बताती हैं कि रेत न मिलने पर कुछ खाने का मन ही नहीं होता। किसी काम में मन ही नहीं लगता। सुदामा रेत खाने के साथ ही भोजन में चार मोटी-मोटी रोटियां भी लेती हैं। पहले वह घटिया घाट की गंगा से रेत भरकर ले आती थीं।

बाद में गांव के लोग भी उनके लिए बतौर सौगात में रेत लाने लगे। सुदामा की पीठ झुक गई है, लेकिन रेत खाने से सेहत पर कोई खराब असर नहीं पड़ा और न ही कभी पेट में दर्द या किसी बीमारी को लेकर डॉक्टर के पास जाना पड़ा। बताया जाता है कि रेत का ज़ायका उनको दाल-चावल जैसा मज़ेदार लगता है।

शौहर हेमराज डेढ़ साल पहले गुजर गए। डॉ. अनूप अग्रवाल ने बताया कि इसका साइंटिफिक रीजन नहीं हो सकता है। बहुत से लोग कांच, लोहा खाते हैं, लेकिन कोई नुकसान नहीं होता है। जबकि आम शख्स इस तरह की चीज खाए तो मौत यकीनन है। यह एक आदत से ज़्यादा कुछ नहीं है।