रोजेदारों से रोजे का कलाम

मैं माहे सियाम हूं और मेरी इल्मियत में यह बात है कि आप मेरी फजीलत, फलसफे और फैज व बरकत के बारे में उलेमा की वसातत से वाकफियत हासिल करते रहते हैं लेकिन मैं आज आप से पूछना चाहता हूं कि मुख्तलिफ पेशों से ताल्लुक रखने वाले आप मुसलमान सहरी करने और फिर नमाजे फजिर की अदाएगी के बाद जब रिज्क की तलाश में हर सिम्त चीटियों की तरह फैल जाते हैं तो क्या आप हर रोजे के इख्तिताम यानी इफ्तार तक रोजेदार ही साबित होते हैं या नहीं।

मिसाल के तौर पर सुबह-सवेरे जब एक रोजेदार गैर सरकारी, नीम सरकारी या सरकारी मुलाजिम अपने दफ्तर पहुंच जाता है तो क्या उसके इंतेजार में खड़े मुस्लिम या गैर मुस्लिम साइल की फाइल को बिला किसी ताखीर के तकमील तक पहुंचाता है। अगर वह किसी जातियात, खास मफाद या माद्दी फायदे के लिए फाइल को रोके रखकर साइल को परेशान करता है तो क्या वह गैर सरकारी, नीम सरकारी या सरकारी मुलाजिम उस दिन रोजे से था या यूं ही इफ्तार करने वालों की सफ में बैठ गया?

एक ऐसा रोजेदार काहिल वालिद जो स्कूल भेजने के बदले अपने छोटे-छोटे बच्चों को माद्दी मकासिद के लिए मुख्तलिफ बाजारों में माल बेचने के लिए भेज देता है और खुद मस्जिद में सिर्फ नमाजों और सियासत पर बहस व मुबाहिसे में मशगूल रहता है क्या वह दिन भर रोजे से था? एक ऐसा बेटा जो अपनी कुंवारी बहनों और बूढ़े वाल्दैन को बिल्कुल भूलकर किसी दूसरी जगह बीवी बच्चों के साथ रहकर रोजादार रहा क्या उसका रोजा वाकई रोजा था? अपने शौहर को मरऊब करने वाली ऐसी बीवी जिसकी सास या ससुर का मकाम अपने ही घर में नौकरो से भी बदतर बना दिया गया हो तो क्या ऐसी बहू दिन भर रोजा से थी?

ऐसा शौहर जो सहरी करने के दौरान भी बीवी की वजह से अपनी बूढ़ी मां के हक में आवाज नहीं उठाता है बल्कि दबा हुआ रहता है क्या वह इफ्तार की घड़ी का इंतेजार कर सकता है? बहू के खिलाफ हीले-बहाने ढूंढ कर उसे जेहनी अजीयतें पहुंचाने वाली रोजेदार सास क्या रोजे से हो सकती है?

एक ऐसा रोजादार शौहर जो अपनी बीवी को एक कमजोर चीज समझ कर उसके हर काम की नुक्ताचीनी करे और नून में नुक्ता निकाल कर उसे तंग करता रहे क्या वह रोजेदार शौहर बड़े फख्र के साथ इफ्तार कर सकता है?

मैं माहे मुबारक हूं मेरे लिम्स को छूने की कोशिश करो मेरी मेहमान नवाजी करना बड़ा नाजुक मरहला है। क्या ऐसे वाल्दैन भी दिन भर रोजे से थे जो थोड़ा सा वक्त न निकाल कर अपनी नाबालिग या बालिग औलादो को सच्चाई और ईमानदारी की बरकत के अलावा बुजुर्गों का एहतराम करना सिखाने के लिए अपने फर्ज को नजरअंदाज करते रहे?

बीवी-बच्चों को छोड़कर उन्हें जमीन जायदाद से महरूम रखने वाला शौहर और बाप कैसे रोजेदारों में शामिल होगा?

नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है कि तिजारत में इस हद तक मुनाफा हासिल करो कि तुम्हारा गुजारा चल सके लेकिन जब तिजारत से ताल्लुक रखने वाला यही रोजेदार ताजिर खरीदार से दस-बीस क्या सौ सौ गुना मुनाफा कमाने की ताक में रहता हो तो क्या वह ताजिर रोजेदारों में शामिल रहा या उसने अपने घर में यूं ही इफ्तार का एहतमाम किया?

इसी तरह एक रोजेदार राहगीर किसी पुल की चढ़ाई पर किसी मुस्लिम व गैर मुस्लिम कमजोर बूढ़े मजदूर को माल से लदी रेड़ी को पुल की चढ़ाई के इख्तेताम तक पहुंचाने में हाथ बटाने को नजर अंदाज करके आगे निकल जाए तो क्या उस राहगीर का उस दिन का रोजा अल्लाह के हुजूर में कुुबूल होगा।

इसी तरह एक कांट्रैक्टर सुबह को सहरी करने के बाद जब किसी प्राइवेट या सरकारी इमारत या किसी दीगर तामीराती काम को तकमील तक पहुंचाने के लिए निकल पड़ता है तो क्या वह अपने काम के दौरान मजकूरा इमारत या किसी दीगर तामीरी काम के दौरान बेईमानी से काम लेकर इमारत की तामीर में मिलावटी मैटेरियल इस्तेमाल करने के बाद रोजेदार रहा या यूं ही बड़ी बेसब्री के साथ इफ्तार के वक्त का इंतजार करता रहा और इसकी निगरानी करने वाला रोजेदार इंजीनियर भी क्या एक सही रोजेदार की ही तरह अपने घर में या मस्जिद में पहुंच कर रोजा खोल सकता है?

इसी तरह एक गाड़ी चलाने वाला रोजेदार ड्राइवर जब सुबह को मुसाफिरों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के काम में जुट जाता है और वह एक माजूर मर्द या खातून के इलावा एक ऐसी खातून के हाथ हिलाने के बावजूद गाड़ी नहीं रोकता जिस खातून के साथ दो तीन छोटे बच्चे होते हैं यह रोजेदार ड्राइवर सोचता है कि गाड़ी क्यों रोक दूं एक तो मजकूरा खातून को गाड़ी में सवार होने में वक्त लगेगा और दूसरा यह कि उसके छोटे छोटे बच्चे बिला वजह गाड़ी में जगह भी घेर लेंगे और पैसे भी नहीं देंगे।

इसी तरह लागर और माजूर मुसाफिर को भी गाड़ी में सवार होने में वक्त लगेगा हो सकता है पैसे भी न दे तो क्या ऐसा रोजेदार ड्राइवर शाम को बड़े एहतमाम से इफ्तार का इंतेजार कर सकता है?

एक मालदार रोजेदार शख्स अपने मुफलिस गैर मुस्लिम पड़ोसी या मुस्लिम पड़ोसी रोजेदार की मदद करने से बचता है हालांकि इस्लाम में वाजेह है कि पैगम्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हिदायत भी है कि अगर आप मुफलिस पड़ोसी की मदद करना चाहते हो लेकिन सोंचते हो कि कहीं मजकूरा मुफलिस पड़ोसी उसकी मदद को अपनी तौहीन न समझ बैठे तो मालदार शख्स पर हुक्म है कि वह यह मदद तोहफे या जियाफत की सूरत मे पेश करे और गरीब पड़ोसी से बता दे कि आज हमने यह लजीज जियाफत तैयार की है। इसलिए आप का अहल व अयाल भी इसका हकदार है या इस तरह खिलाइए कि घर में दो मुर्गे दो भाइयों ने लाए इसलिए आप एक रख लें।

इस तरह का रहमदिलाना हिकमते अमली का यह सिलसिला एक मालदार रोजेदार को रोजे के महीने में कई बार जारी रखना है और साल भर भी लेकिन जब ऐसे मालदार रोजेदार इस हिदायत और हिकमते अमली को नजर अंदाज करें तो क्या वह इफ्तार करने के हकदार होंगेेेे? इसी तरह अगर खाने पीने की चीजें बेंचने वाला रोजेदार दुकानदार जब एक ऐसे गरीब मुस्लिम या गैर मुस्लिम शख्स को उसकी बिसात के मुताबिक कोई चीज सिर्फ पांच-आठ रूपए की हद तक फरोख्त करने से इंकार करता है और उसकी तरफ हिकारत भरी निगाह से देखता है तो क्या वह दुकानदार वाकई दिन भर रोजा से था या बिला वजह इफ्तार वालों में शामिल हुआ?

एक रोजेदार वाज साहब मस्जिद में सिर्फ इस्लाम तारीख बयान करते रहे लेकिन उन्होंने नमाज के बुनियादी उसूलों से बेखबर नमाजी को नमाजे जमाअत के दौरान नमाज में शामिल होने की हिदायात की मालूमात दिलाने और बच्चों को वजू व नमाज के कायदे के बारे में मालूमात फराहम करने को तरजीह नहीं दी तो क्या वह वाज रोजे से थे?

क्या एक मालदार रोजेदार शख्स जेब में पैसेे होने के बावजूद मस्जिद के दरवाजे पर उठे हुए लरजते, थरथराते और कमजोर हाथों में खैरात के तौर पर चंद सिक्के डालने से जानबूझकर कासिर रहा क्या वह नमाजे मगरिब के वक्त इफ्तार की अस्ल खुशबू महसूस कर सकता है?

एक रोजेदार डाक्टर दिन भर अस्पताल में बीमारों के साथ वही सलूक नहीं निभाता रहा जो वह अपने क्लीनिक के बीमारों के साथ रवा रखता है क्या वह रोजेदार डाक्टर शाम को बड़े सुकून के साथ इफ्तार की फजीलत से लुत्फ अंदोज हो सकता है?

क्या एक रोजेदार वजीर या हाकिम सवालियों को दिन भर उनके मसायल हल करने और रोजगार के मुख्तलिफ झांसे दिलाकर उन्हें अपना हामी बनाए रखे क्या ऐसे वजीर या हाकिम शाम को इफ्तार की अजीम घड़ी का इंतजार कर सकते हैं?

ख्वातीन हजरात चूंकि मेरा महीना अब दोबारा आप के सामने है। आपसे अल्लाह तआला की वसातत से मेरी यह दरख्वास्त है कि आप मेरा एहतराम करने और अल्लाह के हुजूर अपने रोजो की कुबूलियत के नाजुक मरहले को ध्यान में रखकर आप सब अपनी सभी कोताहियों से परहेज करके साल भर के लिए ही नहीं बल्कि हमेशा के लिए एक साफ व शफ्फाफ और इंसानियत नवाज माहौल बनी आदम के लिए तैयार करें ताकि मैं भी आप की मोहब्बतों से सरफराज होता रहूं। (शम्सउद्दीन शमीम)

———–बशुक्रिया: जदीद मरकज़