रोहिंग्या को वापस भेजने के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर!

आज भारत में रह रहे रोहिंग्या के लोग अपने देश म्यांमार जा सकते हैं। केंद्र की मोदी सरकार पहली बार अवैध तरीके से रह रहे रोहिंग्या समुदाय के सात लोगों को म्यांमार के अधिकारियों को सौंपेंगे। सभी रोहिंग्या 2012 से असम के सिलचर स्थित हिरासत केंद्र में बंद हैं। उन्हें मणिपुर की राजधानी इंफाल लाया गया है।

अधिकारी ने जानकारी दी है कि पड़ोसी देश की सरकार के गैरकानूनी प्रवासियों के पते की रखाइन राज्य में पुष्टि करने के बाद इनके म्यामांर के नागरिक होने की पुष्टि हुई है। वापस जाने वाले लोगों के नाम हैं मोहम्मद जमाल, मोहबुल खान, जमाल हुसैन, मोहम्मद युनूस, सबीर अहमद, रहीम उद्दीन और मोहम्मद सलाम। सभी की उम्र 26 से 32 वर्ष के बीच है।

बता दें कि विदेशी कानून के उल्लंघन के आरोप में सातों लोगों को 29 जुलाई, 2012 को गिरफ्तार किया गया था।वहीं गुवाहाटी में असम के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (सीमा) भास्करज्योति महंता ने जानकारी देते हुए बताया कि विदेशी नागरिकों को वापस भेजने का कार्य पिछले कुछ वकत से चल रहा है। इस वर्ष की शुरूआत में हमने बांग्लादेश, म्यामांर और पाकिस्तान के कई नागरिकों को वापस उनके देश भेज दिया है।

भारत सरकार के इस निर्णय के खिलाफ देश की सबसे बड़ी अदालत में याचिका दाखिल की गई है। याचिका बुधवार को वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दाखिल की। प्रशांत भूषण ने जब इस यचिका पर जल्द सुनवाई करने की मांग करते हुए मेंशन किया था तो चीफ जस्टिस ने कहा कि आप याचिका दायर कीजिए ये लिस्ट की जाएगी।

आज सुप्रीम कोर्ट रोहिंग्या समुदाय के लोगों को म्यांमार वापस भेजने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करेगा। वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ ने रोहिंग्या समुदाय के लोगों को वापस भेजने पर आपत्ति जताई है। नस्लवाद पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने कहा है कि अगर भारत ऐसा करता है तो यह उसके अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्व से मुकरने जैसा होगा।

उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने गत वर्ष संसद को बताया था कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर में पंजीकृत 14,000 से ज्यादा रोहिंग्या लोग भारत में रहते हैं। हालांकि सहायता प्रदान करने वाली एजेंसियों ने देश में रहने वाले रोहिंग्या लोगों की संख्या करीब 40,000 बताई है।