रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार पर ‘सू ची’ का रवैया उदासीन रहा, कभी खुलकर नहीं बोली- एमनेस्टी इंटरनेशनल

मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने म्यांमार की नेता आंग सान सू ची से अपना अवॉर्ड प्रतिष्ठित वापस ले लिया है. संस्था के मुताबिक सू ची ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए कुछ नहीं किया. कभी मानवाधिकारों का प्रतीक रहीं सू ची को रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर चौतरफा आलोचना झेलनी पड़ रही है.

हाल के दिनों में उनसे कई सम्मान वापस लिए गए हैं. म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में अगस्त 2017 के बाद से सात लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमानों को जान बचाने के लिए बांग्लादेश में शरण लेनी पड़ी है.

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि म्यांमार की सेना ने बड़े पैमाने पर हत्या और बलात्कारों को अंजाम दिया है. उस पर रोहिंग्या लोगों का जातीय रूप से सफाया करने के आरोप भी लगे. लेकिन म्यांमार की सेना का कहना है कि वह सिर्फ जिहादी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है जो देश की सुरक्षा के लिए चुनौती बन रहे हैं.

मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल का मानना है कि रोहिंग्या संकट पर सू ची का रवैया ‘उदासीन’ रहा है और उन्होंने कभी खुल कर इसकी आलोचना भी नहीं की है जिससे मानवाधिकारों का हनन करने वालों को बढ़ावा मिला है.

वहीं एमनेस्टी के कदम के बाद म्यांमार का प्रशासन और लोग सू ची के बचाव में आ गए हैं. सू ची की पार्टी एनएलडी की प्रवक्ता म्यो न्यूंट का कहना है कि अवॉर्ड वापस लिए जाने से सू ची की गरिमा पर कोई आंच नहीं आएगी. उन्होंने कहा, ”ये सभी संस्थाएं बंगालियों के लिए काम कर रही है, जो नागरिकता पाने के लिए देश छोड़कर आए.” उन्होंने रोहिंग्या लोगों को ‘बांग्लादेश से आए घुसपैठिए’ करार दिया.

म्यांमार के सूचना उपमंत्री आंग ह्ला तुन ने कहा कि वह एमनेस्टी के कदम से दुखी है. उन्होंने कहा कि सू ची से अनुचित व्यवहार किया गया और इस कदम से लोग उन्हें और चाहने लगेंगे.

म्यांमार की आम जनता भी यंगून सड़कों पर उतर आई और सू ची का बचाव किया. 50 वर्षीय खिन माउंग अए ने कहा, ”सम्मान वापस लेना बचकानी हरकत है. यह ऐसा है जैसे जब बच्चे एक-दूसरे के साथ घुलमिल नहीं पाते हैं तो अपने खिलौनों को वापस लेते हैं.” एक अन्य 60 वर्षीय शख्स का कहना है कि उन्हें सम्मान चाहिए ही नहीं.

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2009 में सू ची को ‘ऐम्बैसडर ऑफ कॉन्शन्स’ से सम्मानित किया था. उस वक्त वह नजरबंद थीं. आठ साल बाद जब सू ची आजाद हुईं तो उन्होंने 2015 के चुनाव में जीत पाई. म्यांमार में उनकी पार्टी की सरकार तो बनी लेकिन उन्हें सेना के साथ सत्ता में साझेदारी करनी पड़ी और सुरक्षाबलों पर उनका कोई नियंत्रण नहीं रहा.

एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि सू ची विफल रही हैं और उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों पर ‘अत्याचार कर रहे सुरक्षाबलों का बचाव’ किया है. संस्था ने इसे ”मूल्यों के खिलाफ शर्मनाक विश्वासघात” कहा है. एमनेस्टी इंटरनेशनल की प्रमुख कूमी नायडू ने बीते रविवार को सू ची को खत लिखा और सम्मान वापस लेने की बात कही. उन्होंने लिखा कि उन्हें निराशा है कि अब वह (सू ची) आशा और साहस के प्रतीक का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं.

इस साल मार्च में अमेरिका के होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम ने भी अपना सर्वोच्च सम्मान सू ची से वापस ले लिया था. इसके अलावा म्यांमार की नेता से ‘फ्रीडम ऑफ द सिटीज ऑफ डबलिन एंड ऑक्सफोर्ड’ का सम्मान भी वापस लिया गया.

वहीं सितंबर में कनाडा की संसद ने सू ची की मानद नागरिकता वापस लेने के लिए वोट दिया. आलोचक अब सू ची को 1991 में दिए नोबल शांति पुरस्कार को भी वापस लेने की मांग कर रहे हैं. हालांकि नोबेल समिति का कहना है कि ऐसा नहीं किया जाएगा.

साभार- ‘डी डब्ल्यू हिन्दी’