क्या एक लोकतांत्रिक देश में सवाल पुछना गलत है। क्या मोदीकाल में सच्चाई दिखानी की हिमाकत किसी रिपोर्टर को भारी पड़ सकती है। पत्रकारिता के बुनियादी एथिक्स यही है कि हम जनता की तरफ खड़े हो ना किसी सरकार का गुणगान गाये। लेकिन माहौल तो ऐसा ही बनाया जा रहा है कि रिपोर्टिंग के मायने गुणगान गाना ही बनाया जा रहा है। दरअसल, प्रधानमंत्री के नोटबंदी के फरमान के बाद इसका सबसे ज्यादा असर गरीबों को उठाना पड़ रहा है।
रविश कुमार 17 अक्टुबर के प्राइम टाइम में लोगों की यही मुश्किले दिखाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मोदी सर्मथकों को यह नहीं भाया। कुछ लोग आ के उन्हें धमकाने लगे और ये समझाने लगे लोगों की तकलीफ देशहीत से ज्यादा बड़ी नहीं है। लेकिन क्या सरकार के बिना प्लानिंग के लिये फैसले के बाद उपजी अव्यवस्था दिखाना देशहीत के खिलाफ है। नोटबंदी से आमलोगों की परेशानी रविश कुमार को भारी पड़ रही है। लगातार दूसरे दिन मोदी सर्मथकों द्नारा उनकों धमकाया गया। और उन्हें बैंको में लाइन खड़े लोगों मुश्किलों की रिपोर्टिंग करने नहीं दिया
गया।
देखिये और खुद ही तय करिये देशभक्त कौन है मोदी सर्मथक या रिपोर्टिंग के दौरान सच्चाई दिखाते रविश कुमार
https://youtu.be/am30IPJihk4