लड़कियां अल्लाह की बड़ी नेमत

(मौलाना मोहम्मद हारून रशादी)यह मुसलमान औरतों के लिए किसी तरह की मुनासिब नहीं है कि हमल के करार पाते ही सिर्फ लड़के की ऐसी तमन्ना और दुआ करना कि लड़की पैदा हो जाए तो उसको बुरा समझें, चेहरा अफसुर्दा हो जाए, दिल गमगीन हो जाए बल्कि लड़कियां तो मां-बाप के लिए दुनिया व आखिरत में आंखों की ठंडक का सबब होती है।

अल्लाह तआला ने लड़कियों को पहले जिक्र फरमाया और फिर लड़कों का और जो चीज अल्लाह की तरफ से अपने बंदे को मिले वह हर हाल में खैर ही खैर है। मुसलमान की शान यह होनी चाहिए कि वह अल्लाह के इस अतिए का खुशी-खुशी शुक्र अदा करते हुए इस्तकबाल करे न कि बुरा सा मुंह बनाते हुए नाराजगी का इजहार करे।

जैसे कुरआन-ए-करीम में सूरा नहल और सूरा जुखरुफ में जाहिल काफिरों की आदत व तबियत यह बतलाई गई कि जब उनको लड़की की खबर सुनाई जाती थी तो गम के मारे उनका चेहरा काला स्याह हो जाता था।

मालूम हुआ कि लड़कियों को बुरा समझना काफिरों की बदतरीन खसलतों में से है। किसी मुसलमान की शान से यह बात बिल्कुल बईद है कि वह लड़कियों को बुरा समझें बल्कि लड़कियां होना खुशकिस्मती और सआदत की बात है।

इसलिए सूरा की आयत के मुवाफिक इमाम बिन अलसकअ फरमाते हैं कि बीवी की सआदत और नेक बख्ती में से यह है कि उसके यहां पहले लड़की पैदा हो इसलिए कुरआन में जो इरशाद हुआ है उसमें लड़कियों का पहले जिक्र है और बाद में लड़को का। इमाम अहमद के बेटे सालेह फरमाते हैं कि जब भी हमारे यहां लड़की पैदा होती तो मेरे वालिद फरमाते कि यह बहुत खुशी की बात है कि इसलिए कि अम्बिया (अलैहिस्सलाम ) अक्सर लड़कियों के वालिद हुआ करते थे।

खुद नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) की चार बेटियां थी। अल्लाह तआला हम सबको अपने दिए हुए अतिए की सही माने में कद्रदानी करने की तौफीक अता फरमाए और इत्रआमेज गूंच्चों मासूम नौनिहाल चहचहाती हुई मैनाओं की कद्र अता करने की तौफीक अता फरमाएं।

और एक रिवायत में है कि किसी के यहां लड़की पैदा होती है तो फरिश्ता आता है कि कमजोर है कमजोर से पैदा की गई है। इसकी किफालत करने वाले की मआविनत की जाएगी। लिहाजा बच्ची को अपने लिए अल्लाह का एक अजीम इनाम समझिए और उसकी सही तर्बियत और किफालत करके अल्लाह की मदद हासिल कीजिए। क्या मालूम यही बच्ची आपके लिए और आपके खानदान के लिए सरमाया इफ्तिखार हो और अल्लाह उससे ऐसी नस्ल चलाएं जो वजा तौर पर उम्मते मुस्लेमा के लिए बाईसे फख्र हो।

हजरत उमर (रजि0) का मशहूर किस्सा है कि एक बार रात को शहर में गश्त फरमा रहे थे एक मकान के करीब से गुजरे जहां मां-बेटी के बीच किसी बात पर बहस हो रही थी। हजरत उमर (रजि0) ने सुना मां बेटी से कह रही है कि दूध में पानी मिला दो और बेटी इंकार करते हुए जवाब में कह रही है कि अमीरूल मोमिनीन ने मना फरमाया। मां ने कहा कि यहां अमीरूल मोमिनीन तो नहीं देख रहा है।
बेटी ने क्या खूब जवाब दिया कि अम्मी जान अमीरूल मोमिनीन तो नहीं देख रहे हैं लेकिन उनका खुदा तो देख रहा है। हजरत उमर (रजि0) बगैर कुछ कहे घर चले गए और अपने बेटे आसिम से फरमाया कि उस लड़की से निकाह कर लो उन्होंने पैगाम भेजा और निकाह कर दिया।

अल्लाह तआला ने उन्हीं की नस्ल से हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज जैसा आदिल खलीफा उम्मत को अता फरमाया जिस पर उम्मत जितना भी फख्र करे कम है। अल्लाह हम सबको समझ अता फरमाए और अमल करने की तौफीक दे – आमीन ।

बशुक्रिया: जदीद मरकज़