लड़की का इन्तेकाब

आजकल रिश्तों के तै पाने में फ़रीक़ैन को कई मरहलों से गुज़रना पड़ता है। इबतदा-ए-में फ़रीक़ैन के दरमयान फ़ोटो और बायो डाटा का तबादला होता है। अगर फ़ोटो और बायो डाटा के मशमूलात फ़रीक़ैन के मयार के मताक़ हूँ तो फिर लड़की देखने का मरहला आता है। यही वो कठिन मरहला होता है, जहां लड़की और लड़की के वालददिन को उमूमन ज़ेहनी अज़ीयत और आज़माईश से गुज़रना पड़ता है और लड़के वालों की हर नामाक़ूल हरकत को बर्दाश्त करना पड़ता है। लड़के वाले लड़की वालों के घर पहुंच कर पहले घर का बग़ौर जायज़ा लेते हैं, ताकि लड़की वालों के मआशी मौक़िफ़ का अंदाज़ा लगाया जा सके। मुख़्तसर रिवायती गुफ़्तगु और तवाज़ो के बाद जब लड़की को दिखाया जाता है तो लड़के वालों की जानिब से लड़की के सर के बाल से तलवे की खाल तक हर हर उज़ू को कई ज़ावियों से जांचा परखा जाता है। बिलआख़िर मामूली सी ख़ामी या कमी, बल्कि चेहरे या जिस्म पर कोई ख़राश का निशान भी हो तो लड़की को मुस्तर्द करदिया जाता है।

इस तरह एक लड़के के लिए बीसियों लड़कीयों को देखा जाता है, लेकिन कोई लड़की पसंद नहीं आती। हालाँकि जो ख़वातीन लड़की देखने जाती हैं, ना सिर्फ वो ख़ुद जिस्मानी ख़ामीयों का मजमूआ होती हैं, बल्कि उन के लड़के में भी हज़ारहा खामियां गंवाई जा सकती हैं, इस के बावजूद तरह ये कि उन्हें इंतिहाई ख़ूबसूरत लड़की चाहीए। हुज़ूर अकरम सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया औरत से चार चीज़ों की वजह से शादी की जाती है। ख़ूबसूरती की वजह से, माल की वजह से, नसब या ख़ानदान की वजह से और दीनदारी की वजह से, तो तुम दीनदार औरत से शादी करो। इस हक़ीक़त से सभी वाक़िफ़ हैं कि ख़ूबसूरती उम्र के साथ साथ ज़वाल पज़ीर होती है, चाहे अपने वक़्त की हसीना-ए-आलम का ख़िताब पाने वाली क्यों ना हो। इसी तरह माल और नसब भी वक़्ती तफ़ाख़ुर का ज़रीया तो होसकते हैं, लेकिन दाइमी सुकून-ओ-चीन का ज़रीया हरगिज़ नहीं होसकते। ग़रज़ ख़ूबसूरती, माल और नसब जो ना सिर्फ फ़ख़र-ओ-ग़रूर जैसी अख़लाक़ी बुराईयों का ज़रीया हैं, बल्कि वक़्त के साथ साथ ज़वाल पज़ीर भी हैं। इस के बरख़िलाफ़ दीनदारी एक ऐसी नेअमत है, जो दुनियावी सुकून और आख़िरत की सुर्ख़रूई का बाइस होती है।

एक और हदीस शरीफ़ में इरशाद हुआ कि सारी दुनिया मता है और दुनिया की बेहतरीन मता नेक औरत है। ये कितनी बदबख़ती और अफ़सोस की बात है कि हुज़ूर अकरम सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम की तरग़ीब-ओ-हिदायत के बावजूद हुब्ब रसूल का दावा करने वाले मुस्लमान अपने नबी के मश्वराव के ख़िलाफ़ ख़ूबसूरती और दौलत के पीछे भाग रहे हैं। लड़कों के वालदैन ख़ुसूसन वो ख़वातीन जो लड़की देखने के उनवान से मुतवातिर मुस्लिम घरानों के चक्क्र लगाती हैं, वो या तो लड़कीयों में कोई ना कोई ऐब निकाल कर या फिर हसब-ए-ख़वाहिश नक़द और जहेज़ मिलने की तवक़्क़ो ना होने पर रिश्ता को मुस्तर्द करदेती हैं।

इन का ये रवैय्या लड़की और लड़की के वालदैन की बेइज़्ज़ती के मुतरादिफ़ है। ये कितनी बदअख़्लाकी की बात है कि एक मुस्लमान की मेहमान नवाज़ी, इज़्ज़त अफ़्ज़ाई और तवाज़ो के जवाब में इस की बेइज़्ज़ती की जाय और किसी लड़की के जज़बात-ओ-एहसासात को बार बार मजरूह किया जाय। मुनासिब तो ये होगा कि लड़की देखने से क़बल ही लड़की से मुताल्लिक़ सारी तफ़सीलात किसी ज़रीया से पहले ही मालूम करली जाएं और लड़की वाले भी हर एरे ग़ैरे को लड़की दिखाने से इजतिनाब करें

और लड़की दिखाने से क़बल लड़के वालों के मयार और मुतालिबात की मुकम्मल जानकारी हासिल करले अगर जहेज़ के हरीस और रक़म के लालची हूँ तो इस रिश्ता को हक़ारा त के साथ ठुकरा दें।

रिश्तों के तै करवाने में माइनारीटीज़ डेवलपमनट फ़ोर्म (एम डी एफ़) की ख़िदमात काबिल-ए-सिताइश हैं। इन के दो बह दो प्रोग्राम को अवामी मक़बूलियत हासिल हो रही है। मुनासिब होगा कि फ़ोर्म की जानिब से ख़वातीन और लड़कीयों के माहाना इजतिमाआत का एहतिमाम किया जाय, ताकि लड़कीयों के इंतिख़ाब का मौक़ा फ़राहम होसके।