शहर हैदराबाद को अभी अभी खेलों बिलख़सूस क्षति के मुक़ाबलों में ये एज़ाज़ मिला कि 53 साल में पहली बार 45 वीं सीनीयर नैशनल इंडियन स्टाइल ऐंड हिंद केसरी टाइटल मुक़ाबले का 23 से 25 दिसम्बर 2011 यहां एल्बी स्टेडीयम मैं इनइक़ाद अमल में आया।
इस मौक़ा पर जहां हिंदूस्तान भर से मर्द-ओ-ख़वातीन के ज़ुमरे में अच्छी मुसाबक़त देखने में आई, वहीं दुनियाए कशती-ओ-पहलवानी से ताल्लुक़ रखने वाली कई मुमताज़ शख़्सियतों ने मेहमानों की हैसियत से शिरकत करते हुए मुक़ाबला कुनुन्दगान का हौसला बढ़ाया।
दिल्ली के हाजी ख़लीफ़ा बरकत उल्लाह साहिब भी जो क्षति और पहलवानी की दुनिया की मशहूर शख़्सियत हैं, हिंद केसरी का मुशाहिदा करने हैदराबाद आयें। इन का ना सिर्फ हिंद केसरी के मुंतज़मीन ने शायान-ए-शान इस्तिक़बाल किया, बल्कि दीगर मुक़ामी शख़्सियतों बिशमोल मिस्टर अंजन कुमार यादव एम पी (सिकंदराबाद) ने भी इन से मुलाक़ात करते हुए लाईफ़ हिस्ट्री आफ़ ख़लीफ़ा बरकत अल्लाह के बारे में जानकारी हासिल की जो इन दिनों ज़ेर तर्तीब है।
उन्हों ने क़ब्लअज़ीं पहलवानों की दुनिया और ज़माना-ए-गामा के ज़ेर-ए-उनवान भी किताबें तहरीर किए थे। ख़लीफ़ा बरकत साहिब ने दफ़्तर रोज़नामा सियासत का भी दौरा किया, जहां उन्हों ने जनाब ज़ाहिद अली ख़ान अडीटर , जनाब ज़हीर उद्दीन अली ख़ान मनीजिंग अडीटर, जनाब आमिर अली ख़ान न्यूज़’अडीटर से मुलाक़ात की। इस मौक़ा पर नुमाइंदा सियासत ने ख़लीफ़ा बरकत साहिब से क्षति और पहलवानी की दुनिया में इन की 55 साला ख़िदमात के बारे में गुफ़्तगु की जिस का ख़ुलासा पेश है:
हाजी ख़लीफ़ा बरकत अल्लाह की पैदाइश 1937-ए-में हुई; इबतदा-ए-जवानी से वरज़िश, क्षति और पहलवानी से वाबस्तगी ने ही शायद उन्हें अब भी मुकम्मल चाक़-ओ-चौबंद और मुतहर्रिक रखा है। वो सरकारी ख़िदमात में दिल्ली डेवलपमेन्ट अथार्टी (डी डी ई) से सबकदोश हुई। मगर इस दौरान और बाद में भी वो अखाड़ा हाजी ख़लीफ़ा बरकतउल्लाह के सरबराह की हैसियत से क्षति और पहलवानी के शोबे में सरगर्म रहे हैं। ख़लीफ़ा बरकत साहिब को ना सिर्फ हिंदूस्तान बल्कि पड़ोसी पाकिस्तान ने भी कई ऐवार्डज़ पेश किए हैं।
उन्हों ने हैदराबाद में मुनाक़िदा हिंद केसरी के नहज और इनइक़ाद पर अपनी पसंदीदगी का इज़हार करते हुए कहा कि उन्हें गद्य की बजाय दंगल के मुक़ाबले अच्छे लगते हैं क्योंकि इसी में किसी पहलवान के दमख़म की हक़ीक़ी आज़माईश होती ही। हाजी ख़लीफ़ा साहिब ने जो 52 Kg (फ़्लाई वेट) ज़ुमरे में कुश्ती लड़ते थी, अपने दौर की याद ताज़ा करते हुए कहा कि तब कामयाब पहलवान को 2 या 4 रुपय बतौर इनाम मिलते थे जबकि आजकल कशती मुक़ाबलों में कहीं लाखों तो कहीं करोड़ों रुपय का ख़र्च आरहा ही, फिर भी बहुत कम पहलवान ही मुतास्सिर कर पाते हैं।
हाजी ख़लीफ़ा बरकत उल्लाह जिन्हें 1957-ए-और 2009-ए-में दो मर्तबा हज की अदायगी का शरफ़ हासिल हुआ, उन्हों ने दुनयवी मुआमलात में भी अपनी क़ीमती अराज़ी पार्क केलिए हुकूमत को फ़राहम करते हुए दूसरों केलिए एक मिसाल क़ायम की है। उन्हों ने 7 मई 2008-ए-को जामि मस्जिद उर्दू पार्क केलिए अपनी करोड़ों रुपय मालियत की अराज़ी उस वक़्त के डिप्टी म्यूनसिंपल कमिशनर वजए सिंह को सौंपी। तब मेयर दिल्ली कंवर सेन ने हाजी ख़लीफ़ा साहिब से वाअदा किया था कि हुकूमत भी अपनी तरफ़ से एक क़ता अराज़ी उन्हें देगी ताकि वो नौजवानों केलिए अखाड़ा क़ायम करसकें।