लालू को फंसाने के लिए बनायी मनगढ़ंत कहानी

चारा घोटाले में लालू प्रसाद को फंसाने के लिए सीबीआइ ने मनगढ़ंत कहानियां बनायी। घोटालेबाजों से 50-60 करोड़ रुपये लेने के इल्ज़ाम लगाये और 46 लाख रुपये के डीए का केस दर्ज किया। वह भी साबित नहीं कर पायी। वकील सुरेंद्र सिंह ने लालू प्रसाद का हक़ पेश करते हुए यह बात कही। सीबीआइ के खुसूसी जस्टिस पीके सिंह की अदालत में चारा घोटाले के कांड संख्या आरसी 20ए/96 में लालू प्रसाद का हक़ पेश किया गया।

वकील सुरेंद्र सिंह ने लालू प्रसाद का हक़ पेश करते हुए कहा कि घोटाले में शामिल होनेवाले हर सख्स को घोटाले की रकम का हिस्सा मिलता है। सीबीआइ ने लालू प्रसाद को घोटाले के साजिश करदा लोगों में शामिल बताया। इसके लिए कहानियां गढ़ी। गवाहों से 50-60 करोड़ रुपये लेने के इल्ज़ाम लगाये।

लालू की जायदाद तलाशने के लिए मुल्क गैर की छापामारी की। इसके बाद आमदनी से ज़्यादा महज़ 46 लाख रुपये की जायदाद इजरत करने के इल्ज़ाम में लालू प्रसाद और उनकी बीवी राबड़ी देवी पर केस किया। पर, अदालत में यह साबित नहीं कर सकी कि यह रकम घोटाले की है।

अदालत ने यह माना कि यह जायदाद ईमानदारी और मेहनत से कमाई गयी पैसों से अजिर्त की गयी थी। सीबीआइ ने लालू प्रसाद को चारा घोटाले में फंसाने के लिए पशुपालन महकमा के मौजूदा इंतेजामिया अफसर आरके दास से गलत बयान दिलवाया। इसके लिए उसे तीन माह तक ज़ेहनी तौर पर परेशान किया।

इस अफसर ने अपने बयान में कहा कि था कि एसेम्बली इंतिखाबात के बाद एसेम्बली दल के लीडर ओहदे के इंतिखाबात में मदद के लिए पशुपालन अफसर श्याम बिहारी प्रसाद ने लालू को पैसे दिये थे। दास ने अपने बयान में कहा है कि श्याम बिहारी ने पटना पहुंचने के बाद एक मकान किराये पर लिया। उन्होंने दास को बुलाया था। जब दास श्याम बिहारी के घर पहुंचे तो श्याम बिहारी के नौकर ने कहा कि साहब अभी सो रहे हैं।

इसके बाद दास ड्राइंग रूम में बैठ गया। वहां और भी लोग बैठे हुए थे। थोड़ी देर में उसने देखा कि लालू प्रसाद और आरके राणा श्याम बिहारी सिन्हा के बेड रूम से एक-एक बैग लेकर निकले। श्याम बिहारी दोनों को छोड़ने बाहर गये। लौटने के बाद उन्होंने ड्राइंग रूम में बैठे लोगों को बताया कि लीडर ओहदे के इंतिखाबात के लिए उन्होंने दोनों को पैसे दिये।

वकील सुरेंद्र ने दास के इस बयान को मनगढ़ंत बताया। साथ ही यह सवाल उठाया कि क्या कोई किसी को एलान कर के घूस में पैसा देता है। यह वाकिया जिस वक़्त की बतायी गयी है उस समय लालू प्रसाद बिहार के सबसे ताकतवर लीडर के तौर में कायम हो चुके थे। भला कोई ताकतवर लीडर किसी अफसर से पैसा लेने के लिए उसके घर जाता है?

ऐसी हालत में तो खुद लोग ताकतवर सख्स के पास जा कर पैसा पहुंचाते हैं। इसलिए इस सरकारी गवाह का बयान सच से परे है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में ऐसे गवाहों की गवाही को बातिल कर दिया है। इसलिए इस सरकारी गवाह के बयान को भी बातिल कर दिया जाना चाहिए।