लालू या नीतीश : काँग्रेस के लिए फैसला मुश्किल

बीजेपी, जेडीयू की रिश्ते में तल्खी के बाद अब चारा घपला में आरजेडी सरबराह लालू परसाद के जेल जाने से बिहार में एक बार फिर सियासी हलचल तेज़ हो गयी है। यानि तीन माह में बिहार की सियासत में दो बड़े वाकियात हुये। बिहार की सियासत में बड़े और छोटे भाई नितीश-लालू के पार्टी में बवाल मचा हुआ है। तीन माह पहले इकतिदार से अलग हुई बीजेपी को ओपोजिशन के रोल में है लेकिन नीतीश हुकूमत को हिमायत देकर काँग्रेस पाशो पेश में है। बिहार काँग्रेस वेट एंड वॉच की पोजीशन में है। वैसे तो आवामी प्लेटफॉर्म पर काँग्रेस आइंदा पार्लियामानी इंतिख़ाब में किसी के साथ मेल से इंकार करती है लेकिन इसके रहनुमा अंदर ही अंदर इत्तिहाद की ख्वाहिश रखते हैं। इंतिख़ाब में बेहतर नतीजा के लिए काँग्रेस को इत्तिहाद के सहारे ही कामयाबी मिल सकती है। पार्टी लीडरों को भरोसा है के आयन वक़्त पर आला कमान इत्तिहाद का फैसला करेगा। पार्टी में गौरो खौस चल रहा है के किस के साथ जाने से फायदा होगा।

बिहार में एंटी बीजेपी वोट को लगता है। के बीजेपी को रोक पाने में नीतीश से ज़्यादा लालू परसाद आहिल हैं। ज़ात पर मुबनी समाजी सफबंदी भी नितीश से ज़्यादा लालू के पास है। फिरका परशती से लड़ने का हक़ीक़ी तजुरबा नितीश से ज़्यादा लालू को है। लालू प्रसाद बीजेपी के सीनियर लीडर लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करके साबित कर चुके है जबके नितीश कुमार भले ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलते हों लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी की क़सीदा ख्वानी से परहेज नहीं है।

काँग्रेस का एक तबका मानता है के लालू के चारा घोटाले में जेल जाने से काँग्रेस पाक हो जाएगी। इंतिख़ाब में बदउनवानी मौजू नहीं रहेगा इसी वजह से काँग्रेस का झुकाव लालू प्रसाद की तरफ है। आइंदा पार्लीयामानी इंतिख़ाब में सिर्फ अक़लियती वोट फैसला कुन नहीं हो सकते है। 1999 में हुये इंतिख़ाब में अक़लियती वोट मिलने पर भी लालू के सीट सिमट गयी थी। इधर 27 अक्तूबर को बीजेपी के हुंकार रैली फिरकावराना सियासत को एक नया रुख मिलेगा और रियासत में सेकुलर ताक़तें मजबूत होंगी।