लिन्को हिल्ज़ को सुप्रीम कोर्ट से राहत , वक़्फ़ बोर्ड को शदीद धक्का

दरगाह हज़रत हुसैन शाह वली (र) से मुंसलिक मनी कुंडा जागीर की 1654 एकड़ ओक़ाफ़ी अराज़ी (जमीन) से मुताल्लिक़ आंधरा प्रदेश हाईकोर्ट के ख़िलाफ़ दायर करदा ख़ुसूसी मुराफ़ा जात पर सुप्रीम कोर्ट के उबूरी (वकती)अहकाम ओक़ाफ़ी मुआमला में मुस्लिम बिरादरी के ख़िलाफ़ हुकूमती साज़िश, वक़्फ़ बोर्ड और मुतवल्ली-ओ-इंतिज़ामी कमेटी दरगाह की बे बसी और मिली क़ियादत के तसाहुल की ग़म्माज़ी करते हैं। जस्टिस राधा कृष्णन और जस्टिस दीपक मिसरा पर मुश्तमिल सुप्रीम कोर्ट की बंच ने लिनको हिलज़ और ए पी आई आई सी की जानिब से दाख़िल करदा अलैहदा अलैहदा ख़ुसूसी मुराफ़ा को समाअत (सुनवाइ) के लिए क़बूल करते हुए लिनको हिलज़ के इस इद्दिआ को तस्लीम करते हुए कि शीडोल

जायदाद के ओक़ाफ़ी क़रार पाने की सूरत में हुकूमत की मुआवज़ा की अदाएगी पर आमादगी(रजामनदी) के बावजूद प्रोजेक्ट की तामीर, फ़रोख़्तगी और मलकीत की मुंतक़ली पर अलतवा बेमानी है, अदालत-ए-उज़्मा (सुप्रीम कोर्ट ) ने इस ख़सूस में हाईकोर्ट के अहकाम और वक़्फ़ ट्रब्यूनल की कार्रवाई पर हुक्म अलतवा जारी करते हुए लिनको हिलज़ प्रोजेक्ट पर तामीर-ओ-फ़रोख़्तगी पर आइद इमतिना(रोकावट)(रोकावट) से इस्तिस्ना दे दिया

और मुक़द्दमा की समाअत (सुनवाइ) अगस्त के दूसरे हफ़्ता में मुक़र्रर करते हुए वक़्फ़ बोर्ड को जवाबी हलफ़नामा दाख़िल करने की हिदायत दी। रियासती हुकूमत ने अपने हलफ़नामा में ये इक़रार किया कि शीडोल जायदाद के ओक़ाफ़ी साबित होने की सूरत में वो ज़मीन या रक़म की शक्ल में वक़्फ़ बोर्ड को मुआवज़ा अदा करने पर आमादा है। मजमूई तौर पर अदालत-ए-उज़्मा (सुप्रीम कोर्ट )(सुप्रीम कोर्ट) के अहकाम से इस केस की नौइयत (किसम) यकलख़्त बदल कर रह गई है। वक़्फ़ बोर्ड ने से नर वकील मिस्टर नरसिम्हन की ख़िदमात हासिल की थीं जबकि दरगाह की तरफ़ से मसरज़ वसीम अहमद कादरी, मुश्ताक़ अहमद और अल एन सिंह ऐडवोकेटस पेश हुए थे।

बंच का एहसास था कि हुकूमत जब मुआवज़ा की अदाई के लिए रज़ामंद है तो लिनको हिलज़ प्रोजेक्ट की तामीर-ओ-फ़रोख़्तगी पर इमतिना(रोकावट) आइद करना मुनासिब नहीं है। एक मौक़ा पर एक जज ने इस्तिफ़सार (सवाल) किया कि आया कसीर सरमाया से तामीर करदा इन इमारात को मुनहदिम कर दिया जाना चाहीए? अदालत-ए-उज़्मा (सुप्रीम कोर्ट ) के आज के फैसला ने सब को शिशदर कर दिया चूँकि किसी को ये उम्मीद नहीं थी कि हाईकोर्ट की सतह तक कामयाबी के बाद वक़्फ़ बोर्ड-ओ-दरगाह को शदीद झटका पहुंचेगा।

आज के फैसला पर मुक़द्दमा के फ़रीक़ैन के वुकला भी शिशदर रह गए। इन का ख़्याल है कि अटार्नी जनरल के हुकूमत की तरफ़ से पेश होने केबाइस भी मुक़द्दमा की नौइयत (किसम) पर बड़ा फ़र्क़ पड़ा है। दरगाह के तहत ओक़ाफ़ी ज़मीन के 100 एकड़ क़ता को रियायती नर्ख़ों (किमत)पर हासिल करते हुए शराइत की ख़िलाफ़वरज़ी में लिनको हिलज़ प्रोजेक्ट की तामीर करने वाले रुक्न पार्ल्यमंट विजए वाड़ा मिस्टर एल राज गोपाल और रियासती हुकूमत ने मिली भगत करते हुए हाईकोर्ट के फैसला को बड़ी ही मक्कारी (होश्यारी)के साथ चैलनज किया।

हाईकोर्ट के फैसला को तस्लीम करते हुए मणी कुंडा जागीर की आराज़ीयात को ओक़ाफ़ी तस्लीम करने की बजाय रियासती कांग्रेस हुकूमत ने अदालत-ए-उज़्मा (सुप्रीम कोर्ट ) में चयालनज किया और रियासती हुकूमत ने वक़्फ़ बोर्ड के मुक़ाबिल आंधरा प्रदेश इंडस्ट्रियल इनफ़रास्ट्रक्चर कारपोरेशन की हिमायत करते हुए अटार्नी जनरल आफ़ इंडिया मिस्टर ग़ुलाम ईसा जी वाहनवती की ख़िदमात हासिल कीं जबकि वक़्फ़ बोर्ड भी हुकूमत का ही एक इदारा है।

हुकूमत इबतदा-ए-ही से वक़्फ़ बोर्ड की हिमायत करने की बजाय इस के मुख़ालिफ़ फ़रीक़(दल)की हैसियत से अदालतों में पेश होती रही है और वक़्फ़ बोर्ड के ख़िलाफ़ बड़े बड़े वुकला की हिमायत करती रही जिस से कांग्रेस के ये दावे खोखले साबित होते हैं कि वो मुस्लमानों की हमदरद-ओ-मूनिस है।यहां इस बात का तज़किरा ज़रूरी है कि हाईकोर्ट में हज़ीमत उठाने के बाद रुक्न पार्ल्यमंट वजए वाड़ा मिस्टर एल राज गोपाल , चीफ मिनिस्टर मिस्टर इन किरण कुमार रेड्डी से मुलाक़ात करते हुए उन पर ज़बरदस्त दबाव डाल रहे थे कि किसी भी सूरत में उन के प्रोजेक्ट को मौक़ूफ़ होने से रोका जाय।

इन का इसरार था कि हुकूमत कम अज़ कम उन्हें अलॉट करदा अराज़ी (जमीन) के मुतबादिल दरगाह को दूसरी ज़मीन देने यह मुआवज़ा देने का ऐलान करे । ताहम मालूम हुआ है कि क़ानूनी पहलूओं का जायज़ा लेने के बाद हुकूमत ने वक़्फ़ बोर्ड के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट से रुजू होने का फैसला किया। समझा जाता है कि हुकूमत ने लिनको हिलज़ प्रोजेक्ट पर आइद इमतिना(रोकावट) की बर्ख़ास्तगी के लिए बोर्ड को मुआवज़ा की अदाई के लिए मशरूत आमादगी(रजामनदी)(रजा मनदी) ज़ाहिर की है।

सदर नशीन वक़्फ़ बोर्ड जनाब ग़ुलाम अफ़ज़ल ब्याबानी ख़ुसरो पाशाह ने अदालत-ए-उज़्मा (सुप्रीम कोर्ट ) के फैसला पर अपने रद्द-ए-अमल का इज़हार करते हुए कहा कि गोका अदालत-ए-उज़्मा (सुप्रीम कोर्ट ) ने हाईकोर्ट के अहकाम और वक़्फ़ ट्रब्यूनल की कार्रवाई पर उबूरी हुक्म अलतवा जारी किया है ताहम इस से हमारा मौक़िफ़ कमज़ोर नहीं पड़ा है। उन्हों ने कहा कि हुकूमत की जानिब से मुआवज़ा की अदाई पर आमादगी(रजामनदी) इस बात की दलालत करती है कि हमारा मौक़िफ़ मुस्तहकम है।

उन्हों ने कहा कि हम ने हाईकोर्ट की तरह सुप्रीम कोर्ट में भी मुदल्लल(दलील के साथ) अंदाज़ में अपने मौक़िफ़ को पेश करने के लिए मोतबर वुकला की ख़िदमात हासिल की है और हमें कामिल यक़ीन है कि फैसला हमारे ही हक़ में होगा। जहां तक मुआवज़ा (धन)को क़बूल करने की बात है बोर्ड तमाम पहलूओं का जायज़ा लेते हुए कोई मुनासिब फैसला करेगा जिस के लिए मिल्लत के उल्मा-ओ-अमाइदीन से मुशावरत (मशवरे)की जाएगी। जनाब ख़ुसरो पाशाह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसला पर शुबहात(शक) का इज़हार कयास पर मबनी होगा।

उन्हों ने कहा कि वो वक़्फ़ का ज़ की कीमत पर हुकूमत से भी समझौता नहीं करेंगे और वही इक़दाम करेंगे जो औक़ाफ़ के हक़ में बेहतर होगा। हुकूमत ने वक़्फ़ बोर्ड के ख़िलाफ़ एक उसे इदारा की हिमायत की है जो करोड़ों रुपय की बदउनवानीयों का मब्दा (वजह)-रहा है और जिस की कार्यवाईयों के नतीजा में आई ए एस ओहदेदारों को जेल की हवा खानी पड़ी है

और कई सियासतदानों की नींदें हराम होचुकी है। हुकूमत के इस इक़दाम से मुस्लमानों के हुकूमत के तईं ज़बरदस्त बदज़नी पाई जाती है। सयासी पंडितों का ख़्याल है कि इस के असरात आइन्दा मुनाक़िद शुदणी ज़िमनी इंतिख़ाबात में महसूस किए जा सकते हैं।