लोकसभा चुनाव के लिये कांग्रेस और आप पार्टी के बीच गठबंधन किये जाने की कोई डेडलाइन है या नहीं?

दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिये देश की सबसे पुरानी पार्टी और दिल्ली की नयी पार्टी के बीच गठबंधन किये जाने की कोई आखिरी तिथि – डेडलाइन है कि नहीं।

अगले मंगलवार- 16 अप्रैल से उम्मीदवार पर्चे भरने लगेंगे। नयी पार्टी ने तो सातों प्रत्याशी घोषित कर दिये हैं और उनका प्रचार भी सुचारू रूप से चल रहा है जबकि भगवा पार्टी तथा सबसे पुरानी पार्टी ने अब तक न तो अपने लड़ाकुओं के नाम तय किये हैं न ही सुव्यवस्थित तरीके से प्रचार करने की शुरुआत की है। क्या ये पार्टियां किसी जाल में तो नहीं उलझ रहीं।

अगर ऐसा नहीं है तो उन्हें अपने प्रत्याशियों को तुरंत सामने लाना होगा और प्रचार करने के लिये नारियल फोड़ना होगा। पुरानी पार्टी गठबंधन की उम्मीद पाले हुये है, इसलिये इंतजार कर रही है, यह पार्टी अगर विधानसभा चुनाव के लिये गठबंधन की शर्त जोड़े तो तुरंत स्थिति साफ हो सकती है। भगवा दल अगर किन्हीं अन्य दलों के होने वाले गठबंधन की प्रतीक्षा करता है तो वह मजबूत होते हुये कमजोरी दिखा रहा है।

नयी पार्टी शायद दबाव डाल कर गठबंधन करना चाहती हो तभी अलग अलग तरह के बयान दे रही है जैसेकि अब गठबंधन के लिये देर हो गयी है, दिल्ली में तभी गठबंधन होगा जब हरियाणा में भी किया जाये, पार्टी अपने दम पर अकेले सातों सीटें जीत सकती है। सबसे पुरानी पार्टी न जाने किस संशय में उलझ कर समय खराब कर रही है, अगर वह डर रही है तो किस बात से।

दिल्ली में सभी मानते हैं कि टोटल टीवी का सर्वे सटीक, ठीक रहता है। उसके सर्वे के अनुसार लोकसभा चुनाव में पुरानी पार्टी को लगभग 25 फीसद और नयी पार्टी को 21.5 फीसद वोट मिलने वाले हैं। 2017 के निगम चुनावों में भी पुरानी पार्टी की जीती सीटों की तादाद और वोट प्रतिशत नयी पार्टी से अधिक रहा था। देश में पुरानी पार्टी का वोट दिनबदिन बढ़ रहा है, उसे घबराने की क्या जरूरत है।

यह पार्टी अपने अध्यक्ष की हरी झंडी का इंतजार कर रही है मगर अध्यक्ष को देश की सीटों की चिंता है, हो सकता है दिल्ली की सात सीटों पर गठबंधन का मुद्दा राष्ट्रीय मुद्दे से कम महत्व का माना जा रहा हो। जहां तक भगवा दल का प्रश्न है कहीं वह अधिक आत्मविश्वास के कारण यह तो नहीं समझ रहा कि जीत पक्की है। पुरानी पार्टी और भगवा दल को जागना होगा।