लोक पाल के लिए कुल जमाती इजलास

रिश्वत सतानी की सूरत-ए-हाल पर नज़र रखने वाले इदारे अपने अपने शोबों के हवाले से इस लानत के ख़ातमा के लिए की जा रही कोशिशों के बारे में इज़हार-ए-ख़्याल करते रहे हैं। मर्कज़ी सतह पर हुकूमत ने लोक पाल बिल और लोक आयुक़्त के मसला पर कोई राह निकालने में कामयाबी हासिल नहीं की। अन्ना हज़ारे की भूक हड़ताल भी काम नहीं आई।

रिश्वत की बली को आख़िर कार थैले से बाहर निकालने की कोशिश में किस को कामयाबी मिलेगी ये कोई कह नहीं सकता क्योंकि यू पी ए हुकूमत सिर्फ हलीफ़ पार्टीयों के रहम-ओ-करम पर है। जुमा के दिन भी वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह कल जमाती इजलास में मुतनाज़ा लोक पाल पर पैदा शूदा तात्तुल को दूर करने में नाकाम हुए। ये इजलास ग़ैर मुख़्ततम रहा।

कल जमाती सतह पर इत्तेफ़ाक़ राय पैदा करने के लिए ज़ोर दिया गया मगर ये इत्तेफ़ाक़ राय कब पैदा होगा जबकि तमाम पार्टियां अपना अलग ज़हन रखती हैं। डी एम के और तृणमूल कांग्रेस को यू पी ए में एहमीयत हासिल है उनकी राय मर्कज़ की राय से मुख़्तलिफ़ है। डी एम के और तृणमूल के क़ाइदीन ने लोक पाल के तहत रियास्ती लोक आयुक़्तों के क़ियाम से मुताल्लिक़ दफ़आत पर शदीद एतराज़ किया है।

इन पार्टीयों का एहसास है कि इन दफ़आत और लोक आयुक़्तों की वजह से रियास्तों के हुक़ूक़ सल्ब कर लिए जाएंगे। रियास्ती हुकूमतें अपनी ख़ुद के इंसेदाद रिश्वत सतानी इदारों के हुक़ूक़ पर आंच आने की फ़िक्र ज़ाहिर कर रही हैं कल जमाती इजलास में वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने कहा कि इनकी हुकूमत एक मूसिर लोक पाल क़ानून लाने की पाबंद अह्द है।

ताहम इस तात्तुल को दूर नहीं किया जा सका। क्योंकि अपोज़ीशन पार्टीयां अपने एतराज़ात पर अड़े रहे क्योंकि गुज़श्ता साल लोक सभा में मनज़ूरा मुजव्वज़ा क़ानून उन्हें क़ुबूल नहीं है। इसका मतलब ये हुआ कि लोक सभा की मंज़ूरी के बावजूद रिश्वत सतानी के ख़ातमा के लिए एक मज़बूत बिल लाने का मसला मुअल्लक़ ही रह जाएगा।

अपोज़ीशन का मुतालिबा है कि लोक पाल बिल से लोक आयुक़्तों को ग़ैर मरबूत किया जाए। लोक पाल के लिए की जाने वाली भरतीयों और तक़र्रुत को ख़ालिस जमहूरी तर्ज़ पर किया जाय इस लोक पाल के तहत एक आज़ाद तहक़ीक़ाती एजेंसी क़ायम की जाए इस लोक पाल के लिए भूक हड़ताल करने वाले अन्ना हज़ारे ने हुकूमत के लोक पाल को वापस लेने का मुतालिबा किया। क्योंकि उनकी नज़र में ये बिल बहुत ही कमज़ोर है।

रिश्वत के ख़ातमा के लिए इस बिल का इस्तेमाल बेफ़ैज़ साबित होगा। रिश्वत के ख़ातमा के लिए हुकूमत की कोशिशों को क़ौम से ग़द्दारी के मुतरादिफ़ क़रार देने वाले अन्ना हज़ारे ने यू पी ए हुकूमत को फ़रेबी हुकूमत कहा है। अन्ना हज़ारे को शायद ये मालूम नहीं कि इस मुल्क का सियासतदां सिर्फ़ सियासतदां ही होता है। ख़ाह वो मनमोहन सिंह हो या लोक सभा, राज्य सभा का कोई रुकन उनके सयासी मुफ़ादात पर आंच आने वाली कोई भी बात क़ुबूल नहीं होती।

रिश्वत पर इख्तेलाफ़ तो किया जाता है, इस लानत को ख़तम करने के जज़बा की भरपूर हिमायत की जाती है मगर जब अमल का वक़्त आता है तो उमूमी तौर पर मुख़्तलिफ़ और हक़ीक़त के ज़्यादा क़रीब पहूंचने के बजाय इख्तेलाफ़ राय को हवा दे कर मुआमला को पेचीदा बनाया जाता है।

सियासतदानों की ये आदत है कि वो मसला को तूल दें। अन्ना हज़ारे जैसे लोग अवाम के लिए काम करते हैं तो वो किनारे पर बैठ कर लहरों का जायज़ा नहीं लेते बल्कि वो मुसलसल भपरी हुई लहरों से नबरद आज़मा होते हैं। मगर हिंदूस्तानी सियासतदां की जानिब से उठाई जाने वाली लहरें ऐसी नहीं हैं कि इनसे अन्ना हज़ारे जैसे समाजी कारकुन नबरद आज़मा होने में कामयाब होंगे। क्योंकि रिश्वत सतानी के वाक़्यात को बेनकाब करने की पादाश में हाल ही में तक़रीबन 25 दयानतदार शहरीयों को मौत के घाट उतार दिया गया है।

इस तरह की अम्वात को रोका जा सकता था लेकिन हुकूमत इस मसला पर संजीदा नहीं है। उसे एक मज़बूत लोक पाल बिल लाने में दिलचस्पी नहीं है। ऐसे में रिश्वत के ख़िलाफ़ मुल्क गीर मुहिम चलाने और अवाम में बेदारी पैदा करने की कोशिशें किस हद तक कामयाब होंगी ये कहना मुश्किल है। समाजी कारकुनों ने अपने तौर पर एक से ज़ाइद मर्तबा कोशिश की है कि सरकारी इदारों में रिश्वत सतानी का ख़ातमा किया जाए।

इस मुल्क के सियास्तदान ख़ासे सयाने हैं और इन में सयासी उजलत पसंदी भी होती है। इसलिए तमाम तर कोशिशों के बावजूद रिश्वत के ख़िलाफ़ इक़दामात में पीछे होते हैं। रिश्वत की तारीख़ का मुताला रखने वाले जानते हैं कि चोर का शोर करने वाले ही इस शोर को मसलिहतों के नीचे दबा देते हैं, वज़ीर-ए-आज़म के तलब कर्दा कल जमाती इजलास में भी यही देखा गया हर लीडर मस्लेहत से काम लेता हुआ नज़र आया।

वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने कोशिश तो की थी कि रिश्वत के ख़ातमा के लिए इतेफ़ाक़ राय पैदा किया जाए मगर ये इत्तेफ़ाक़ राय कहीं से भी निकल ना सका किसी भी सियासतदां ने अपने ज़मीर का बोझ हल्का करने की कोशिश नहीं की। इजलास के नतीजा से यही पता चलता है कि रिश्वत सतानी की गंदगी के ढेर पर बैठे हुए अफ़राद या सियासतदां उस ढेर से पर्दा हटाना नहीं चाहते क्योंकि ये उनके मुफ़ाद में नहीं है।