लोक पाल के लिए जोश‍ व् ज़ुँनू

लोक पाल मुअम्मा की कुंजी किस के पास है इस का पता चलाने के लिए यूपी ए ने बज़ाहिर कोशिशों का आग़ाज़ कर दिया है। वज़ीर-ए-आज़म को लोक पाल के दायरा के तहत लाने से इत्तिफ़ाक़ करते हुए इस बल का नाक नक़्शा बनाया जा रहा है।

कल जमाती इजलास से ये उम्मीद पैदा करने की कोशिश की गई कि रिश्वत सतानी ख़ातमा का हर पार्टी जज़बा रखती है। इस अहम कल जमाती इजलास में अगर चूँकि सयासी पार्टीयों ने रिश्वत के ख़िलाफ़ बे चेहरा जंग लड़ने से गुरेज़ तो किया है मगर उन की नीयतों के कई बाब अब तक पर इसरारीयत के दुबैज़ पर्दों में लिपटे हुए हैं। लोक पाल बल को मंज़ूर कराने के लिए यू पी ए हुकूमत ने पहली रुकावट तो दूर कर ली है।

वज़ीर-ए-आज़म की 7 रेस कोर्स रिहायश गाह पर मुनाक़िदा इजलास में लोक पाल के बड़े मसाइल पर वसीअ तर इत्तिफ़ाक़ राय पैदा करने इस इजलास को कारआमद क़रार दिया गया। ये मुआहिदा किया गया कि बल के तहत वज़ीर-ए-आज़म के दफ़्तर को भी शामिल किया जाय इस के लिए चंद शराइत रखे गए हैं। वज़ीर-ए-आज़म के दफ़्तर के ख़ारिजी, क़ौमी और सलामती उमूर को लोक पाल के दायरा से दूर खा गया है। ग्रुप सी मुलाज़मीन को मुजव्वज़ा लोक पाल बल के दायरा में लाने पर ज़ोर दिया गया है।

अलबत्ता ये सवाल उठता है कि हलीफ़ पार्टीयों ने सी बी आई को लोक पाल के दायरा में लाने की किस लिए मुख़ालिफ़त की सी बी आई को भी इस क़ानून के तहत लाने का परज़ोर मुतालिबा हो रहा है। इस की एक वजह ये होसकती है कि इंसिदाद रिश्वत सतानी केसों से निमटने के लिए सी बी आई का सरकारी सतह पर मन पसंदाना तरीक़ा से इस्तिमाल होता है। जेसिका अन्ना हज़ारे की टीम ने कांग्रेस और बी जे पी पर इल्ज़ाम आइद किया है कि ये पार्टीयां जब कभी बरसर-ए-इक्तदार होती हैं सी बी आई को सयासी मक़सद बरारी के लिए इस्तिमाल करती हैं।

मुल्क में जहां कहीं अस्क़ामस हुए हैं अपने सयासी मुख़ालिफ़ीन के ख़िलाफ़ सी बी आई का बेजा इस्तिमाल किया गया। ताज कोरीडोर केस हो, चारा अस्क़ाम हो या दीगर बड़े धांदलियों में सी बी आई को एक वक़्त मुक़र्ररा के लिए इस्तिमाल करते हुए सयासी हरीफ़ों को परेशान किया गया।

तमिलनाडु में जब जया ललीता की हुकूमत थी डी ऐम के के इशारों पर उस वक़्त की वाजपाई हुकूमत ने सी बी आई का इस्तिमाल किया और पाँसा पलटा तो जया ललीता वाजपाई हुकूमत की हामी होगई और मुख़ालिफ़त का रुख ही तबदील होगया ऐसे ही सयासी वाक़ियात के तनाज़ुर में सी बी आई की कारकर्दगी को देखा जा सकता है।

अब गै़रक़ानूनी कानकनी का मसला हो, 2G अस्क़ाम या तेलगु देशम के सरबराह चंद्रा बाबू नायडू के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का मुआमला इन तमाम के पस-ए-मंज़र में सी बी आई का इस्तिमाल सिर्फ़ सयासी बदनीयती पर मबनी दिखाई देता है। इस लिए सी बी आई को लोक पाल के दायरा कार में लाने से गुरेज़ करने की कोशिश की जा रही है।

सी बी आई का ख़ुद एहसास है कि लोक पाल बिल क़ानून से इस का वजूद कमज़ोर पड़ जाएगा क्योंकि इंसिदाद रिश्वत सतानी केसों में लोक पाल की जानिब से इबतिदाई तहक़ीक़ात के बाद जब इन केसों को सी बी आई के सपुर्द करदिया जाएगा तो एजैंसी की असर पज़ीरी मुतास्सिर होगी और वो तलाशी काररोईआं अंजाम देने की हैरतअंगेज़ अंसर से महरूम हो जाएगी। बहरहाल हुकूमत इन तमाम बातों को किसी हद तक नज़रअंदाज करके अपने हलीफ़ों और अपोज़ीशन को ये एहसास दिलाना चाहती है कि वो लोक पाल बल के ख़िलाफ़ नहीं है।

इस लिए वो अपनी जानिब से लोक पाल के ताल्लुक़ से जारी मश्क़ को मूसिर और नतीजाख़ेज़ बनाना चाहती है। क्योंकि उसे पार्लीमैंट में बैरूनी रास्त सरमाया कारी FDI के मसला पर तल्ख़ तजुर्बा से गुज़रना पड़ा है। वो नहीं चाहती है कि पार्लीमैंट में फिर एक बार उसे हलीफ़ों और अप्पोज़ीशन के सामने घुटने टेकने पड़ें क्योंकि इतवार के दिन अन्ना हज़ारे की एक रोज़ा भूक हड़ताल की हिमायत तक़रीबन सयासी पार्टीयों के क़ाइदीन ने की है।

हुकूमत इस बल को पार्लीमैंट के सरमाई सैशन से क़बल जो 22 दिबर को आख़िरी दिन है मंज़ूर करा ले तो वो मुल्क गैर् सतह पर अवामी एहतिजाज से महफ़ूज़ रहेगी। अन्ना हज़ारे ने अपने एहतिजाज के ज़रीया कांग्रेस को ख़ौफ़ज़दा करने की कोशिश की। इस 125 साला क़दीम पार्टी को अना हज़ारे का ख़ौफ़ हो ना हो मगर उस को क़ौमी सतह पर इंसिदाद रिश्वत सतानी के ताल्लुक़ से उठने वाली एहितजाजी लहर की नब्ज़ पहचान लेना ज़रूरी था सो इस ने काबीना में लोक पाल बल पर इत्तिफ़ाक़ राय पैदा करने की कोशिश की।

अना हज़ारे के पीछे आर एस एस या सिंह परिवार का टोला है तो लोक पाल बल के नफ़ाज़ के लिए भी इस टोले की कोशिशें कामयाब होंगी। जमहूरीयत में एक प्लेटफार्म पर मसला का जायज़ा लेना ही एक बेहतरीन फ़ोर्म समझा गया है तो आइन्दा भी इस तरह के मसाइल हल करने के लिए एक प्लेटफार्म पर सयासी क़ाइदीन को जमा करते हुए जमहूरीयत की आड़ में कुछ ज़ाती मुफ़ादात से मरबूत फ़ैसले किए जा सकते हैं।

लेकिन इन से बढ़ कर पारलीमानी जमहूरीयत और इस के तक़द्दुस को कमज़ोर करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिये। सयासी क़ियादत कुमलक के वसीअ तर मुफ़ाद में बेहतर ख़्याल करते हुए क़दम उठाना होगा। रिश्वत सतानी का ख़ातमा हुकूमत को मजबूर करने की कोशिश किस हद तक कामयाब होगी ये तो वक़्त ही बताएगा लेकिन रिश्वत के ख़ातमा के लिए मुक़र्रर किए जाने वाले एहदाफ़-ओ-मक़ासिद के लिए जोश‍ व् ज़ुँनू की कैफ़ीयत पारलीमानी जमहूरीयत के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा करती है।