लोक पाल बिल और हुकूमत

लोक पाल बिल पर हुकूमत को नाकामी का मुंह देखना पड़ा है । लोक सभा में जहां हुकूमत इस बल को दस्तूरी मौक़िफ़ दिलाने में नाकाम रही है वहीं उसे राज्य सभा में इस बिल की मंज़ूरी में अददी ताक़त की अदम दस्तयाबी की वजह से मुश्किलात का सामना था ।

इस सूरत-ए-हाल को समझते हुए हुकूमत ने एक मंसूबा के तहत काम किया और इस ने राज्य सभा में राय दही का सामना करने से गुरेज़ करते हुए वक़्त बर्बाद किया । राज्य सभा में जब तीन दिन का सेशन इख़तताम पज़ीर हुआ उस वक़्त भी इस बिल पर मुबाहिस का जवाब ही दिया जा रहा था ।

 

ऐवान में उस से क़बल मुसलसल ग्यारह घंटों तक मुबाहिस हुए । दौरान मुबाहिस हुकूमत को ना सिर्फ अप्पोज़ीशन जमातों बल्कि ख़ुद हुकूमत की अहम तरीन हलीफ़ जमातों के भी इख़तिलाफ़ का सामना करना पड़ा ।

तृणमूल कांग्रेस ने तो इस बल की मौजूदा हालत में मुख़ालिफ़त करते हुए कहा कि रियास्तों में लोक आयुक़्त के क़ियाम का जो दफ़ा है उसे पूरी तरह हज़फ़ करदिया जाना चाहीए। बाज़ जमातों का कहना था कि लोक आयुक़्त के क़ियाम को लाज़िमी क़रार देने की बजाय उसे इख़तियारी करदिया जाना चाहीए ।

बी जे पी की जानिब से लोक पाल के इदारा में मुस्लिम तहफ़्फुज़ात की मुख़ालिफ़त की गई तो कमीयूनिसट जमातों ने इस बल के दायरा इख़तियार में सी बी आई को लाने और लोक पाल को अज़ ख़ुद मुक़द्दमात का नोट लेते हुए तहक़ीक़ात करने का इख़तियार देने पर ज़ोर दिया था । जब मुसलसल ग्यारह घंटों की बेहस के दौरान हुकूमत को इस की तवक़्क़ो से ज़्यादा तरामीम और तहरीकात इलतिवा का सामना करना पड़ा तो इस ने मुबाहिस को तवालत देने के मंसूबा पर काम किया ।

ऐवान में अपोज़ीशन अरकान बारहा ये सवाल कर रहे थे कि आया कार्रवाई को रात बारह बजे के बाद भी जारी रखा जाएगा या नहीं। इस सवाल का रास्त जवाब देने से गुरेज़ करते हुए हुकूमत ने एक तरह से इस बल को बरफ़दान की नज़र करने का फ़ैसला करलिया था । मुसलसल रकावटों और गड़बड़ के बावजूद हुकूमत ने कोई जवाब नहीं दिया और पारलीमानी उमूर के वज़ीर मिस्टर पी के बंसल ने ऐवान मेंउस मसला पर जवाब देने में भी इख़तिसार से काम नहीं लिया ।

इस का नतीजा ये हुआ कि हंगामा आराई के दौरान सदर नशीन राज्य सभा जनाब हामिद अंसारी ने ऐवान की कार्रवाई को ग़ैर मुअय्यना मुद्दत केलिए मुल्तवी करदिया और हुकूमत इस बल को मंज़ूरी दिलाने में नाकाम रही ।


लोक पाल बिल पर जिस तरह से हुकूमत ने जिस तरह से इक़दामात किए हैं इन से हुकूमत की जलदबाज़ी का पता चलता है । ये कहा जा सकता है कि हुकूमत ने पाँच रियास्तों में इंतिख़ाबात के दौरान अना हज़ारे और उन के साथीयों की इमकानी मुहिम के असरात से बचने के लिए ये बिल पेश करने का फ़ैसला किया था ।

ताहम चूँकि उसे राज्य सभा में अक्सरीयत हासिल नहीं है इस लिए इस ने एक हिक्मत-ए-अमली के तहत इस बल को राज्य सभा में एक तरह से सुबू ताज किया है । लोक सभा में हुकूमत जहां इस बल को दस्तूरी मौक़िफ़ दिलाने में नाकाम रही थी वहीं राज्य सभा में उसे इस बल के इस्तिर्दाद या शिकस्त का ख़दशा था ।

ऐसी सूरत में हुकूमत को हज़ीमत का सामना करना पड़ सकता था । हुकूमत इस सूरत-ए-हाल से बचना चाहती थी इसी लिए इस ने एक हिक्मत-ए-अमली के तहत ऐवान के ज़रीया इस बल को इलतिवा का शिकार करने में कामयाबी हासिल करली । एक तरह से ये हुकूमत की नाकामी भी है क्योंकि अपोज़ीशन के इल्ज़ाम के मुताबिक़ हुकूमत ने अमला पार्लीमैंट से फ़रार इख़तियार किया है । यक़ीनी तौर पर हुकूमत का ये रवैय्या पार्लीमेंट से फ़रार ही के मुतरादिफ़ है ।

हुकूमत को ऐसा तर्ज़ अमल इख़तियार करने की बजाय अपोज़ीशन जमातों को एतिमाद में लेते हुए काम करना चाहीए था । हुकूमत अपने तौर पर अपने मंसूबों में कामयाब तो ज़रूर हुई है लेकिन अवामी सतह पर उसे शिकस्त हुई है और उसे यक़ीनी तौर पर हज़ीमत का सामना करना पड़ेगा।

ये हुकूमत की मनफ़ी हिक्मत-ए-अमली थी जिस की मुज़म्मत की जानी चाहीए क्योंकि हुकूमत को हमेशा मुसबत अंदाज़ फ़िक्र के साथ काम करना चाहीए । हुकूमत ने अपने तर्ज़ अमल से जमहूरी उसूलों के साथ भी मज़ाक़ किया है और इस के सामने सिर्फ सयासी मुफ़ादात थे जमहूरी उसूल-ओ-क़वाइद नहीं।
अन्ना हज़ारे और उन के साथीयों का दबाव हुकूमत पर था कि वो एक मुक़र्ररा वक़्त के अंदर लोक पाल बिल की मंज़ूरी को यक़ीनी बनाए । हुकूमत को जलदबाज़ी की बजाय अपनी संजीदगी का इज़हार करना चाहीए था और एहमीयत इसी बात की है कि किस संजीदगी के साथ क़ानूनसाज़ी की जाती है ।

महिज़ गहमा गहमी में दो दिन के मुबाहिस और चंद दिन की मुशावरत से किसी क़ानून की तदवीन दर असल जमहूरी उसूलों के तहत मिलने वाले इख़तियार से मज़ाक़ कहा जा सकता है । हुकूमत ने इस बल पर जो तर्ज़ अमल इख़तियार किया था वो मनफ़ी था जिस की मुज़म्मत की जानी चाहीए ।

हुकूमत को ये बात ज़हन नशीन रखनी चाहीए थी कि वो मलिक के अवाम के सामने जवाबदेह है अन्ना हज़ारे और उन के साथीयों के आगे नहीं। उसे चंद अफ़राद के एक ग्रुप के दबाव के आगे झुकने और जलदबाज़ी का मुज़ाहरा करने की बजाय मलिक के अवाम और जमहूरी इक़दार को पेशे नज़र रखना चाहीए था ।

हुकूमत ने अपने मनफ़ी तर्ज़ अमल और मनफ़ी सोच से उन उसूलों को पामाल किया है और इस ने अमली तौर पर लोक पाल बल को सुबू ताज किया है । महिज़ सयासी मुफ़ादात और किसी ग्रुप की मुख़ालिफ़ हुकूमत मुहिम के ख़ौफ़ से क़ानूनसाज़ी नहीं होसकती बल्कि इस क़ानून के मुसबत पहलूओं और मुज़म्मिरात का जायज़ा लेकर अपोज़ीशन को भी एतिमाद में लेते हुए अगर क़ानूनसाज़ी की कोशिश की जाती तो आज सूरत-ए-हाल मुख़्तलिफ़ होती ।