लोक पाल बिल की मंज़ूरी

मुल्क़ को बोहरान, बे यक़ीनी और रिश्वत सतानी के अनासिर से पाक बनाने के लिए लोक पाल बिल को मंज़ूर करनेवाली हुकूमत कई अहम तक़ाज़ों को नजरअंदाज़ करके क़ौम की बेहतर रहनुमाई का दावा कर रही है।

लोक सभा ने लोक पाल और लोक आयुक्त बिल 2011 को मंज़ूरी तो दी लेकिन मुतवाज़ी दस्तूर (16 वीं तरमीमी) को शिकस्त होगई इस से लोक पाल को दस्तूरी मौक़िफ़ मिलता। हुकूमत के लिए अपनी अक्सरीयत के बावजूद सब से परेशानकुन सूरत-ए-हाल ये रही कि दस्तूरी तरमीमी मंज़ूरी के लिए मतलूब दो तिहाई अक्सरीयत हासिल नहीं हुई।

लोक पाल बिल और लोक आयुक्त को दस्तूरी मौक़िफ़ देते हुए उसे मज़बूत बनाने के लिए अप्पोज़ीशन बी जे पी ने ताईद नहीं की। जिस की वजह से कांग्रेस के राहुल गांधी को मायूसी हुई कि दस्तूरी तरमीमी बल के 3 शक़ों को शिकस्त हो गई।

अपोज़ीशन ने कई तरमीमात पेश की थीं जिन का मुतालिबा था कि लोक पाल बिल में कॉरपोरेट और मीडीया को भी लाया जाए। लेकिन इन तरमीमात को शिकस्त हुई। ऐसे में बहुजन समाज पार्टी ने ऐवान से वाक आउट कर दिया। इन के मुतालिबात को पूरा नहीं किया गया। दस्तूरी मौक़िफ़ के हामिल लोक पाल को लाने में हुकूमत ने रिश्वत सतानी के कई वाक़ियात और स्क़ाम्स के पस-ए-मंज़र को मल्हूज़ नहीं रखा।

बदउनवानीयों के ख़ातमा के लिए जिस मज़बूत लोक पाल की ज़रूरत है इस को मंज़ूर किए बगै़र सिर्फ ज़ाबता की तकमील की जाये तो मसला जूं का तूं बरक़रार रहता है। रिश्वत के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने वाले अन्ना हज़ारे जैसे जहद कार आइन्दा भी आयेंगे और लोक पाल के बाद एक और लोक पाल का नारा लगेगा। हुकूमत ने अना हज़ारे के दबाव् में आने के बाद ही पुराने लोक पाल को वापस लेकर नया लोक पाल लाया है अब इस लोक पाल को अन्ना हज़ारे ने पेशकशी से क़बल ही मुस्तर्द करदिया क्यों कि उन्हें और उन की टीम ने इस बिल में कई खामियां और ख़राबियां निकाली हैं।

हुकूमत ने इस बल को लोक सभा में मंज़ूर करा लिया है मगर अब सीनीयर पारलीमेंटरीन से मंज़ूरी हासिल करने के लिए उसे अददी ताक़त की कमी के बाइस पशेमानी होगी। बिल को मंज़ूर कराने का उगला क़दम राज्य सभा है सदर जमहूरीया के पास बल को मंज़ूरी के लिए रवाना कहा और हुकूमत को राज्य सभा से भी बल की मंज़ूरी हासिल करनी है।

यहां उसे शिकस्त होगी या फिर बिल को मंज़ूर कराने के लिए अपोज़ीशन के रहम-ओ-करम पर रहना पड़ेगा। लोक सभा में यू पी ए हुकूमत की अक्सरीयत हाल ही में आर एलडी के 5 अरकान-ए-पार्लीमैंट की ताईद मिलने के बाद 277 होगई है मगर राज्य सभा में हुकूमत को अक्सरीयत की कमी का सामना है। जिस लोक पाल बिल को मंज़ूर कराने के लिए अना हज़ारे भूक हड़ताल कररहे हैं इस में कई अहम नकात शामिल हैं और हुकूमत अना हज़ारे के लोक पाल को लाने से गुरेज़ करते हुए अपना लोक पाल लाया है अब इस मसला पर एक तवील बेहस छिड़ेगी और ये तनाज़ा बरक़रार रहेगा यानी रिश्वत सतानी के ख़िलाफ़ हर कोई कोशिश करता नज़र आएगा मगर ये लानत जूं का तूं बरक़रार रहेगी।

वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने पार्लीमैंट में मुबाहिस में हिस्सा लेते हुए कहा कर क़ौम को लोक पाल का बेसबरी से इंतिज़ार है मगर क्या मलिक के अवाम एक ऐसे लोक पाल का इंतिज़ार कररहे थे जिस में कोई दाँत ही नहीं हूँ क़ौम को एक ऐसे लोक पाल का इंतिज़ार है जो रिश्वत को मूसिर तरीक़ा से निमट सकी। जिन लोक पाल तहरीक ने इस्लाहात की राह फ़राहम की तो हुकूमत का काम था कि वो सरकारी निज़ाम में इस्लाहात लाते हुए रिश्वत सतानी की लानत को ख़तम करने मज़बूत क़ानून बनाये, किसी भी तहरीक को यूं ही नज़रअंदाज कर दिया जाना आइन्दा के लिए मुनासिब नहीं बल्कि अवाम की तहरीकों से ही मज़बूत क़ियादत उभरती है।

अन्ना हज़ारे की तहरीक को अवाम की ताईद हासिल हो या ना हो जब अवाम की तहरीकें जन्म लेंगी तो फिर हुकूमत को एक दिन अपनी ख़राबियों ख़ामीयों का जवाब देना पड़ेगा। मलिक का हर शहरी ऐसा मालूम होता है कि सियासत और सियासतदानों से बेज़ार हो चुका है वो एक अच्छे सयासी माहौल का इंतिज़ार कर रहा है।

वज़ीर-ए-आज़म के इस ख़्याल के बरअक्स के मलिक के अवाम लोक पाल का इंतिज़ार कररहे हैं। एक बेहतरीन हुकूमत और दयानतदार-ओ-शफ़्फ़ाफ़ सरकारी निज़ाम का अवाम बेचैनी से इंतिज़ार कर रहे हैं। मौजूदा सियासतदानों में से कई अफ़राद तो होसकता है कि अन्ना हज़ारे और उन की टीम से ख़ुश ना हो‍ क्योंकि ये लोग मैदानों और सड़कों पर जमा होकर सियासतदानों की ख़राबियां ब्यान कररहे हैं।

बिलाशुबा पार्लीमैंट अज़ीम है और इस से भी अज़ीम अवाम का फ़ैसला होता हैं अरकान-ए-पार्लीमैंट ने पारलीमानी तक़द्दुस को पामाल किया और इस की आड़ में बरसों से करोड़ों रुपय की बदउनवानीयाँ की हैं तो पारलीमानी तक़द्दुस ही पामाल किया है। जब एक मज़बूत पार्लीमैंट के होते हुए भी रिश्वत सतानी का ख़ातमा नहीं होसका तो फिर आम आदमी को अपने एहसास और नाराज़गी के इज़हार के लिए सड़कों और मैदानों में जमा होने के लिए मजबूर करने वाले यही सियासतदां हैं।

अगर सियासतदानों ने पार्लीमैंट के तक़द्दुस की ख़ियानत ना की होती और अपने ज़मीर के साथ राय दहिंदों के आरिज़ों के ख़िलाफ़ ग़द्दारी ना की होती तो मलिक के सरकारी निज़ाम में शफ़्फ़ाफ़ियत और दियानतदारी पाई जाती और फिर किसी को लोक पाल बल के लिए ज़िद करते हुए सड़कों और मैदानों में जमा होने की ज़रूरत ना होती। अब वक़्त आगया है कि उन्हें और दस्तूर की बालादस्ती को एहमीयत दी जाय अवाम को बताया जाय कि हुकूमत ने अपने फ़राइज़ से कहां और किस तरह इन्हिराफ़ किया है।