झारखंडी पहचान, नौकरी के लिए मुक़ामी पॉलिसी, सरना मजहब कोड समेत 21 नुकाती मुताल्बात की हिमायत में बुध को मोरहाबादी मैदान में आदिवासी मूलवासी अधिकार महारैली हुई। एमएलए बंधु तिर्की ने कहा कि रियासत की तशकील के 10 साल बाद भी एक भी तकर्रुरी नहीं हुई है। यह हमारे समाज को बर्बाद करने की साजिश है।
गांव के स्कूलों में टीचर नहीं हैं। तालीम का हक़ मिला, पर किसी तालिबे इल्म को फेल नहीं करना है। क्या ऐसे में आदिवासी मूलवासी बच्चे शहरी बच्चों से मुक़ाबला कर पायेंगे? अगर 27 जून तक मुक़ामी पॉलिसी नहीं बनी, तो इस्तीफा देकर इंतिख़ाब की मांग करेंगे। अगर लोग साथ देंगे, तो 10 एमएलए खड़ा कर देंगे। बाहर से आया सख्स आदिवासी-मूलवासियों की तकदीर नहीं बदल सकता। उन्होंने बिहार में पीटे असातिज़ा उमेश महतो को एजाज़ भी किया। उमेश महतो ज्वाइन करने के लिए बिहार गये थे।
उन्होंने कहा कि जेपीएससी पीटी में 2223 नौजवान कामयाब हुए हैं, जिनमें से दो हजार दूसरे रियासत के हैं। झारखंड में तकर्रुरी के बदले ठेके पर नौकरी दी जा रही है। सचिवालय में सिर्फ दो फीसद लोग हमारे हैं। रियासत के बीआरपी, सीआरपी पारा असातिज़ा नहीं जानते कि उनकी नौकरी कब चली जायेगी। खुसुसि रियासत का दरजा मुक़ामी के सवाल से ज्यादा अहम नहीं है।
छत्रपति शाही मुंडा ने कहा कि आदिवासी मूलवासी हक़ पार्टी बनानी है। बलिराम साहू ने कहा कि मुक़ामी पॉलिसी लागू करने के लिए वजीरे आला हिम्मत दिखायें। आजम अहमद ने कहा कि मुक़ामी पॉलिसी भीख नहीं, हक है। रतन तिर्की ने कहा कि लोगों को सियासी फैसला लेना ही होगा। सिद्धार्थ राय ने कहा कि बाहरी लोग मुक़ामी लोगों की कल्चर बर्बाद करना चाहते हैं। प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि आदिवासी-मूलवासी इत्तीहाद वक्त की मांग है। राजू महतो, जलील अंसारी, कमलेश ने भी ख्याल रखे