वक़्फ़ अराज़ी पर तामीर मौलाना आज़ाद यूनीवर्सिटी में मस्जिद नहीं

अब्बू एमल- यूं तो मौलाना आज़ाद नैशनल उर्दू यूनीवर्सिटी हालिया कुछ महीनों से मुसलसल मीडीया की शह सुर्ख़ीयों में आ रही है, मगर अफ़सोस कि इन में से हर एक ख़बर यूनीवर्सिटी में किसी ना किसी बेक़ाइदगी और उर्दू ज़बान से खिलवाड़ की ही इत्तिला देती है, मगर आज हम उर्दू यूनीवर्सिटी की तारीख़ के एक उसे बाब पर से पर्दा उठाने जा रहे हैं जिस का हम में से शायद ही कम लोगों को इलम होगा। मुफ़स्सिर क़ुरआन हज़रत मौलाना अब्बू उल-कलाम आज़ाद के नाम से मंसूब उर्दू की इस वाहिद यूनीवर्सिटी में जहां अक्सरीयत मुस्लिम असातिज़ा-ओ-तलबा और अमला की है, मुस्लमानों को नमाज़ की अदायगी के लिए एक भी मस्जिद तामीर नहीं की गई है।

ये मसला इस लिए भी संगीन हो जाता है के जिस ज़मीन पर मौलाना आज़ाद नैशनल उर्दू यूनीवर्सिटी का मुस्तक़िल कैंपस क़ायम किया गया है वो किसी और की नहीं बल्कि मुस्लमानों की जानिब से अल्लाह की ख़ातिर वक़्फ़ करदा ज़मीन है। जी हाँ ये कोई मुबालग़ा आराई नहीं है ख़ुद रियास्ती वज़ीर-ए-अक़लीयती बहबूद सय्यद अहमद उल्लाह से इसी महीना के अवाइल में जब उर्दू यूनीवर्सिटी में एक आलमी कान्फ़्रैंस का इफ़्तिताह करने आए थे तो उन्हों ने ख़ुद एतराफ़ किया था कि मुझे यहां ये देख कर ख़ुशी हो रही है कि उर्दू यूनीवर्सिटी भी अगरचे एक वक़्फ़ की ज़मीन पर क़ायम है मगर इस का इस्तिमाल तालीम के लिए हो रहा है और इस से मुस्लमानों को फ़ायदा हासिल होरहा है मगर रियास्ती वज़ीर मौसूफ़ को इस बात का इलम नहीं है कि वो उर्दू यूनीवर्सिटी अगरचे वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीन पर क़ायम की गई है मगर यहां पर मुस्लमानों को नमाज़ की अदायगी के लिए मस्जिद क़ायम करने की इजाज़त नहीं है।

इस मसला का जायज़ा लेने के लिए मैंने गुज़शता जुमा उर्दू यूनीवर्सिटी में नमाज़ की सहूलत देखने का फ़ैसला किया था। फरवरी का महीना ख़तम होने को है। दोपहर की गर्मी हर किसी को बेचैन करदेने के लिए काफ़ी थी। पूछने पर पता चला कि नमाज़ जुमा के लिए यूनीवर्सिटी की पार्किंग इलाक़ा में इंतिज़ाम किया जाता है। 214 एकर् की वसीअ-ओ-अरीज़ वक़्फ़ की ज़मीन पर क़ायम उर्दू की इस यूनीवर्सिटी में मुस्लमान नमाज़ जुमा भी पार्किंग के इलाक़ा में अदा करने पर मजबूर थे। तक़रीबन 2500 मुस्लमानों के लिए असातिज़ा तलबा-अमला के बशमोल जुमा के दिन इंतिज़ामीया ये एहसान करता है कि इस दिन गाड़ियां पार्किंग शैड से बाहर रखी जाती हैं और छोटी सी जगह पर हज़ारों का मजमा नमाज़ अदा करने पर मजबूर है।

वुज़ू करने के लिए कोई बाज़ाबता सहूलत नहीं, पार्किंग के इलाक़ा में नमाज़ पढ़ने से पार्किंग का भी मसला और मुस्लमानों के लिए भी मसाइल देखे गए। पूछने पर पता चला कि मौलाना अबदुल मोइज़ जो कि अरबिक डिपार्टमैंट के सदर भी हैं, इमामत और ख़िताबत की ज़िम्मेदारी निभाते हैं जिन को शैड में जगह मिली वो ख़ुशकिसमत वर्ना 2 बजे की तप्ती दोपहर में ऐन सूरज के नीचे नमाज़ पढ़ने की मजबूरी है। यूनीवर्सिटी के एक टीचर ने बड़े ही अफ़सोस के साथ बताया अल्लाह मियां की ज़मीन पर (वक़्फ़ ज़मीन) मुहम्मद मियां वाइस चांसलर तो पहले ही मुस्लमानों के दाख़िले को बंद करने पर तुले हुए हैं। वो अब मस्जिद की तामीर की इजाज़त नहीं देंगे।

गर्मी के मौसम में यूनीवर्सिटी के चंद असातिज़ा अपनी जानिब से पैसे जमा करके डेरे का इंतिज़ाम करते हैं ताकि धूप से महफ़ूज़ रहते हुए नमाज़ जुमा अदा कर सकें मगर पार्किंग के इलाक़ा में दोसौ तीन सौ से ज़ाइद लोग नमाज़ भी नहीं अदा करसकते और तप्ती धूप में उर्दू यूनीवर्सिटी के मुलाज़मीन और तलबा को गच्ची बाउली की दीगर मसाजिद का रुख करना पड़ता। उर्दू यूनीवर्सिटी वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीन पर क़ायम करदा है और अल्लाह के लिए वक़्फ़ करदा ज़मीन पर अल्लाह के बंदों को नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद नहीं। इस सिलसिले को जब हम वक़्फ़ बोर्ड चियरमैन ख़ुसरो पाशा से रुजूकिया तो उन्हों ने हैरत का इज़हार किया कि 214 एकर् वसीअ-ओ-अरीज़ अराज़ी में एक भी मस्जिद नहीं और पार्किंग लॉट पर जुमा अदा किया जाता है जिस पर हैरत और अफ़सोस का इज़हार किया,

लेकिन ऐसा लगता है कि ख़ुद मौलाना आज़ाद नैशनल उर्दू यूनीवर्सिटी में बरसर-ए-कार मुस्लमान मज़हब से बेज़ार हैं। हालिया अर्सा में जब उर्दू यूनीवर्सिटी में ईद मीलाद-उन्नबी (स०अ०व०) के इनइक़ाद का फ़ैसला किया गया तो पता चला कि इस तरह के मज़हबी प्रोग्राम की मुख़ालिफ़त किसी और ने नहीं बल्कि ख़ुद मुस्लमान हज़रात ने की जिन का ताल्लुक़ डिपार्टमैंट आफ़ पोलीटिक्ल साईंस और फ़ारसी डिपार्टमैंट से था।

यूनीवर्सिटी के पी एचडी स्कालरस ने बताया कि एक मर्तबा उन लोगों ने यूनीवर्सिटी के इंचार्ज वाइस चांसलर को दस्तख़ती मह्ज़र दिया था कि उन्हें मस्जिद की तामीर की इजाज़त दी जाय इस पर उन्हों ने ख़दशा ज़ाहिर किया कि अगर मुस्लमान यूनीवर्सिटी में मस्जिद बनाएंगे तो यूनीवर्सिटी का हिन्दू अमला मंदिर की तामीर का मितालिबा कर सकता है हालाँकि वक़्फ़ की ज़मीन पर मस्जिद तो बनाई जा सकती है मंदिर नहीं ये सब पर अयाँ है।

इन सारे हालात मैं ख़ुद यूनीवर्सिटी के वाइस चांसलर का किरदार इस्लाम पसंद फ़र्द के तौर पर सामने नहीं आता। उन्हों ने ख़ुद सालार जंग म्यूज़ीयम मैं मुनाक़िदा एक प्रोग्राम में इस का तास्सुर दिया था, लेकिन क्या कीजिए गा मुस्लमानों की सियासी क़ियादत को सियासत से फ़ुर्सत नहीं है और मज़हबी जमातों और तंज़ीमों को सियासी मुआमलात से दिलचस्पी रह गई। अब एसे हालात में अल्लाह की ज़मीन पर अल्लाह के घर की तामीर का ख़्याल सिर्फ़ अल्लाह के बंदों को ही आ सकता है। abuaimalazad@gmail.com