वक़्फ़ बोर्ड को मनी कोंडा की क़ीमती जायदाद से महरूम रखने मुख़्तलिफ़ हरबे

दरगाह हज़रत हुसैन शाह वली (र) से मुंसलिक मनी कोंडा जागीर में वाक़ै 1664 एकड़ अराज़ी के ज़िमन में तनाज़ेआत का आग़ाज़ 1959 -ए-से ही होचुका था ताहम आंधरा प्रदेश हाईकोर्ट इस ख़सूस में एक रिट दरख़ास्त 666 की यकसूई करते हुए जिस में बोर्ड आफ़ रेवन्यू एक फ़रीक़ था ओक़ाफ़ी क़रार दे दिया था जिस के ख़िलाफ़ कोई भी अदालत-ए-उज़्मा से रुजू नहीं हुआ था मगर अचानक 90 के दहे में हुकूमत ने इस अराज़ी को सरकारी क़रार देते हुए इस पर अपना इद्दिआ करलिया था और तेलगू देशम हुकूमत ने साल 2000-से आंधरा प्रदेश इंडस्ट्रियल इनफ़रास्ट्रक्चर कारपोरेशन के तवस्सुत से इस क़ता अराज़ी के हिस्से बख़रे करते हुए मल्टीनेशनल कंपनियों और क़ौमी सतह के इदारों को हवाला करना शुरू कर दिया।

यहां ये वज़ाहत ज़रूरी है कि तेलगू देशम के दौर-ए-हकूमत में इस जायदाद से मल्टीनेशनल कंपनियों को हवालगी के वक़्त उस की नौइयत सरकारी ही ज़ाहिर की गई थी चूँकि पहले वक़्फ़ सर्वे के बाद जारी करदा गज़्ट आलामीया में ग़लती से दरगाह की ओक़ाफ़ी जायदाद का इंदिराज नहीं हो सका था और ख़ुद वक़्फ़ बोर्ड भी इस बारे में ला इलम था ताहम बाद में वक़्फ़ बोर्ड को पता चलने पर तसहीही(सही करदा) आलामीया जारी किया गया । कांग्रेस के दौर में अलबत्ता जब लिनको हिलज़ और अम्मार प्रापर्टीज़ को जायदाद हवाला की जा रही थी उस वक़्त वक़्फ़ बोर्ड अपना इद्दिआ पेश करना शुरू कर दिया था मगर वक़्फ़ बोर्ड की सुनी अन सुनी करदी गई।

इन ज़मीनात के हवालगी की वापसी के मसला पर कांग्रेस हुकूमत का रवैय्या इंतिहाई बद बख्ताना और मुआनिदाना रहा है। शुरू से ही हुकूमत साज़िशी कार्यवायां करती रही और आख़िर वक़्त तक वक़्फ़ बोर्ड को इस कीमती जायदाद से महरूम करने की कोई कसर ना छोड़ी। इबतदा-ए-ही से कांग्रेस हुकूमत ने ओक़ाफ़ी जायदादों पर सरकारी क़ब्ज़ों के ख़िलाफ़ उठने वाली आवाज़ को ताक़त के ज़रीया दबाने की कोशिश की । राज शेखर रेड्डी की हुकूमत ने जब ये महसूस किया कि उस वक़्त के वज़ीर अकलियती बहबूद मिस्टर मुहम्मद फ़रीद उद्दीन इस के इशारों पर काम करने के बजाय औक़ाफ़ की सेयानत में संजीदगी का मुज़ाहरा कर रहे हैं तो उन से अकलियती बहबूद का क़लमदान छीन लिया गया और उन की जगह मिस्टर मुहम्मद अली शब्बीर को अकलियती बहबूद को वज़ीर बना दिया गया ।

यही नहीं बल्कि उस वक़्त की परिनसपाल सिक्रेटरी मिसिज़ छाया रतन और मिस्टर शफीक उल्ज़मां के भी तबादले किए गए जो सेयानत औक़ाफ़ में जुरातमनदाना इक़दामात कर रहे थे। मुहम्मद अली रिफ़अत सिक्रेटरी अक़ल्लीयती बहबूद पर दबाओ डालते हुए मुक़द्दमा को कमज़ोर करने की कोशिश की गई यहां तक कि इन का तबादला करदिया गया। मुक़द्दमा केआग़ाज़ से ही हुकूमत साज़िशी इक़दामात करती रही, हता के वक़्फ़ बोर्ड के दाख़िल करदा हलफ़नामा को तब्दील किया गया। जिस वक़्त ये सब कार्यवाइयां की जा रही थीं उस वक़्त मुंख़बा बोर्ड नहीं था और हुकूमत स्पैशल ऑफिसर्स और चीफ एकज़ेकटिव ऑफिसर्स को अपने अहकामात की तामील करने पर मजबूर करती रही।

चीफ सिक्रेटरी के ज़रीया दाख़िल करदा हलफ़नामा में बदतरीन फ़िर्कापरस्ती का मुज़ाहरा करते हुए ये दावा-किया गया कि जब बाबरी मस्जिद की ज़मीन को हुकूमत हासिल कर सकती है तो किसी भी ओक़ाफ़ी जायदाद को हासिल करने का हुकूमत को हक़ हासिल है। वक़्फ़ बोर्ड के चीफ एकज़ेकेटिव ऑफीसर के ज़रीया ये हलफ़नामा दाख़िल करवाया गया कि वक़्फ़ बोर्ड मुतनाज़ा अराज़ी का मुआवज़ा हासिल करने आमादा है जो वक़्फ़ बोर्ड के मौक़िफ़ को कमज़ोर करने के मुतरादिफ़ है। हुकूमत ने वक़्फ़ बोर्ड के ख़िलाफ़ ऐडवुकेट जनरल और मुल्क के नामवर क़ानूनदां साबिक़ अटार्नी जनरल मिस्टर सोली सोराबजी की ख़िदमात से इस्तिफ़ादा किया था।

वाहिद रुकनी बंच और उस वक़्त के चीफ जस्टिस मिस्टर संघवी की ज़ेर क़ियादत डिवीज़न बंच पर समाअत के दौरान वक़्फ़ बोर्ड के स्टैंडिंग कौंसल पर हुकूमत की जानिब से इस क़दर दबाओ डाला जाता था कि उन्हें खुल कर अपना मौक़िफ़ पेश करने का भी मौक़ा नहीं दिया जाता था। बाद अज़ां जब वक़्फ़ बोर्ड ने जनाब शफीक उल्ज़मां की ख़िदमात से इस्तिफ़ादा किया तो वक़्फ़ बोर्ड का मौक़िफ़ मुस्तहकम होना शुरू हो गया जिन्हों ने बड़ी जुराअत मनदी के साथ हालात का सामना किया। वक़्फ़ ट्रब्यूनल में जब दरगाह की इंतिज़ामी कमेटी की जानिब से इनजनकशन आर्डर के लिए दरख़ास्त दायर की गई तो मौजूदा सदर नशीन वक़्फ़ बोर्ड जनाब सय्यद ग़ुलाम अफ़ज़ल ब्याबानी ख़ुसरो पाशा ने भारी फीस की परवाह किए बगैर जनाब शफीक उलरहमान मुहाजिर को ही वक़्फ़ बोर्ड की नुमाइंदगी करने के लिए मुक़र्रर किया जिस पर लानको हिलज़ और दीगर कंपनियों और उन के वुकला को बेचैनी शुरू हो गई चूँकि वो हाईकोर्ट में उन्हें जनाब शफीक उल रहमान मुहाजिर से साबिक़ा पड़ चुका था।

उन्हें वक़्फ़ बोर्ड की वकालत से हटाने की भी कोशिश की गई मगर सदर नशीन वक़्फ़ बोर्ड ने किसी किस्म का दबाओ क़ोबूल नहीं किया। वक़्फ़ ट्रब्यूनल ने जब इनजनकशन आर्डर जारी कर दिया तो हाईकोर्ट में इस को कलअदम क़रार देने के लिए सी आर पीज़ दायर किए गए, और अचानक एक मर्तबा ये मुक़द्दमा समाअत के लिए पहुंच गया जिस पर जनाब शफीकउल रहमान मुहाजिर ने एतराज़ किया और चीफ जस्टिस को फ़ौरी एक मकतूब पेश करते हुए सी बी आई के ज़रीया इस मुआमला की तहकीकात करवाने का मुतालिबा किया। मुक़द्दमा की समाअत करने वाले मुअज़्ज़िज़ जज ने इस पर ये मुक़द्दमा चीफ जस्टिस से रुजू कर दिया।

चीफ जस्टिस ने इन मुक़द्दमात की समाअत मिस्टर जस्टिस ग़ुलाम मुहम्मद की वाहिद रुकनी बंच के हवाला की। मल्टीनेशनल कंपनियों के वुकला ने जब ये महसूस करलिया कि फैसला उन के हक़ में आने की उम्मीद नहीं है तो मुअज़्ज़िज़ जज से ये ख़ाहिश की कि मुक़द्दमा की आइन्दा समाअत बाद तातीलात रखी जाय तब तक वो सब मिल कर हुकूमत से नुमाइंदगी करेंगे कि वक़्फ़ बोर्ड को मुतबादिल अराज़ी फ़राहम की जाय। बाद तातीलात ये मुक़द्दमा चीफ जस्टिस की बंच पर पहुंच गया ताहम मिस्टर जस्टिस ककरो की सुबुकदोशी के बाद ये मुक़द्दमा मिस्टर जस्टिस वी वी एस राउ और मिस्टर कान्ता राउ की डे वीज़न बंच से रुजू किया गया।

यहां ये बात काबिल-ए-ग़ौर है कि बड़ी ही मक्कारी से कांग्रेस हुकूमत ने लानको हिलज़ को 108 एकड़ अराज़ी बहिसाब 4.27 करोड़ रुपये में हवाला की गई। ए पी आई आई सी की जानिब से लानको हिलज़ को अराज़ी के अलाटमैंट की दस्तावी ज़ में ये बताया गया कि ज़मीन की कीमत के तौर पर 60 लाख रुपये और डेवलपमेन्ट चार्जस के तौर पर 3.67 करोड़ रुपये अदा करने होंगे जबकि इस दौर में इस इलाक़ा में ज़मीन की मार्किट वैल्यू तकरीबन 25 करोड़ रुपये फ़ी एकड़ थी। ये इस लिए किया गया कि मुस्तक़बिल में अगर ये ज़मीन ओक़ाफ़ी क़रार पाती और वक़्फ़ बोर्ड अपना इद्दिआ पेश करता है तो इस ज़मीन की कीमत बहसाब 60 लाख रुपये फ़ी एकड़ ही अदा करने पड़े।

लानको हिलज़ ने इस ज़मीन की खरीदी के लिए सिर्फ 427 करोड़ रुपये अदा किए और फिर उस प्रोजेक्ट के आग़ाज़ करते हुए सिरफ 39 घंटों में सारी गुंजाईशें फ़रोख़त करते हुए अक़सात पर रक़ूमात हासिल करना शुरू कर दिया और इस्तिफ़ादा कुनुन्दगान से हासिल करदा रक़ूमात से ही तामीरात करना शुरू किया। लानको हिलज़ कंपनी ने इस प्रोजेक्ट में जगह 4,500 रुपये ता 5,900 करोड़ रुपये फ़ी फीट के हिसाब से फ़रोख़त करना शुरू किया जबकि इस प्रोजेक्ट की मजमूई लागत का तख़मीना सिर्फ 5,500 करोड़ रुपये का रखा गया है। इस तरह प्रोजेक्ट की तकमील पर कंपनी को 10,000 करोड़ रुपये का मुनाफ़ा हासिल होगा।