वक़्फ़ बोर्ड की कारकर्दगी बेहतर बनाने के लिए हुकूमत की जानिब से अगर्चे मसाई की जा रही है लेकिन बोर्ड की कारकर्दगी से मुताल्लिक़ कई मिसालें रोज़ाना मंज़रे आम पर आ रही हैं। वक़्फ़ बोर्ड का कोई शोबा ऐसा नहीं जिस की कारकर्दगी को इत्मीनान बख़्श क़रार दिया जा सके।
वक़्फ़ बोर्ड से मुताल्लिक़ दारुल क़ज़ात जहां से निकाह, तलाक़ और मज़हब से मुताल्लिक़ सर्टीफिकेट्स जारी किए जाते हैं, उस का कोई पुर्साने हाल नहीं। इस इदारे में दरमियानी अफ़राद का राज है और इस से वाबिस्ता अफ़राद की मनमानी से अवाम को मुश्किलात का सामना है।
अगर्चे ये इदारा वक़्फ़ बोर्ड की रोज़ाना आमदनी का ज़रीया है लेकिन ब्रोकर्स के लिए भी सरगर्मियों का अहम मर्कज़ बन चुका है। दारुल क़ज़ात की कारकर्दगी की अबतर मिसाल उस वक़्त मंज़रे आम पर आई जब गुज़िश्ता एक साल से निकाह नामे की तंसीख़ के लिए हुक्काम टाल मटोल से काम ले रहे हैं।
काज़ियों की बेक़ाईदगियों का ख़मियाज़ा अवाम को भुगतना पड़ रहा है और वक़्फ़ बोर्ड और दारुल क़ज़ात के हुक्काम भी अवाम की मदद से क़ासिर हैं। बताया जाता है कि एक साल क़ब्ल महबूबनगर के एक इलाक़ा से ताल्लुक़ रखने वाले क़ाज़ी ने भारी रक़म हासिल करते हुए हैदराबाद से ताल्लुक़ रखने वाले एक शख़्स का निकाहनामा जारी कर दिया जबकि शादी की कोई तक़रीब मुनाक़िद ही नहीं हुई और ना ही दुल्हन क़ाज़ी के रूबरू पेश की गई।
ज़रूरत इस बात की है कि स्पेशल ऑफीसर वक़्फ़ बोर्ड के सिलसिले में मुदाख़िलत करते हुए मातहत ओहदेदारों को हिदायत दें ताकि एक साल से परेशान हाल ख़ानदान को राहत मिल सके। साबिक़ में लड़की के बगैर इसी तरह निकाहनामा और मैरेज सर्टीफिकेट जारी किया गया था जिसे अदालत की हिदायत पर मंसूख़ किया गया।