वक़्फ़ क़ानून की ख़िलाफ़वरज़ी, मुक़ामी जमात को 2500 गज़ वक़्फ़ अराज़ी हवाले

हैदराबाद 31 जनवरी: विभाग अल्पसंख्यक कल्याण और वक्फ बोर्ड पर सियासी दबाव के नतीजे में अधिकारी कई ऐसे फैसले करने के लिए मजबूर हो चुके हैं, जो वक़्फ़ क़ानून के ख़िलाफ़ हैं।

ताजा घटना में सरकार की हलीफ़ पार्टी के दबाव में सचिव अल्पसंख्यक कल्याण जो वक्फ बोर्ड के ओहदेदार भी हैं, शहर में 2500 गज वक़्फ़ अराज़ी मुक़ामी पार्टी के शैक्षिक ट्रस्ट को 30 साला लीज़ पर अलाट कर दी।

लीज़ के अलाटमेंट में वक़्फ़ क़वाइद की संगीन ख़िलाफ़ वरज़ीयों की शिकायात मिली हैं। वक्फ बोर्ड की ओर से खामियों की पहचान के बावजूद सचिव अल्पसंख्यक कल्याण ने अपने इख़्तियारात का उपयोग करते हुए 30 साला लीज़ को मंजूरी दी और आदेश जारी कर दिए गए।

वाज़िह रहे कि अम्बरपेट में जामा मस्जिद के तहत 2500 गज वक़्फ़ अराज़ी मौजूद है जिस में उस्मानिया मॉडल हाई स्कूल हैं। स्कूल के लिए पिछले वर्षों में हर तीन महीने लीज़ मंज़ूर की जाती रही। वक़्फ़ ऐक्ट के अनुसार तीन साला लीज़ की मंज़ूरी के लिए वक़्फ़ बोर्ड को इख़्तियारात हासिल हैं लेकिन 30 साला लीज़ के लिए ज़रूरी है कि ओपन ऑक्शन किया जाये।

दिलचस्प बात यह है कि 30 साला लीज़ के लिये यह अराज़ी सालारे मिल्लत एजुकेशन ट्रस्ट के हवाले कर दी गई। सचिव अल्पसंख्यक कल्याण पहले जीओ जारी किया जिसके बाद वक्फ बोर्ड से आदेश की इजराई अमल में आई है।

बताया जाता है कि माहाना 15000 रुपये के मामूली किराए पर लीज़ को मंजूरी दी गई और हर साल सिर्फ 5 प्रतिशत की वृद्धि होगी। दिलचस्प बात तो यह है कि 2014 में वक्फ बोर्ड की ओर से किराए के संबंध में जो प्रस्ताव भेजा गया था, इसी किराए के ओहदेदार ने मंजूरी दी जबकि वक़्फ़ ऐक्ट के अनुसार मार्किट वैल्यू के हिसाब से किराया मुक़र्रर किया जाना चाहिए।

2013 में अधिकारियों ने स्कूल के लिए तीन वर्षीय लीज़ का किराया 11 से 15 हजार रुपये माहाना मुक़र्रर किया है। एक ओर सरकार ने मुक़ामी पार्टी को खुश करने के लिए 30 साला लीज़ को मंजूरी दी और साथ ही केवल 15000 किराया मुक़र्रर किया है। वक़्फ़ ऐक्ट के सेक्शन की धारा 52/2 के तहत सरकार को शिक्षा और चिकित्सा के लिए अराज़ी 30 साला लीज़ पर देने का अधिकार है लेकिन यह खुले हराज के जरिए होना चाहिए।

वक़्फ़ बोर्ड के ओहदेदारों की तरफ से सेक्रेटरी अक़ल्लीयती बहबूद को वक़्फ़ ऐक्ट के सिलसिले में तवज्जा दहानी के बावजूद भी उन्होंने वक़्फ़ ऐक्ट की परवाह नहीं की और मुक़ामी जमात के हक़ में फ़ैसला कर दिया।

वक़्फ़ माहिरीन के अनुसार 30 वर्षीय लीज़ के लिए ओपन ऑक्शन लाज़िमी है। इसके अलावा उक्त फैसले में 4 साल पुराने किराए को मंजूरी दी गई जबकि मौजूदा मार्किट वैल्यू के हिसाब से किराया मुक़र्रर किया जाना चाहिए था। इस तरह वक्फ बोर्ड के अहम फ़ैसलों पर मुक़ामी पार्टी का जबरदस्त दबाव देखा जा रहा है और उच्च अधिकारी उनके इशारों पर काम कर रहे हैं।