वकील रखने की हैसियत में नहीं रहे शहाबुद्दीन

कभी राम जेठमलानी को अपना वकील रखने वाले सिवान के साबिक़ एमपी मो. शहाबुद्दीन की माली हालत इतनी खराब हो जाएगी, किसी ने सोचा भी नहीं होगा। नौ साल से मुसलसल जेल में रहने वाले शहाबुद्दीन मुजरिमाना मामलात से इस तरह दब गए हैं कि वे अब वकील रखने लायक भी नहीं रहे हैं। पटना हाईकोर्ट के जज शिवाजी पांडेय को जब यह जानकारी मिली, तो वे भी हैरान हो गए।

दरअसल, सिवान के जिला अहलकार ने निचली अदालत के एक फैसले को यहां चैलेंज है। सिवान के एडीजे एसके पांडेय ने गुजिशता 14 जून को साबिक़ राजद एमपी को मनमाफिक वकील मुहैया कराने का हुक्म रियासत हुकूमत को दिया था। इस हुक्म पर पटना हाईकोर्ट ने जुमा को आखरी रोक लगाते हुए शहाबुद्दीन को नोटिस जारी की है। उनसे जानकारी मांगी गयी है कि क्या वे सचमुच माली हालत से गुजर रहे हैं? जवाब आने के बाद हाईकोर्ट तय करेगा कि क्या साबिक़ एमपी सचमुच वकील रखने की हैसियत में नहीं हैं?

शहाबुद्दीन, 2004 से जेल में बंद हैं। जेल जाने के पहले और जेल में रहते हुए उन्होंने एक से बढ़कर एक नामी वकील रखे। उनके मुकदमे की पैरवी करने वाले एक वकील इस वक़्त पटना हाईकोर्ट के जज हैं। पटना हाईकोर्ट के यदुवंश गिरि और योगेश चन्द्र वर्मा जैसे सीनियर वकील भी कभी शहाबुद्दीन के मुकदमों की पैरवी कर चुके हैं।

बहरहाल, रियासत हुकूमत की दरख्वास्त पर अपना हक़ रखते हुए वकील श्यामेश्वर दयाल ने शहाबुद्दीन की माली हालत को ढकोसला करार दिया। उन्होंने कहा कि शहाबुद्दीन की हैसियत को कम में नहीं आंका जाना चाहिए। वे माली तौर से खुशहाल हैं। उनकी अबाई जायदाद भी कम नहीं है। साबिक़ एमपी होने के नाते पेंशन भी मिलता है। दयाल ने बताया कि फिलहाल साबिक़ एमपी के खिलाफ 30 केस मजिस्ट्रेट की अदालत में ज़ेरे अलतवा हैं। 15 सेशन अदालत में है, जबकि 11 में ट्रायल चल रहा है। चार में दरख्वास्त दायर की गयी है। उन्होंने कहा कि साबिक़ एमपी को वकील का एक पैनल दिया गया था। उसमें से एक वकील को चुनना था। उन्होंने एक का सेलेक्शन किया। वे पहले भी शहाबुद्दीन के वकील रह चुके है। अगर अदालत का हुक्म हुआ तो वकील का खर्च अब रियासत हुकूमत को देना होगा।