ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर बहस थमने का नाम नहीं ले रही है। एक तरफ केंद्र सरकार इस प्रथा के खिलाफ है दुसरी तरफ मुस्लिम संगठनों का आरोप है केंद्र सरकार यूनिफार्म सिविल कोड की आड़ लेकर मजहबी आजादी को खत्म करने की साजिश कर रही है। इन दोनो पहलूओं से अलग मुस्लिम महिला नेता केंद्र के हलफनामे के बारे में कुछ भी टिप्पणी करने से बच रही हैं लेकिन तीन बार तलाक की प्रथा की कड़ी आलोचना भी कर रही हैं। इस पर खुल कर बोल भी रही हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाश्मी तीन तलाक की प्रथा को खत्म करने के हक में है। शबनम हाश्मी का कहना है कि एक बार में तीन तलाक का कांसेप्ट इस्लाम में नहीं है। इस्लामिक लॉ में मर्द और औरत से कोई भेदभाव नहीं किया गया है। वक्त की दरकार है ट्रिपल तलाक इन वन सेंटिग को खत्म किया जाये। इस तरह की प्रथा को सभ्य समाज में कोई जगह नहीं देनी चाहिए।
वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम महिला आंदोलन की फाउंडर जाकिया सोमन का कहना है कि इस्लामिक इतिहास में अगर हम जायेंगे तो कुछ सामाजिक हालात को देखते हुए हजरत उमर ने ये तरीका इजाद किया था। आज ना तो उस समय जैसी सामाजिक परिस्थितियां हैं और ना ही एक बार में तलाक कहने की इस तरीके की जरूरत है। पाकिस्तान जैसे कई मुस्लिम देशों में फटाफट तलाक को गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है क्योंकि इस्लाम में भी नशे, गुस्से या किसी आवेश में आकर तलाक देने की मनाही है लेकिन हमारे देश का मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस प्रथा पर बात करने को भी तैयार नहीं है।
नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री रह चुकीं मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने केंद्र के रूख पर तो कोई टिप्पणी नहीं की है,उन्होंने कहा कि ज्यादातर इस्लामी देशों ने इस्लाम की सही व्याख्या की है जहां ट्रिपल तलाक इन वन सेंटिग बैन है।उन्होंने कहा कि क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद (सल्लललाहु अलैहि वसल्लम)ने कहा है कि जिन्होंने इंसान के साथ नाइंसाफी किया है वे हमारे मजहब का सही से अमल नहीं कर रहा है।
जो इस्लाम का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं और महिलाओं से समान बर्ताव नहीं कर रहे हैं, वे गलत हैं। मैं जो कहती हूं उसमें यकीन रखती हूं। यहां तक कि एक महिला भी सम्पति के अधिकार, अन्याय और अन्य हालात में शादी तोड़ने की मांग कर सकती है लेकिन इस बारे में कोई बात नहीं करता।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और केंद्र सरकार की तकरार के बाद ये मुद्दा अभी शांत नहीं होने वाला। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को उन आवाजों पर गौर करना चाहिए जिसको वो नजरअंदाज करती रही हैं।