वसीम अकरम त्यागी को “राष्ट्रीय सदभावना पुरूस्कार” मिलने पर डॉ. उमर फ़ारूक़ का खुला ख़त

प्रिय वसीम अकरम त्यागी ,

वसीम अकरम त्यागी आप वो शख़्सियत हैं जिसने हमेशा से बग़ैर झुके , बग़ैर किसी राजनैतिक दल या व्यक्ति के दबाव में आकर हमेशा से अपनी बेहतरीन लेखनी और निष्पक्ष पत्रकारिता से सभी राजनैतिक दलों की अपनी कलम से उनकी नाक में दम तथा धज्जियाँ उडा उनके साम्प्रदयिक और राजनैतिक दोहरे चरित्र को समाज के सामने लाकर इनके ख़िलाफ एक बडे पैमाने पर भारत की सदभावना और सेक्यूलरिज़्म को बचाने की मुहिम का बीडा उठाया हुआ है । आपकी निष्पक्ष पत्रकारिता और शानदार व्यक्तित्व का अंदाज़ा सोशल मीडिया पर हज़ारों की तादाद में आपसे जुडे समर्थक चीख चीख कर गवाही दे रहे हैं , ये सारे के सारे आपके लेखों से ही प्रेरणा पाकर भारत में सदभावना की लहर को पैदा कर उसकी आत्मा जिसको सेक्यूलरिज़्म कहते हैं को बचाने के इस पथ में आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर हमेशा आपके साथ खडे हैं । उनमें से एक में भी हूँ !

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ज्ञात हुआ कि आज आपने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर डाली है जिसमें आपको इंडियन इस्लामिक सेंटर में फेस मीडिया के माध्यम से आपको आपके उपरोक्त सराहनीय कदमों के लिये ही “राष्ट्रीय सदभावना पुरूस्कार” से सम्मानित किया गया है जिसमें आप सिख दंगों में सीधे तौर पर शामिल जगदीश टाइटलर से गर्व से इस सम्मान को ग्रहण कर रहे हैं , हो सकता है कि ये दिन आज आपके लिये बेहद गर्व तथा सम्मान का विषय हो परंतु आज आपको मिलने वाला ये सम्मान जिन ख़ून से रंगे हाथों से आपके हाथों तक पहुँचा उसने आपके हज़ारों चाहने वालों को एक तगडा झटका और ठेस पहुँचायी है और आपसे जुडे सभी समर्थक और में भी ख़ुदको ठगा महसूस कर रहे हैं । आज सभी के मस्तिष्क में ये प्रश्न ज़ोरों शोरों से चल रहा है कि आप जिन लेखों में १९८४ के दंगों में मरने वाले लोगों से जो सहानुभुति का नाटक करते थे वो वास्तव में आपका इनके प्रति दर्द था या ये इन दंगों में मरने वाले परिवार वालों की लाशों को अपनी सस्ती लेखनी में समेटकर , इसपर चढकर इन्हीं के कात़िल से पुरूस्कार लेने की एक जुगत मात्र थी । आख़िर आप ये कैसे भूल गये कि आप १९८४ के दंगों पर अपने आग भरे लेखों कई बार जगदीश टाइटलर को कातिल और ख़ूनी कहकर संबोधित करते रहे हैं । एक क़ातिल से सदभावना को पुरूस्कार पाते में क्या आपकी अंतरआत्मा ने आपको नहीं झिंझोडा , वास्तव में आज मेरे और मुझ जैसे आपको चाहने वाले सभी समर्थकों के लिये ये काला दिन है जिसमें आपका दोहरा चरित्र आपको द्वारा शाया की गयी तस्वीर में सिमट कर आ गया है। अंत में में आपसे एक बात ज़रूर कहना चाहुंगा कि आज के बाद शायद ही कोई किसी शख़्सियत पर इतना भरोसा कर पाये वसीम भाई आपने आज हज़ारों का दिल तोड दिया बस में आप से इतनी ही इल्तिजा करता हूँ आज के बाद आप कभी भी सदभावना की बात मत करियेगा क्योंकि सदभावना की हत्या आज आपने अपने हाथों से कर दी है । प्रधानमंत्री मोदी अगर सद्भावना की बात करते हैं तो मुसलमानों का दिल ज़ख़्मी होता है सभी का प्रश्न होता है कि साहेब आपकी सद्भावना 2002 में कहाँ गयी थी ऐसे ही जब कोई 1984 दंगो का आरोपी सद्भावना पुरूस्कार से नवाज़े तो लेने से पूछ लेना चाहिए था कि साहेब दंगे क्यूँ होते हैं उस वक़्त कहाँ जाती है सदभावना एक पत्रकार होने के नाते आपका सवाल उठाना फर्ज़ है परंतु ये तो वही बात हुई मुस्लिम पर हमला हो तो ज़ालिम दूसरे के साथ ज़ुल्म हो तो कोई बात नहीं । फिर आपका अल्पसंख्यक नेताओं को कौम का रहनुमा बता कर उन्हें दिन रात गरियाने से क्या फ़ायदा दरअसल फर्क बस इतना है कि उन्हें मिलती है लोकसभा या विधानसभा की सीट और आपको पुरूस्कार , लखनऊ में तीन छात्रों ने साहेब पर जूता उछाला था ,बहुसंख्यकों को साहेब से कोई परेशानी नहीं सिर्फ आपके समर्थन के लिए ….
लोड न लें आगे बढ़ें …पुरूस्कार अभी और मिलेंगे … ?

मुमकिन नहीं है हमसे ये तर्ज़-ए-मुनाफ़क़त
दुनिया तेरे मिज़ाज के बन्दे नहीं हैं हम

आपका शुभचितंक
डा॰ उमर फारूक आफरीदी

umer farooq