मुल्क में सयासी माहौल मौसिम-ए-गर्मा की तरह गर्म हो गया है । खासतौर पर उत्तर प्रदेश के असेंबली इंतेख़ाबात के नताइज के ऐलान के बाद सयासी सरगर्मियों में शिद्दत पैदा हो गई है और ये कयास किया जा रहा है कि नई सयासी सफ़ बंदियां होंगी ।
सयासी जमाअतें अपनी अपनी हिक्मत अमलियों का जायज़ा लेने और मुस्तक़बिल में अपने रास्ता का तीन करने की तग-ओ-दो में जुट गई हैं और वो अवाम को राग़िब करने के तरीकों का भी बिलवास्ता तौर पर जायज़ा लेना शुरू कर चुकी हैं। उत्तर प्रदेश असेंबली इंतेख़ाबात के नताइज ने कई सयासी जमातों को अपने मुस्तक़बिल के ताल्लुक़ से फ़िक्रमंद कर दिया है ।
बाअज़ जमातों को जहां अवाम की ज़बरदस्त ताईद हासिल हुई है औरवह अवाम की ताईद के बलबूते पर इक़्तेदार की कुर्सियों तक पहूंच गए हैं वहीं बाअज़ जमाअतें अवाम की जानिब से इसे बुरी तरह से ठुकरा दी गई हैं कि उन्हें अपने मुस्तक़बिल के ताल्लुक़ से अंदेशे लाहक़ हो गए हैं। इसमें बाअज़ सयासी गोशों की जानिब से मुल्क में वस्त मुद्दती इंतेख़ाबात की कयास आराईयां की जा रही हैं।
जो जमाअतें इस ख़्याल से इतेफ़ाक़ नहीं करतीं वो भी इस तरह के अनुदेशों को मुस्तर्द नहीं कर रही हैं बल्कि वो ख़ामोशी इख्तेयार की हुई हैं। हुकूमत की जानिब से ताहम ऐसा बारहा कहा जा रहा है कि मुल्क में वस्त मुद्दती इंतेख़ाबात का फ़ीलहाल कोई इम्कान नहीं है और यू पी ए की हुकूमत जो अपनी दूसरी इनिंग्स खेल रही है अपनी जारीया मीआद पूरी करेगी और इंतेख़ाबात 2014 में अपने वक़्त पर ही होंगे ।
हुकूमत के मुख़्तलिफ़ वुज़रा इस तरह के ब्यानात दे चुके हैं और वो अवाम को तीक़न देना चाहते हैं कि मुल्क में वस्त मुद्दती इंतेख़ाबात नहीं होंगे ताहम अभी तक हुकूमत की अहम हलीफ़ जमातों की जानिब से इस ताल्लुक़ से कोई बयान नहीं दिया गया है और ये जमाअतें इस मसला पर ना सिर्फ ख़ामोशी इख्तेयार की हुई हैं बल्कि वो हुकूमत से अपना दामन बचाने के लिए भी हिक्मत-ए-अमली तैयार कर रही हैं।
बाअज़ जमाअतें हुकूमत पर अपनी मर्ज़ी मुसल्लत करने का खुल्लम खुल्ला आग़ाज़ कर चुकी हैं जिनमें तृणमूल कांग्रेस और डी एम के शामिल हैं। हुकूमत इन जमातों के दबाव के आगे ख़ुद को बेबस महसूस कर रही है ।
जिस तरह तृणमूल कांग्रेस ने हाल ही में वज़ीर रेलवे की हैसियत से दिनेश त्रिवेदी की अलैहदगी और मुकुल राय के तक़र्रुर को यक़ीनी बनाया और रेल किराये में नौ साल बाद किए गए इज़ाफ़ा से दसतबरदारी इख्तेयार कर लेने पर मजबूर कर दिया था वो हुकूमत की मजबूरियों को ज़ाहिर करने के लिए काफ़ी है ।
इसी तरह डी एम के ने भी हुकूमत की मजबूरियों से फ़ायदा उठाने की कोशिश की है और इसने श्रीलंका के ख़िलाफ़ अक़वाम-ए-मुत्तहिदा की क़रारदाद के हक़ में मौक़िफ़ इख्तेयार करने हुकूमत को मजबूर कर दिया था । ये शायद पहली मर्तबा हुआ है कि हिंदूस्तान ने श्रीलंका के ख़िलाफ़ अपने वोट का इस्तेमाल किया था ।
इससे क़ब्ल हुकूमत अमेरीका के दबाव पर बैन अल-अक़वामी फ़ोर्म में इरान के ख़िलाफ़ वोट दे चुकी है । ताहम अब जो श्रीलंका के ख़िलाफ़ वोट दिया गया है वो हुकूमत की दाख़िली मजबूरियों और इत्तेहादी हुकूमत की लाचारियों का नतीजा है । उत्तर प्रदेश के इंतेख़ाबी नताइज के बाद से हलीफ़ जमातों ने हुकूमत को आंखें दिखानी शुरू कर दी हैं।
तृणमूल कांग्रेस अमला हुकूमत को अपने इशारों पर नचा रही है और इक़्तेदार पर बरक़रार रहने यू पी ए की ख़ाहिश भी इसे मजबूर कर रही है कि वो हलीफ़ जमातों को नाराज़ करने का ख़तरा ना मोल ले । जब तृणमूल की यू पी ए से अलैहदगी की खबरें आ रही थीं उस वक़्त ये कयास किया जा रहा था कि समाजवादी पार्टी हुकूमत में शामिल होते हुए उसे इस्तेहकाम बख़्शेगी ।
समाजवादी पार्टी के सरबराह मिस्टर मुलायम सिंह यादव ने ये वाज़िह कर दिया है कि इनकी पार्टी हुकूमत की बाहर से ताईद जारी रखेगी और हुकूमत में शामिल होने को तैयार नहीं है । अब ख़ुद मुलायम सिंह यादव ने अपने फ़र्ज़ंद और चीफ़ मिनिस्टर उत्तर प्रदेश अखीलेश यादव को हिदायत दी कि वो पार्टी के इंतेख़ाबी मंशूर पर अंदरून छः माह अमल आवरी करें की उनका छः माह के अर्सा में किसी भी वक़्त मुल्क में वस्त मुद्दती इंतेख़ाबात के अनुदेशों को मुस्तर्द नहीं किया जा सकता।
मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि मंशूर पर अमल आवरी के ज़रीया एक बार फिर यू पी के अवाम की ताईद हासिल करते हुए समाजवादी पार्टी की लोक सभा नशिस्तों की तादाद में इज़ाफ़ा किया जाए फिर वो मर्कज़ में अहम ज़िम्मेदारी हासिल कर सकते हैं।
समाजवादी पार्टी ने जिस तरह अवाम की ज़बरदस्त ताईद हासिल की है और मुलायम सिंह यादव ने जिस तरह अपने फ़र्ज़ंद को रियासत की ज़िम्मेदारी सौंपी है इससे ज़ाहिर होता है कि इसके हौसले बुलंद हो गए हैं। तृणमूल कांग्रेस और डी एम के जैसी जमाअतें अब यू पी ए से अपने कन्नी काटने की कोशिशों में अमला मसरूफ़ हो चुकी हैं हुकूमत इन हलीफ़ जमातों पर अपना कोई कंट्रोल रखने में नाकाम साबित हो चुकी है कांग्रेस का गढ़ समझी जाने वाली रियासतों के हालात भी इसके ख़िलाफ़ होते जा रहे हैं इसमे इन अनुदेशों को बे बुनियाद कहते हुए यकसर मुस्तर्द नहीं किया जा सकता कि मुल्क में वस्त मुद्दती इंतेख़ाबात की नौबत आ सकती है ।
जहां तक हुकूमत का ताल्लुक़ है वो ऐसी सूरत-ए-हाल से बचने की कोशिश करेगी ताकि उसे दुबारा अवाम से रुजू होने की हिक्मत-ए-अमली तैयार करने का मौक़ा मिल जाए लेकिन समाजवादी पार्टी जैसी जमाअतें हो सकता है कि हुकूमत को सँभलने का मौक़ा फ़राहम किए बगैर एक और मर्तबा उसे अवाम की अदालत में घसीटने में कामयाब हो जाएं ।
ऐसे ये कहा जा सकता है कि मुल़्क की सयासी सूरत-ए-हाल गैर यक़ीनी है ।