मौजूदा दौर बड़ा ही तरक़्क़ी का दौर है। आज के ज़माने में जो सहूलतें हैं, वो पहले नहीं थीं। मौजूदा दौर में टी वी, सेलफोन और नेट ये तीनों चीज़ें बहुत ख़तरनाक हैं, उनसे नुक़्सान ज़्यादा और फ़ायदा मामूली है। ये चीज़ें नौजवान लड़कों और लड़कीयों ख़ुसूसन जो कालेज में पढ़ रहे हो, सरपरस्तों को चाहीए कि उनसे ये चीज़ें दूर रखें ।
अगर उन्हें किसी शदीद ज़रूरत और मजबूरी की वजह से इजाज़त दे रहे हों तो फिर उसकी कड़ी निगरानी करनी चाहीए कि वो किससे बात कर रहे हैं?, कहाँ जा रहे हैं? और क्या बात कर रहे हैं? वग़ैरा वग़ैरा।
नेट का इस्तेमाल अपनी नौजवान औलाद को हरगिज़ ना करने दें। अगर इस्तेमाल की सख़्त ज़रूरत हो तो उनकी सख़्त निगरानी करें और एक साया की तरह उनके साथ लगे रहें। इस वक़्त समाज में फैलने वाली ज़्यादा तर बुराईयां टी वी, सेलफोन और नेट की वजह से जन्म ले रही हैं।
ये तीनों चीज़ें (टी वी, सेलफोन और नेट) अख़लाक़ को बहुत ज़्यादा तबाह कर रही हैं, जिसकी वजह से लोगों के दिलों से ख़ुदा का ख़ौफ़ निकलता जा रहा है, नमाज़ों की पाबंदी नहीं हो रही है, हलाल-ओ-हराम की तमीज़ ख़त्म होती जा रही है, झूट और दीगर बुराईयों को बहुत ज़्यादा बढ़ावा मिल रहा है। ये तीनों चीज़ें (टी वी, सेलफोन और नेट) बच्चों के ज़हन-ओ-दिमाग़ को भी बुरी तरह ख़राब कर रही हैं, जिसकी वजह से उनका वक़्त बेकार( बरबाद) हो रहा है, नौजवान शर्म-ओ हया भूल चुके हैं, लड़कीयां बेहया होती जा रही हैं और पर्दा का एहतिमाम ख़त्म होता जा रहा है।
इलावा अज़ीं ज़रूरीयात-ए-ज़िंदगी पर भी बहुत बुरा असर पड़ रहा है, रात देर गए तक इन चीज़ों के इस्तेमाल से सेहत भी मुतास्सिर हो रही है और नमाज़-ए-फ़ज्र अक्सर क़ज़ा हो जाती है। अगर कोई शख़्स रात में देर तक बेदार रहेगा तो दिन के कामों में सुस्ती पैदा होना यक़ीनी है, क्योंकि रात की नींद इंसान के लिए बहुत ज़रूरी है। अल्लाह तआला का इरशाद है कि हम ने रात को बिछौना बनाया (यानी राहत की चीज़) और दिन को कमाने का ज़रीया बनाया।
सरपरस्तों को चाहीए कि अपने बच्चों को दीनी तालीम से आरास्ता और उनकी अच्छी तरह तर्बीयत करें। उनके लिए कारोबार और नौकरी की फ़िक्र करें और फिर जैसे ही वो निकाह के काबिल हो जाएं तो फ़ौरन निकाह कर दें। अगर किसी वजह से नौकरी या कारोबार से ना लग सके तो सब्र-ओ-तहम्मुल से काम लें और अल्लाह पर भरोसा करते हुए अपनी कोशिश जारी रखें।
उल्मा का कहना है कि आज के पुरफ़तन माहौल में वालदैन और सरपरस्तों को तर्बीयती मजालिस में शिरकत की सख़्त ज़रूरत है, जिसमें उन्हें औलाद की ज़िम्मेदारी के सिलसिले में तालीम दी जाती हो और फिर उन्हें बच्चों की ज़हन साज़ी के बारे में बताया जाता हो। वालदैन को उनकी ज़िम्मेदारी याद दिलाई जाये, ख़ुसूसन वक़्त से पहले अपनी औलाद की फ़िक्र करने की गुज़ारिश की जाएगी।
वाज़िह रहे कि खाने पीने का इंतेज़ाम तो औलाद की क़िस्मत से हो जाता है, क्योंकि अल्लाह तआला ने रिज़्क देने का वादा फ़रमाया है। अल्लाह तआला का इरशाद है कि तुम अपनी औलाद को तंगदस्ती के डर से क़त्ल मत करो, रोज़ी देने वाले हम हैं। जब कि फ़रमान रब्बुल आलमीन के बरअक्स मौजूदा दौर में सरपरस्त हज़रात बच्चों की तालीम-ओ-तर्बीयत से ज़्यादा उनके खिलाने पिलाने पर अपनी तवज्जा ज़्यादा मर्कूज़ हुए हैं। उनको इस बात की फ़िक्र बहुत कम है कि हमें अपने बच्चों की निगहदाश्त पर ख़ुसूसी तवज्जा देनी चाहीए, ताकि वो नेकोकार और अल्लाह और इसके रसूल ( स०अ०व०) के फ़रमांबरदार बन सकें।
यक़ीनन जो बच्चे अल्लाह-ओ-रसूल के फ़रमांबरदार होंगे, वो अपने वालदैन के भी फ़रमांबरदार होंगे।
औलाद की ज़िम्मेदारी ये है कि वो अपने बड़ों का कहना मानें। अल्लाह पाक का इरशाद है कि आपके रब ने फ़ैसला कर दिया कि इसके सिवा-ए-किसी की इबादत ना करें और वालदैन के साथ हुस्न-ए-सुलूक करें। औलाद की ज़िम्मेदारी है कि वालदैन की ख़िदमत करें और उनके साथ हुस्न-ए-अख़्लाक़ से पेश आएं।
वालदैन का कहना मानें, जबकि वो जायज़ हुक्म दें। अगर वो ख़ुदा-ओ-रसूल की नाफ़रमानी का हुक्म दें तो हरगिज़ ना मानें। अल्लाह तआला का इरशाद है कि अगर वालदैन में से एक या दोनों तुम्हारे सामने बुढ़ापे की उम्र को पहुंच जाएं तो उनको उफ़ तक ना कहो।
हुज़ूर अकरम ( स०अ०व०) का इरशाद है कि जब बुढ़ापे की उम्र हो जाती है तो (इंसान का) ज़वाल शुरू हो जाता है। इस (उम्र) में इंसान बचपन जैसी आदतें करने लगता है, उनके मिज़ाज में सख़्ती आ जाती है और ऐसे वक़्त में वालदैन को अपनी औलाद की ख़िदमत की ज़रूरत पेश आती है। अल्लाह तआला हम सब को वालदैन का फ़रमांबरदार, ख़िदमतगुज़ार और नेकोकार बनाए। (आमीन)
————–(मुहतरमा अस्मा बिंत मक़बूल अली)