वाहिद नगर क़दीम मलकपेट का गर्वनमेंट हाई स्कूल बुनियादी सहूलतों से महरूम

ऐसा लगता है कि शहर हैदराबाद में एक मंसूबा बंद साज़िश के तहत सरकारी मदारिस ख़ासकर उर्दू मीडियम मदारिस के वजूद को मिटाया जा रहा है क्योंकि आप को शहर में एक भी ऐसा स्कूल नहीं मिलेगा जो तमाम सहूलतों से आरास्ता हो।

किसी स्कूल में तलबा की कसीर तादाद है तो वहां असातिज़ा की कमी है और जहां असातिज़ा हैं वहां स्कूल की मोअस्सर इमारत नहीं और अगर कहीं स्कूल की इमारत भी है तो वहां बुनियादी सहूलतों का फ़ुक़दान पाया जाता है।

अक्सर सरकारी स्कूलों के बारे में कहा जाता है कि उन का म्यार तालीम नाक़ुस होता है और इस शिकायत में सच्चाई है। अक्सर ये देखा गया कि सरकारी टीचरों के बच्चे तो अच्छे और म्यारी स्कूलों में तालीम हासिल कर रहे हैं और वो अपने बच्चों की तालीम पर ख़ुसूसी तवज्जा मर्कूज़ करते हैं लेकिन ये असातिज़ा जिन बच्चों को पढ़ाने के लिए मुक़र्रर किए गए हैं उन से ग़फ़लत बरतते हैं वैसे कुछ असातिज़ा तलबा को अपने बच्चों की तरह ही पढ़ाते हैं।

बहरहाल हम बात कर रहे थे सरकारी स्कूलों की हालते ज़ार पर। वाहिद नगर क़दीम मलकपेट में रहने वाले चंद फ़िक्रमंद शहरीयों ने दफ़्तर सियासत को फ़ोन करते हुए बताया कि वाहिद नगर क़दीम मलकपेट गर्वनमेंट हाई स्कूल तीन मंज़िला इमारत रहने के बावजूद बुनियादी सहूलतों से महरूम है।

इस इमारत में उर्दू, तेलुगु और अंग्रेज़ी मीडियम के स्कूल्स के इलावा प्राइमरी स्कूल भी चलाया जा रहा है। स्कूल के दौरा के दौरान उन्हों ने ये भी देखा कि बच्चों में कोई डिसिप्लिन नहीं। चार स्कूलों के लिए 22 अरकान का स्टाफ़ है। नतीजा में क्लास में तलबा पढ़ने की बजाय खोखो और क्रिकेट खेल रहे थे।

स्कूल प्रिंसिपल के मुताबिक़ दसवें जमात का नतीजा बेहतर रहता है। कलेक्टर ने 2011 में दौरा किया था। कृष्णा रेड्डी का कहना है कि उस की इमारत ग़ैर महफ़ूज़ बाउंड्री वाल को ऊंचा करने और खिड़कियों पर आहनी जालियां नस्ब करने की ज़रूरत है ताकि 28 कमरों पर मुश्तमिल इस स्कूल को महफ़ूज़ बनाया जा सके वर्ना चोरियों के वाक़ियात पेश आते रहेंगे।

जैसा कि हम ने पहले की सुतूर में लिखा है कि ये स्कूल बुनियादी सहूलतों से महरूम है। इस का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि बच्चों के लिए स्कूल में कोई ग्राउंड तक नहीं।

तलबा ने भी बताया कि इतनी बड़ी इमारत में सिर्फ़ 4 टोएलेट्स होने के बाइस उन्हें बहुत परेशानी होती है। बहरहाल हुकूमत को चाहीए कि सरकारी स्कूलों पर ख़ुसूसी तवज्जा देने के साथ ही असातिज़ा भी अपने फ़राइज़ दियानतदारी से अंजाम दें।