वाक़िया मेराज कायनात का एक मुनफ़रद-ओ-बेमिसाल वाक़िया है। इस तरह का वाक़िया ना कभी हुआ था ना कभी होगा। क़ादिर-ए-मुतलक़ अल्लाह तआला ने अपने महबूब बंदा रसूल अकरम स०अ०व० को रात के मुख़्तसर से हिस्से में मस्जिद ए हराम से मस्जिद अक्सा, सातों आसमान, जन्नत-ओ-दोज़ख़ वगैरह की सैर कराई और अपने दीदार से मुशर्रफ़ फ़रमाया।
वाक़िया मेराज अपने अंदर कई ख़ुसूसियात रखता है और हमारे लिए इस वाक़िया में हमा अक़साम पहलू मिलते हैं। ज़ैल में वाक़िया मेराज से हासिल होने वाले एतेक़ादी पहलूओं में से चंद को वाज़िह किया जाता है।
रिवायत में आता है कि शबे मेराज हज़रत जिब्रईल, हज़रत इस्राफ़ील, हज़रत मीकाईल अलैहिमुस्सलाम आप स०अ०व०की ख़िदमत ए अक़्दस में हाज़िर हुए और हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने बुर्राक़ की लगाम थाम ली, हज़रत मीकाईल ने रकाब पकड़ा और हज़रत इस्राफ़ील हाशिया बर्दार रहे।
इस रिवायत से ये बात वाज़िह हो जाती है कि सैय्यदुल मलाइका से सैय्यदुल मुरसलीन स०अ०व० का मर्तबा आला-ओ-अफ़ज़ल है। चुनांचे आप स०अ०व०ने हदीस शरीफ़ में हज़रत जिब्राईल को आसमान में अपना वज़ीर क़रार दिया: तर्जुमा: हज़रत सईद ख़ुदरी रज़ी० से रिवायत है कि हुज़ूर नबी अकरम स०अ०व० ने फ़रमाया: हर नबी के लिए दो वज़ीर आसमान वालों में से और दो वज़ीर ज़मीन वालों में से होते हैं। सौ आसमान वालों में से मेरे दो वज़ीर, जिब्रईल-ओ-मीकाईल हैं और ज़मीन वालों में से मेरे दो वज़ीर अबू बकर और उम्रर हैं।(रवाह अल तिरमिज़ी,किताबुल मुनाकिब)
वाक़िया मेराज में मज़कूर है कि जब सफ़र मेराज के लिए बुर्राक़ को लाया गया और आप स०अ०व० इस पर सवार हुए तो वो नाज़-ओ-तरब और इफ़्तिख़ार के बाइस शोख़ी करने लगा।(मदारिजुल नबुवत, सफ़ा २५०)। इस बात से ये अक़ीदा मालूम होता है कि जानवर भी आप स०अ०व० को जानते थे कि आप स०अ०व० अल्लाह के रसूल हैं।
चुनांचे हदीस शरीफ़ में आता है :हज़रत आईशा रज़ी० से रिवायत है आप फ़रमाती हैं कि हुज़ूर रसूल अल्लाह ( स०अ०व०) मुहाजरीन और अंसार की एक जमआत में तशरीफ़ फ़र्मा थे कि एक ऊंट आया और आप ( स०अ०व०) को सजदा किया आप ( स०अ०व०) के सहाबा ने अर्ज़ किया कि यह रसूल अल्लाह आप को चौपाए और दरख़्त सजदा करते हैं हम (इंसान ) ज़्यादा हक़दार हैं कि आपको सजदा करें तो आप स०अ०व० ने फ़रमाया कि तुम अपने रब की इबादत करो अपने (मोमिन ) भाईयों के साथ इज़्ज़त से पेश आओ अगर मैं किसी को किसी के लिए सजदा करने का हुक्म देता तो मैं औरत को हुक्म देता कि वो अपने शौहर को सजदा करे (शौहर का मर्तबा तो ये है कि )अगर वो उसको हुक्म दे कि ज़र्द पहाड़ से (पत्थर ) काले पहाड़ पर ले जाये और काले पहाड़ से सफेद पहाड़ पर तो उसको चाहीए कि वो इस हुक्म को बजा लाए।( मस्नद अ॔हमद। बाक़ी मस्नद अला॔नसार )
इमाम जरक़ानी शरह मुवाहिब में रिवायत नक़ल फ़रमाते हैं कि हज़रत अली रज़ी० ने फ़रमाया कि हुज़ूर अकरम स०अ०व० ने मुझे को ये बात बतलाई कि में हज़रत इब्राहीम के जिस्म मुबारक में नूर था और आप की पुश्त अक़्दस में नूरानी तजल्ली थी। आप जब मनजनेक़ में थे (और नमरूद आप को आग में फेंकने वाला था) तो हज़रत जिब्रईल हाज़िर हुए और कहा कि ऐ रहमान के खलील क्या आप की कोई हाजत है? तो हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया :तुम से नहीं।
हज़रत जिब्राईल फिर हाज़िर हुए और आप के साथ हज़रत मीकाईल भी थे तो हज़रत इब्राहीम ने फिर कहा: ना तुम से कोई हाजत है ना मीकाईल से। हज़रत जिब्रईल तीसरी बार फिर हाज़िर हुए और कहा कि क्या रब की बारगाह में आप का कोई मारूज़ा है? तो हज़रत इब्राहीम ने फ़रमाया ऐ भाई जिब्रईल खलील की शान ये होती है कि वो अपने खलील की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ ना करे।
हुज़ूर अकरम ( स०अ०व०) ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने मुझ से कहलवाया तो मैने कहा जब अल्लाह तआला मुझे शान ए नबुव्वत के साथ दुनिया में मबऊस फ़रमाएगा और शान ए रिसालत और शान ए मुस्तफ़ाई के साथ जलवागर फ़रमाएगा तो मैं अपने भाई जिब्रईल को उन के इस हुस्ने अमल का बदला दूंगा जो उन्होंने मेरे वालिद करीम हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के साथ किया था।
फिर मेरी बअसत के बाद जब शब मेराज आई तो जिब्रईल अलैहिस्सलाम मेरी ख़िदमत में हाज़िर हुए और वो रब की बारगाह में हाज़िरी के वक़्त मेरे हमसफ़र रहे, यहां तक कि वो एक मुक़ाम पर पहुंच कर वहीं ठहर गए तो मैने कहा: ऐ जिब्रईल क्या इस जैसे मुक़ाम पर दोस्त अपने दोस्त को छोड़ देता है? तो जिब्रईल ने अर्ज़ किया अगर में इस मुक़ाम से आगे बड़ों तो नूर की तजल्लियात से जल जाऊंगा।
तब हुज़ूर नबी करीम ( स०अ०व०) ने फ़रमाया ऐ जिब्रईल क्या तुम्हें कोई हाजत है? तो जिब्रईल अलैहि अस्सलाम ने अर्ज़ किया: ऐ पैकर हम्द-ओ-सताइश ( स०अ०व०) आप मेरे हक़ में अल्लाह तआला से दुआ फ़रमाएं कि मै आपकी उम्मत के लिए पुरसरात पर अपने पर बिछाऊं ताकि वो इस पर से (आराम के साथ) गुज़र जाये। (शरह अल ज़रक़ानी अलल मवाहिब ८, स १९८)
सिदरतुल मुनतहा से आगे बढ़ने के बाद हुज़ूर(स०अ०व०) तन्हा लामकां की सैर के लिए तशरीफ़ ले गए। ये वो शर्फ़ है जो तमाम मख़लूक़ में सिर्फ़ आप ( स०अ०व०) की ख़ुसूसियत है। आला हज़रत फ़ाज़िल बरेलवी रह० फ़रमाते हैं:
वही लामकां के मकीं हुए, सर अर्श तख़्त नशीन हुए
वो नबी है जिस के हैं ये मकां, वो ख़ुदा है जिस का मकां नहीं
हुज़ूर अकरम ( स०अ०व०) सफ़र ए मेराज में क़ुदरत की अज़ीम निशानियों का मुशाहिदा करने के बाद रब तआला के दीदार से मुशर्रफ़ हुए। चुनांचे अल्लाह तआला ने सूरा नजम में फ़रमाया आप ने जो मुशाहिदा किआ दिल ने उसे नहीं झूटलाया, क्या तुम उन से बहस करते हो इस पर जो मुशाहिदा फ़रमाते हैं और यक़ीनन आपने इस जलवा का दो मर्तबा दीदार किया सिदरतुल मुंतहा के पास (सूरा नजम) ।
सहीह मुस्लिम शरीफ़ में हदीस ए पाक है कि हज़रत अबदुल्लाह बिन शक़ेक़ रज़ी० ने फ़रमाया कि मैने हज़रत अबूज़र रज़ी०से अर्ज़ किया कि अगर मुझे रसूल अकरम ( स०अ०व०) का दीदार नसीब होता तो में आप ( स०अ०व०) से ज़रूर दरयाफ्त करता। हज़रत अबूज़र ने फ़रमाया तुम किस चीज़ के बारे में दरयाफ्त करते तो हज़रत अबदुल्लाह बिन शक़ेक़ ने अर्ज़ किया कि मिअ ये दरयाफ्त करता कि क्या आप ( स०अ०व०) ने अपने रब का दीदार किया है?। ये सुन कर हज़रत अबूज़र रज़ी० ने फ़रमाया मैने हुज़ूर ( स०अ०व०) से इस बारे में दरयाफ्त किया तो आप ( स०अ०व०) ने फ़रमाया मैने नूर ए हक़ को देखा है।
(सहीह मुस्लिम किताबुल इमान)।
हुज़ूर अकरम ( स०अ०व०) के लिए मेराज की सैर इस तरह से भी मुम्किन थी कि आप ( स०अ०व०) के सफ़र पर तशरीफ़ ले जाने के बजाय रब तआला इन तमाम जगहों को आप ( स०अ०व०)के करीब कर देता और आप ( स०अ०व०) इन का मुशाहिदा फ़रमाते।
जैसा कि मेराज की सुबह बैतुल मुक़द्दस आप के रूबरू कर दिया गया था। और जिस तरह कि नमाज़ ए कुसूफ़ की हालत में जन्नत को आप के सामने पेश किया गया था। जैसा कि हदीस शरीफ़ में है , तर्जुमा: (क़ुरैश मुझ से सफ़र मेराज के बारे में सवाल करने लगे) तो अल्लाह तआला ने बैतुल-मुक़द्दस को उठाकर मेरे सामने कर दिया वो मुझ से बैतुल-मुक़द्दस के मुताल्लिक़ जो भी पूछते मैं देख कर उन को बता देता।
सही बुख़ारी की रिवायत है कि आप ( स०अ०व०) ने नमाज़ ए कुसूफ़ अदा फ़रमाई। सहाबा किराम रज़ी० ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह ( स०अ०व०) हम ने देखा कि आप ने अपने इस मुक़ाम पर किसी चीज़ को अपने मुबारक हाथ में लेने का इरादा फ़रमाया फिर हम ने देखा कि आप ( स०अ०व०) पीछे की जानिब तशरीफ़ ले आए।
आप ( स०अ०व०) ने फ़रमाया कि बेशक जन्नत मुझ को दिखलाई गई तो मैंने इससे अंगूर का एक ख़ोशा लेने का इरादा किया (और फिर इरादा तर्क कर दिया) अगर मैं उस को ले लेता तो तुम रहती दुनिया तक इससे खाते रहते। (सहीह बुख़ारी। किताबुल अज़ान)। इन रिवायतों की रोशनी में ये अक़ीदा वाज़िह होता है कि आप ( स०अ०व०) का सफ़र मेराज के लिए तशरीफ़ ले जाना उन मुक़ामात को मुशर्रफ़ करने के लिए था।
हज़रत मुहद्दिस दक्कन अलैहिर्रहमा बयान फ़रमाते हैं कि बैतुल-मुक़द्दस हर वक्त ये दुआ करता था कि इलाही तमाम पैग़म्बरों से में मुशर्रफ़ हो चुका अब मेरे दिल में कोई आरज़ू बाक़ी नहीं है अगर है तो ये है कि हज़रत मुहम्मद ( स०अ०व०) के क़दम मुबारक देखूं उनकी मुलाक़ात के शौक़ की आग बेहद भड़क रही है। बैतुल-मुक़द्दस की आरज़ू पूरी करने के लिए बैतुल-मुक़द्दस ले जाया गया। (मेराज नामा, सफा २९)।
इमाम मुहम्मद बिन यूसुफुल सालही रह०बयान फ़रमाते हैं कि मैदान ए हश्र मुल्क ए शाम में बरपा होगा और मेराज शरीफ़ में हुज़ूर अकरम स०अ०व० को बैतुल-मुक़द्दस ले जाने में मशियत ख़ुदावंदी ये थी कि जब आप स०अ०व०के मुबारक क़दम वहां पड़ जाएं तो कल क़यामत के रोज़ आप की उम्मत के लिए आसानी-ओ-सहूलियतें मयस्सर आ जाएंगी। और आप के क़दमीन अतहरीन की बरकत के सबब वहां पर ठहरना आसान हो जाएगा।
(सिब्बललहुदा वा अलरेशाद, जिल्द ३, सफा १८)।
अल-ग़र्ज़ वाक़िया मेराज से बहुत से एतेक़ादी, फ़िक्री, इस्लाही गोशे और इसरार-ओ-हिक्मत वाज़िह होते हैं। जिनका कमाहुक्कहू अहाता मुम्किन नहीं।
शेख अल-इस्लाम इमाम मुहम्मद अनवारुल्लाह फ़ारूक़ी ( रह०) लिखते हैं:
अक़दा ये खुलता नहीं कि कौन हैं और क्या हैं वो
हाँ समझते हैं बस इतना बर्ज़ख़ ए कुबरा हैं वो