विक़ार एनकाउंटर पर मुक़ामी मुस्लिम क़ियादत की ख़ामोशी कहीं अख़लाक़ी ज़िम्मेदारी से फ़रार और मस्लिहत पसंदी को तर्जीह तो नहीं?। ये एक एसा सवाल है, जो पीर को नलगेंडा के आनेर में पुलिस के मुबय्यना फ़र्ज़ी एनकाउंटर में पाँच ज़ेरे दरयाफ़त मुस्लिम क़ैदीयों की पुरासरार और मुश्तबा हालात में हलाकतों पर उभर रहा है, जिस की एक अहम वजह ये भी समझी जा रही हैके नाम निहाद मुस्लिम क़ियादत ने इस संगीन वाक़िये पर अपनी सियासी-ओ-अख़लाक़ी ज़िम्मेदारी का जुर्रत मंदाना जमहूरी अंदाज़ में कोई मुज़ाहरा ही नहीं किया।
जमात के क़ाइद ने पहले रोज़ ट्विटर पर एक मुख़्तसर और मुहतात रधे अमल का इज़हार किया और दूसरे रोज़ अपनी जमात के पर्चम तले नहीं, बल्कि मुस्लिम मुत्तहदा महाज़ के नाम पर एक प्रेस कांफ्रेंस में रस्मी बयान पर इकतिफ़ा किया। इस सूरत-ए-हाल के पेशे नज़र कई सवालात उभर रहे हैं और ये समझा जा रहा हैके मुक़ामी मुस्लिम क़ियादत अपने देरीना शख़्सी मुफ़ादात के पेशे नज़र रखते हुए रियासती हुकूमत या पुलिस पर तन्क़ीद और एनकाउंटर की जमहूरी अंदाज़ में मज़म्मत से गुरेज़ कर रही है।
मुस्लिम क़ियादत ग़ालिबन अपने चंद क़ाइदीन के ख़िलाफ़ नफ़रत अंगेज़ तक़ारीर के मुक़द्दमात और खास्कर चंदरायनगुट्टा फायरिंग केस से हक़ीक़त पसंदी की बजाये हालात की नज़ाकत के मुताबिक़ मस्लिहत पसंदी को तर्जीह देने में ख़ैर महसूस कर रही है।
शायद यही वजह हैके एक हफ़्ते के दौरान हुए दो पुलिस एनकाउंटरस में सात मुस्लिम नौजवानों की हलाकत के ख़िलाफ़ ना कोई एहतेजाज किया गया और ना ही वाक़ियात की आला सतही तहक़ीक़ात के लिए हुकूमत पर दबाव डालने की कोई बेहतर कोशिश की गई।