विचारधारा के कठोर बंधन ने और छात्र राजनीति के अक्षमताओं ने एक शून्य को जन्म दिया है: यूथ फॉर स्वराज

जेएनयू परिसर में दो छात्र संगठनों के संघर्ष और आपसी मुठभेड़ से उपजी तनातनी की एक और खबर ने एक बार फिर से हमारे तथाकथित ‘विचारधारा के ध्वजवाहकों’ के खोखलेपन को सतह पर लाने का काम किया है।

जबकि इस घटना पर दोनों पक्षों की तरफ से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की वही पुरानी कहानी दोहराई जा रही है, निरंतर दोहराये जा रहे ऐसे मामले इस बात की बानगी देते हैं कि वर्तमान छात्र राजनीति ने अपने छात्र हितों से संबंधित मुद्दों को उठाने और नए विचारों के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने के अपने बुनियादी काम से खुद को परे कर लिया है।

जबकि विश्वविद्यालय परिसर स्वस्थ चर्चा और बहस की जगह होते हैं, हमारे तथाकथित विचारधारा के संरक्षकों की कारगुजारियों ने इन्हें तमाम असामाजिक और निचले किस्म की राजनीति करने का गढ़ बना दिया है।

यूथ4स्वराज एक जिम्मेवार संगठन होने का फर्ज निभाते हुए इस मुद्दे की मेरिट्स पर टिप्पणी करने से बचते हुए अपना ये स्पष्ट मत रखता है कि वर्तमान स्वरूप में छात्र राजनीति पूरी तरह से दूषित हो चुकी है और आम छात्र इससे बुरी तरह हतोत्साहित हैं।

इस परिदृश्य में जहाँ एक ओर युवा भारत के हितों और आकांक्षाओं की आवाज को पुरजोर करने की आवश्यकता है, ऐसे में वर्तमान में स्थापित छात्र संगठनों की भटकी प्राथमिकताओं और उनकी अक्षमताओं ने एक शून्य को जन्म दिया है जिसको केवल एक नई सोच के द्वारा भरा जा सकता है जो छात्र-केंद्रित हो और जो राजनीतिक विमर्श को बीसवीं सदी के मृत विचारों के पिंजरे से बाहर निकालकर एक नई दिशा देने की ओर प्रतिबद्ध हो। और यूथ4स्वराज निरंतर इसी उद्देश्य के साथ समर्पित रूप से कार्य करने में जुटा है।