अयोध्या की भीड़ ने राम भक्तों को क्या दिया?, क्या हासिल कर पाया हिन्दुत्व?

तीन दिन तक सुरक्षा घेरे में रही अयोध्या ने सोमवार को राहत की सांस ली. बाधित आवागमन, बंद बाजार, जगह-जगह बैरिकेडिंग और जांच से गुजरने की फजीहत झेलने के बाद लोगों के पास एक ही सवाल है कि इन सबसे मिला क्या?

रविवार शाम तक शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके शिवसैनिक महाराष्ट्र लौट गए और धर्म संसद में भाग लेने आए लोग अपने घरों को। लेकिन वह सवाल, सवाल ही बना रहा कि आखिर इस जमावड़े का मकसद क्या था और इससे हासिल क्या हुआ।

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रविवार को दिन भर धर्म सभा के कार्यक्रम स्थल की ओर जाने वाली सड़कों पर भीड़ की वजह से कई जगह भीषण जाम लगा लेकिन लोग संतों के भाषण सुनने को लालायित दिखे। तमाम संघर्ष के बाद भीड़ को चीरकर वहां तक पहुंचना ही जैसे सबका मकसद था।
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मंच पर सौ से भी ज्यादा संत मौजूद थे लेकिन उनके बीच एकजुटता कार्यक्रम की समाप्ति तक सवालों के घेरे में आ गई। इसके अलावा तमाम बड़े संतों की अनुपस्थिति, अखाड़ा परिषद का कार्यक्रम का बहिष्कार करना और वाराणसी में तमाम संतों की ओर से एक समानांतर धर्म संसद का आयोजन, यह संकेत दे गया कि सभी संतों का मकसद भले ही अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना हो लेकिन उनके रास्ते एक नहीं हैं।
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धर्म संसद में विश्व हिंदू परिषद का अनुमान था कि दो लाख से भी ज्यादा लोग आएंगे और कार्यक्रम के बाद उन लोगों ने इससे भी ज्यादा लोगों के आने का दावा किया लेकिन पुलिस के आंकड़ों को मानें, तो यह संख्या किसी भी स्थिति में एक लाख से ऊपर नहीं थी।

कार्यक्रम स्थल की खाली कुर्सियां और खाली पड़ा मैदान का बड़ा हिस्सा भी इसके गवाह थे। हां, कार्यक्रम स्थल के आस-पास की सड़कों पर भले ही भीड़ का जमावड़ा दिख रहा था।

धर्म सभा का आयोजन वीएचपी और आरएसएस की ओर से किया गया था. भारतीय जनता पार्टी ने धर्म सभा से दूरी जरूर बना रखी थी लेकिन बीजेपी के कई नेताओं और विधायकों के होर्डिंग्स ये बता रहे थे कि बीजेपी नेताओं ने वहां पहुंचने से परहेज नहीं किया और अपने समर्थकों को भी भेजने में मदद की।

कार्यक्रम को पूरी तरह से गैर राजनीतिक बनाने की कोशिश की गई लेकिन मंच पर मौजूद संतों के भाषणों से यह अनुमान लगा पाना मुश्किल था कि वे राजनीति से प्रेरित नहीं हैं।

ज्यादातर संतों ने अपने उद्बोधन में यही कहा कि राम मंदिर बनने में अभी तक बाधाएं पैदा की जा रही थीं, लेकिन अब ऐसा करने वालों की सरकार नहीं है। उनके मुताबिक, मौजूदा सरकार और मौजूदा प्रधानमंत्री राम मंदिर बनवाने में मददगार होंगे।

चित्रकूट स्थित तुलसी पीठाधीश्वर के संत रामभद्राचार्य ने तो यहां तक कह दिया कि उनकी मोदी मंत्रिमंडल के एक वरिष्ठ मंत्री से बात हो चुकी है और उन्होंने आश्वस्त किया है कि राम मंदिर का निर्माण 11 दिसंबर से शुरू हो जाएगा। हालांकि उनके इस बयान से मंच पर मौजूद तमाम संत सहमत नहीं हुए लेकिन रामभद्राचार्य का कहना था, “लोग उन पर विश्वास करें।

हरिद्वार से आए संत रामानुजाचार्य कुछ ज्यादा मुखर दिखे। उन्होंने तो सीधे तौर पर कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल और राजीव धवन का नाम लेकर कहा कि ये लोग मंदिर निर्माण में बाधा पहुंचा रहे हैं। स्वामी रामानुजाचार्य ने लोगों से अपील की कि वे नरेंद्र मोदी के हाथों को मजबूत करें, तभी मंदिर निर्माण संभव होगा।

संतों के भाषणों के दौरान तमाम जोशीले नारे भी लग रहे थे और रास्तों में कई आपत्तिजनक नारे भी लग रहे थे। पहुंचने वाले लोगों में भी बड़े-बुजुर्ग, युवाओं, महिलाओं और बच्चों के अलावा साधु-संत भी बड़ी मात्रा में थे. साधु-संत अपनी वेश-भूषा में थे, तो कुछ लोग गदा और धनुष-बाण लिए हुए भी दिख रहे थे।

इस पूरे कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट पर भी जमकर निशाना साधा गया. ऐसा शायद ही कोई वक्ता हो, जिसने यह न कहा हो कि राम मंदिर का निर्माण सुप्रीम कोर्ट की प्राथमिकता में नहीं है या फिर सुप्रीम कोर्ट जान बूझकर इस मामले को लटकाना चाहता है।

तमाम लोगों को यह भी उम्मीद थी कि इस कार्यक्रम में संत लोग मंदिर निर्माण की कोई तारीख तय कर सकते हैं या फिर ऐसा कोई रास्ता निकाल सकते हैं जिसे वे लोगों और सरकार के सामने रखेंगे, लेकिन कुल मिलाकर बात अध्यादेश पर ही आकर टिकी रही या फिर जबरन, कानून का उल्लंघन करते हुए मंदिर निर्माण करने की। कार्यक्रम के बाद यह तय हुआ कि नौ दिसंबर को दिल्ली में एक सभा होगी और फिर आगे का रास्ता तय किया जाएगा। इस घोषणा से तमाम लोगों में मायूसी दिखी।

अयोध्या के स्थानीय पत्रकार महेंद्र त्रिपाठी 1992 की बाबरी मस्जिद ढहने वाली घटना के भी प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं। उनका कहना था, “वीएचपी के इस कार्यक्रम का सिर्फ यह देखना मकसद था कि क्या उसके आह्वान पर अभी भी 1980 या फिर 1990 के दशक वाली भीड़ जमा