विदेश मंत्रालय ने तीन फलस्तीनी विश्वविद्यालयों के साथ हस्ताक्षर सहमति पत्रों के क्रियान्वयन में उदासीनता को लेकर जामिया मिलिया इस्लामिया की खिंचाई की है। दरअसल, ये समझौते राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की अक्तूबर, 2015 में फलस्तीन यात्रा के दौरान हुए थे।
जामिया के कुलपति तलत अहमद को लिखे पत्र में विदेश राज्य मंत्री एम.जे. अकबर ने सवाल किया कि इन सहमति पत्रों की शर्तों पर अब तक काम क्यों नहीं हुआ। उन्होंने यह भी पूछा है कि विश्वविद्यालय का रूख इस दिशा में आगे बढ़ने को लेकर अवरोध भरा क्यों दिखाई देता है।अकबर ने कहा कि हालिया फलस्तीन दौरे के समय पता चला कि इन सहमति पत्रों पर आगे कदम नहीं उठाया गया है। अकबर ने जामिया के कुलपति से कहा है कि वह दूसरे देशों के संस्थानों के साथ हस्ताक्षर सहमति पत्रों और समझौतों की स्थिति के बारे में सरकार को तुरंत बताएं।
अकबर ने पत्र अपने पत्र में कहा कि फिलिस्तीन के शिक्षा मंत्री के शीघ्र ही भारत यात्रा पर आने की उम्मीद हैं, जिसमें दोनों देशों के बीच संयुक्त बैठक की उम्मीद है। यह यात्रा दोनों देशों के बीच शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के लिए एक अहम बिंदु हो सकता है। अगर सहमति समझौतों का पालन नहीं किया गया तो ये निष्फल हो जाएगा। अकबर अहमद को पत्र में यह भी लिखा है “रामल्लाह में हमारे प्रतिनिधि अनीस राजन हमेशा से इस संबंध में आपको सहयोग देने के लिए पूरी तरह तैयार रहे हैं। कृपया आप मुझे बताए कि क्यों इस सहमति पत्रों के अनुसार काम नहीं हुआ।
गौरतलब है कि जामिया ने फलस्तीन के अल-कुदूस, अल-इस्तिकलाल और हेबरोन विश्वविद्याल के सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए थे। जामिया के एक अधिकारी ने बताया कि जामिया इन सहमति पत्रों को पालन करने के लिए पूरा प्रयास कर रहा है, लेकिन प्रक्रियागत दिक्कतों और धन की कमी से वजह विलंब हो रहा है। उन्होंने कहा कि हमें सहमति पत्रों को लागू करने के लिए कोई अलग से फंड नहीं मिला है। इसलिए हमने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखाकर इसके लिए धन मुहैया कराने को कहा है।