UP विधानसभा : संस्कृत में शपथ लेने की अनुमति है लेकिन उर्दू में नहीं

लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने के बाद एंटी रोमियो अभियान, बूचड़खाने बंदी और अब उर्दू भाषा को लेकर विवाद उठा है। दो दिन पहले विधानसभा अध्यक्ष फतेह बहादुर ने राज्य विधानसभा में 403 विधायकों में से 319 में शपथ ग्रहण दिलाई। तेरह भाजपा सदस्यों ने संस्कृत में शपथ ली जबकि आज़मगढ़ के दो समाजवादी पार्टी के विधायकों, नफीस अहमद (गोपालपुर) और आलम बदी (निजामाबाद) ने उर्दू में शपथ लेने का फैसला किया।

 

 

 

 

हालांकि फ़तेह बहादुर ने नफीस अहमद की शपथ खारिज कर दी और उन्होंने हिंदी में अपनी शपथ ली। अहमद ने कहा कि वह हिंदी के खिलाफ नहीं है लेकिन अगर उर्दू भाषा में शपथ नहीं तो फिर संस्कृत में कैसे शपथ हो सकती है। इस पर मुझे आपत्ति है, क्यों नहीं जिन्होंने संस्कृत में शपथ ली थी वे हिंदी में ले सकते हैं? उन्होंने इस मामले को आगे बढ़ाने से पहले सरकार के आदेश की एक प्रति की मांग की। यह पूछने पर कि क्या इस मुद्दे पर वरिष्ठ सपा नेता मोहम्मद आज़म खान के साथ नोट्स बदल दिए थे, अहमद ने जवाब दिया कि अभी तक ‘आज़म भाई’ से बात नहीं की है।

 

 

 

दूसरी ओर आलम बदी ने उर्दू और उसके बाद हिंदी में शपथ ली, लेकिन उनकी कोई शिकायत नहीं थी, क्योंकि विधानसभा के रिकॉर्ड में उनकी उर्दू शपथ दर्ज की गई थी। उत्तर प्रदेश विधानसभा के नियमों के तहत एक विधायक को हिंदी और संस्कृत में सदन की शपथ लेने की अनुमति है लेकिन उर्दू में नहीं जो राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा है। विधानसभा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सदन के नियमों के कारण उर्दू में शपथ लेने की अनुमति नहीं दी।

 

 

 

दिलचस्प बात यह है कि प्रोटेम स्पीकर खुद ही संस्कृत प्रवृत्ति शुरू कर चुके थे। बहादुर गोरखपुर जिले के कैम्पियारगंज के विधायक और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के पुत्र हैं जिन्होंने 27 मार्च को राज्यपाल राम नाइक द्वारा शपथ दिलाई जाने के बाद उन्होंने संस्कृत में शपथ ली। यह संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए छोटा प्रयास था।

 

 

 

संस्कृत में शपथ ग्रहण करने वाले अन्य विधायक हैं, धीरेंद्र सिंह, संजय, शशांक त्रिवेदी, सुरेश कुमार श्रीवास्तव, नीरज बोरा, चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय, सतीश चंद्र द्विवेदी, चंद्र प्रकाश शुक्ला, पवन कुमार, धनंजय कानोजिया, सुरेंद्र सिंह और वाराणसी के सुरेंद्र नारायण सिंह। आलम बदी के लिए यह पहली बार नहीं था कि भाषा का मुद्दा सामने आया। 1996 में जब केशरी नाथ त्रिपाठी अध्यक्ष थे उन्होंने एक पूरे वर्ष तक शपथ नहीं ली थी।

 

 
इस बीच मेरठ में एक और विवाद उतपन्न हो गया जहां मुस्लिम पार्षद वंदे मातरम गान के दौरान बाहर चले गए। उनकी सदस्यता तुरंत महापौर द्वारा समाप्त कर दी गई थी। उनका कहना था कि शरिया कानून के खिलाफ हैं। गायन का बहिष्कार करने वाले शरीफ खान ने कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट कोई निर्देश जारी नहीं करेगी, तब तक वे अपना रुख नहीं बदलेंगे। उन्होंने कहा, हम अपना बहिष्कार जारी रखेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी को भी अपनी इच्छा के विरुद्ध वंदे मातरम् को गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।