विधायक फंड के 101 करोड़ के खर्च का हिसाब मिलना नामुमकिन

रांची : माली साल 2009-10 के पहले तक एमएलए फंड और वजीरे आला तरक़्क़ी मंसूबा से किये खर्च का अब हिसाब मिलना मुमकिन नहीं है। इसलिए सरकार अब एमएलए की सिफ़ारिश पर बनी मंसूबों का तसदीक़ करा कर खर्च का हिसाब जुटाना चाहती है। साथ ही एमएलए फंड जारी करने की अमल में बदलाव लाना चाहती है। पर, सियासी सतह पर इस मामले में मंजूरी नहीं बन पा रही है।

रियासत में माला फंड और वजीरे आला तरक़्क़ी मंसूबा से अड्वान्स इंखिला (एसी बिल) के बाद उसके खर्च का हिसाब (डीसी बिल) नहीं देने की वजह से एजी की तरफ से एतराज की जाती रही हैं।

मामले की संजीदगी को देखते हुये फाइनेंस महकमा के प्रिन्सिपल सेक्रेटरी अमित खरे ने चालू माली साल में महज़ 50 फीसद की ही अड्वान्स इंखिला की इजाजत दी है। बाक़ी रकम की इंखिला के लिए पहले के बकाये का हिसाब देने की शर्त लगा दी गयी है। इसके बाद ही एमएलए फंड और वजीरे आला तरक़्क़ी मंसूबा से की गयी 885.95 करोड़ रुपये की अड्वान्स इंखिला के खर्च का हिसाब जुटाने का काम तेजी से शुरू हुआ।