विधि आयोग ने दिया मोदी सरकार को झटका, कहा- देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं

नई दिल्ली: विधि आयोग ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन परामर्श पत्र में कहा कि इस समय समान नागरिक संहिता की ‘न तो जरूरत है और ना ही वांछित’. आयोग ने विवाह, तलाक, गुजाराभत्ता से संबंधित कानूनों और महिलाओं और पुरुषों की विवाह योग्य उम्र में बदलाव के सुझाव दिए. समान नागरिक संहिता पर पूर्ण रिपोर्ट देने की बजाए विधि आयोग ने परामर्श पत्र को तरजीह दी क्योंकि समग्र रिपोर्ट पेश करने के लिहाज से उसके पास समय का अभाव था. परामर्श पत्र में कहा गया, ‘समान नागरिक संहिता का मुद्दा व्यापक है और उसके संभावित नतीजे अभी भारत में परखे नहीं गए हैं. इसलिये दो वर्षों के दौरान किए गए विस्तृत शोध और तमाम परिचर्चाओं के बाद आयोग ने भारत में पारिवारिक कानून में सुधार को लेकर यह परामर्श पत्र प्रस्तुत किया है.

समान नागरिक संहिता है क्या
समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है. दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही ‘समान नागरिक संहिता’ का मूल भावना है. … यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है. समान नागरिकता कानून भारत के संबंध में है, जहाँ भारत का संविधान राज्य के नीति निर्देशक तत्व में सभी नागरिकों को समान नागरिकता कानून सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करता है.

अब 22वां विधि आयोग लेगा फैसला
आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी एस चौहान ने पूर्व में कहा था कि समान संहिता की अनुशंसा करने के बजाए, आयोग पर्सनल लॉ में ‘चरणबद्ध’ तरीके से बदलाव की अनुशंसा कर सकता है. अब यह 22वें विधि आयोग पर निर्भर करेगा कि वह इस विवादित मुद्दे पर अंतिम रिपोर्ट लेकर आए. हाल में समान नागरिक संहिता के मुद्दे को लेकर काफी बहस हुई हैं. विधि मंत्रालय ने 17 जून 2016 को आयोग से कहा था कि वह ‘‘समान नागरिक संहिता के मामले को देखे.’

तलाक के बाद संपत्ति में मिले अधिकार
आयोग ने साथ ही सुझाव दिया कि घर में महिला की भूमिका को पहचानने की जरूरत है और उसे तलाक के समय शादी के बाद अर्जित संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए, चाहे उसका वित्तीय योगदान हो या नहीं हो. आयोग ने कहा कि सभी वैयक्तिक एवं धर्मनिरपेक्ष कानूनों में इसी के अनुसार संशोधन होना चाहिए. हालांकि, आयोग ने चेताया कि इसी के साथ, इस सिद्धांत का अर्थ संबंध खत्म होने पर संपत्ति का ‘पूरी तरह से’ अनिवार्य बराबर बंटवारा नहीं होना चाहिए क्योंकि कई मामलों में इस तरह का नियम किसी एक पक्ष पर ‘अनुचित बोझ’ डाल सकता है.

महिला-पुरुष की शादी की उम्र समान हो
आयोग ने ‘परिवार कानून में सुधार’ विषय पर अपने परामर्श पत्र में कहा, ‘इसलिए, इन मामलों में अदालत को विवेकाधिकार देना महत्वपूर्ण है.’ इसके अलावा, आयोग ने सुझाव दिया कि महिलाओं और पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र समान होनी चाहिए. आयोग ने कहा कि वयस्कों के बीच शादी की अलग अलग उम्र की व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए. दरअसल, विभिन्न कानूनों के तहत, शादी के लिए महिलाओं और पुरुषों की शादी की कानूनी उम्र क्रमश: 18 वर्ष और 21 वर्ष है. आयोग ने कहा, ‘अगर बालिग होने की सार्वभौमिक उम्र को मान्यता है जो सभी नागरिकों को अपनी सरकारें चुनने का अधिकार देती है तो निश्चित रूप से, उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने में सक्षम समझा जाना चाहिए.’