हमलावरों की गोली जिस वक्त मलाला यूसुफजई के सिर को चीरकर अंदर घुसी उस वक्त पास की सीट पर उनकी दोस्त कायनात रियाज भी बैठीं थीं। बंदूक़बर्दारो बस में दाखिल हुए, मलाला की पहचान की और गोलियां चलाने लगे। उनमें से एक गोली कायनात के हाथ को बुरी तरह से जख्मी कर दिया। हमले में कायनात के अलावा एक तीसरी लड़की भी जख्मी हुई थी।
इस हादसे के उन लम्हों को याद करती हुई कायनात कहती हैं, ‘बिल्कुल अफ़रा-तफ़री का माहौल था।’
और आज भी जब वो उन पलों को याद करती हैं तो ख़ौफ़ और दहशत से घिर जाती हैं।
“पहले तो जब वो (बंदूक़धारी) बस में घुसा और पूछने लगा मलाला कहां है, कौन है मलाला? तो हमें लगा यूं ही कोई मज़ाक कर रहा है। लेकिन जैसे ही मलाला की जबान से ये अल्फ़ाज़ निकले कि क्या है… मैं ही मलाला हूं, उसने गोलियां चलानी शुरू कर दीं। एक गोली मलाला को लगी और वो गिर पड़ी।”
कायनात के मुताबिक, ‘वैसे भी मलाला को पहचानना कोई मुश्किल नहीं थी। हम सब हिजाब का इस्तेमाल करते थे लेकिन उसने हमेशा से परदे से इंकार किया था।”
वह बताती हैं, “जिस वक़्त मलाला नीचे गिरी तब तक वो शख्स बस में ही मौजूद था। गोली मेरे हाथ को भी छलनी कर चुकी थी। यह हादसा अचानक हुआ और माहौल कुछ ऐसा था, सब इस कदर ख़ौफ़ज़दा थे कि कुछ समझ में नहीं आ रहा था। हर कोई रो रहा था। बस में चीख़ व पुकार मची थी ।”
मलाला की दोस्त ने उस वक्त को याद करते हुए कहा, “बस के ड्राइवर को शायद अंदाज़ा हो गया था कि मामला क्या है, उन्होंने बड़ी हिम्मत दिखाई और बस को अस्पताल की तरफ़ रवाना कर दिया।”
कायनात कहती हैं कि वो पूरे रास्ते बार-बार अपने वालिद के पास जाने की बात कह रही थीं, फिर उन्हें कुछ याद नहीं, वो बेहोश हो चुकी थीं। अब वो अस्पताल से घर वापस आ गई हैं और उनके ज़ख़्म भी भर रहे हैं। मलाला का इलाज फ़िलहाल ब्रिटेन में जारी है।
मलाला ने पाकिस्तान में लड़कियों की तालीम को लेकर आवाज़ बुलंद की थी। साल 2009 में उन्होंने बीबीसी उर्दू के लिए एक गुमनाम डायरी लिखी थी जिसमें लड़कियों की तालीम पर तालिबान की रोक का ज़िक्र था।
कायनात के वालिद रियाज़ कहते हैं कि बेटी को गोली लगने की ख़बर मिलने के बाद जब वो अस्पताल पहुंचे तो देखा कि ‘उसके शाल, शलवार ख़ून से लथपथ थे’ और उन्हें लगा कि कहीं गोली पेट में तो नहीं लगी। वो कहते हैं, “मैं बस यही सोच रहा था कि क्या वो बच पाएगी?”
कायनात कहती हैं कि डॉक्टर चाहते थे कि वो इलाज तक अस्पताल में रुके लेकिन वो बेहद ख़ौफ़ज़दा थीं और घर जाने की बात कहती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि हमलावर अस्पताल में पहुंच सकते हैं।”
हालांकि घर के बाहर सिक्योरिटी मौजूद हैं लेकिन कायनात फिर भी अपने डर को दिल से नहीं निकाल पातीं। मगर फिर भी वो कुछ देर के लिए एक बार अपने स्कूल गईं जहां टीचर और साथियों ने उनकी हौसलाअफ़ज़ाई की।
कायनात कहती हैं, “मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं और वो स्कूल गए बिना मुमकिन नहीं होगा।” इसके वालिद रियाज़ ख़ुद एक टीचर हैं और मानते हैं कि कायनात और उनके साथियों के लिए तालीम से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता।