वो ….. (वली तनवीर का अफ़साना )

मर्कज़ी कुतुबख़ाने की बुलंद-ओ-बाला इमारत के ज़ीनों से उतरते हुए मेरे क़दम निढाल थे और दिल में एक सोज़-ओ- गुदाज़ की दुनिया सी आबाद थी। सुबह के दस बजे से उस वक़्त तक मैं एक पुरासरार नावेल का मुताला करता रहा था, जिसमें एक तिश्नाकाम (प्यासी) और नाआसूदा रूह की दिलगुदाज़ दास्तान बयान की गई थी । मेरा ज़हन नावेल की इस ख़ूबसूरत मगर बदनसीब हीरोइन के ख़्यालों में घिरा हुआ था, जिसने मुहब्बत में वफ़ा का भ्रम क़ायम रखने के लिए ज़हर का पियाला पी लिया था और सदियों से जिस्म के बगै़र दुनिया में भटक रही थी । अपने महबूब की तलाश में सरगरदां और बेक़रार वो लड़की जिस का जिस्मानी वजूद ना था बार बार सोचने पर मजबूर कर रही थी कि दुनिया क्या है ? कहाँ से शुरू हो कर कहाँ ख़त्म हो जाती है ? और ख़त्म होती भी है कि नहीं?

कुतुबख़ाना के फाटक पर पहूंच कर मुझे एहसास हुआ कि शाम के साये काफ़ी गहरे हो चुके हैं और फ़िज़ा में रात का स्याह काजल बिखर चुका है । आसमान तारीक था । तारीक आसमान की आग़ोश में अनगिनत सितारे बेचैन नज़र आरहे थे । सामने सिमेंट की सड़क पर ट्राफिक का हुजूम था । बिजली के क़ुमक़ुमे जगमगा रहे थे । सड़क के किनारे किनारे चलते हुए यकबारगी मुझे ख़्याल आया कि पेट कब से ख़ाली है और ये कि कुछ खाए पीए बना एक क़दम चलना मुश्किल है । भूक की तरह ये हक़ीक़त भी काफ़ी तल्ख़ थी कि उस वक़्त मेरी जेब में सिर्फ़ रुपये का एक सिक्का पड़ा, फ़लक शि्गाफ़ तो कह नहीं सकता पाकेट शिगाफ़ क़हक़हा बुलंद करते हुए मेरे दीवानेपन का मज़ाक़ अड़ा रहा था । मैं सोचने लगा क्या मैं एक रोपीए में कोई ढंग की चीज़ ख़रीद सकूँगा जो उस वक़्त मेरी भूक मिटा सके और कुछ रुपये होते तो कोई ढंग की चीज़ ख़रीद कर पेट की आग बुझा पाता, लेकिन मज़ीद रूपिये का मेरी जेब में कोसों पता ना था । एक एक रूपये की क़दर का मुझे अंदाज़ा हो रहा था और उन फ़क़ीरों की दानिशमंदी का मैं क़ाइल हो रहा था जो सिर्फ़ एक रूपये का सवाल करते हैं और रुपया रुपया करके दौलत जमा कर लेते हैं । इन्हीं ख़्यालों में आगे बढ़ रहा था कि एक ठेले वाला नज़र आ गया जो चने फ़रोख़त कर रहा था । मैंने इस एक रूपये के चने उस ठेले वाले से ख़रीदे और खाने लगा । चंद दाने खाए थे कि मुझे अचानक आबिद का ख़्याल आया। आबिद जो स्टार हॉस्टल के एक कमरे में तन्हा रहता था। इस के माँ बाप गांव में रहते थे। स्टार हॉस्टल की अज़ीमुश्शान 6 मंज़िला इमारत में कुल चार सौ कमरे थे, जिनमें सिर्फ़ मुजर्रिद(बैचलर) नौजवान मर्द ही रह सकते थे। आबिद नौजवान भी था और मुजर्रिद भी। इस लिए उस को स्टार हॉस्टल में एक कमरा मिल गया था ।

स्टार हॉस्टल की दूसरी मंज़िल में कमरा नंबर 20 आबिद की कोई कमज़ोरी थी तो वो उसकी नींद थी। वो नींद का बड़ा कच्चा था। मैं सोचता हुआ कि वहां जाऊंगा अचानक उसके कमरे में दाख़िल हो जाऊंगा। वो सोरहा होगा। उस को अपनी पूरी ताक़त से दबोच लूंगा। वो ख़ौफ़ज़दा हो कर चिल्ला उठेगा तब चुप के तमाम दाने उसके मुँह में भर दूंगा। इनही ख़्यालात में डूबा हुआ हॉस्टल के ज़ीने तै कररहा था। दूसरी मंज़िल के वरांडे में बिजली का एक बल्ब जल रहा था जिसकी रोशनी मद्धम थी आबिद के कमरे तक रोशनी बहुत कम आरही थी। आबिद के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था। मैं कमरे में दाख़िल हो गया। कमरे में बिलकुल अंधेरा था।

एक ख़ामोश तारीकी & किसी सोए हुए आदमी के खर्राटों की आवाज़ तारीक सन्नाटे में उभरी हुई थी। मैंने उन खर्राटों पर कोई तवज्जा नहीं दी। सोचे समझे मंसूबे के तहत में यकलख़्त आबिद की मसहरी की तरफ़ बढ़ा और सोए हुए आबिद को दबोच लिया और दूसरे ही लम्हा में उस के मुँह में चने भरने लगा अचानक मैं चौंक पड़ा जैसे हज़ारों बिच्छूओं ने मेरे जिस्म पर एक साथ डंक मारा हो । ऐसा महसूस हुआ कि किसी नव शगुफ़्ता फूल को किसी ने पैरों तले रौंद डाला हो। कमरे की ख़ामोश और तारीक फ़िज़ा में एक निस्वानी चीख़ बुलंद हुई और साया सा लरज़ कर उठ गया। वो कोई लड़की थी जो दीवार से चिमट गई । मेरा हाथ दफ़्फ़अतन स्विच की तरफ़ बढ़ा और चंद लम्हों बाद कमरा बिजली की तेज़ रोशनी से जगमगा उठा। मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था। रोशनी में उसका चेहरा चांद की तरह चमक रहा था । उसकी रानाइयों ने मेरी आँखों को ख़ीरा कर दिया(बेशर्म हो जाना)। उसने शर्मसे बिलखकर मुस्कुराते हुए मेरी तरफ़ ऐसी लगावट से देखा कि अगर मैं ख़ाकी ना होता तो ज़रूर नूर की किरण बनकर उसकी चमकती हुई पुतलियों में समा जाता। वो बेहद ख़ूबसूरत थी। उसके हुस्न का रॉब मुझ पर कुछ इस तरह तारी हुआ कि मैं उससे कुछ कह ना सका इस से माज़ेरत (माफ़ी) भी ना चाह सका और बौखला कर भाग खड़ा हुआ।

बदहवासी के आलम में मैंने हॉस्टल के ज़ीने तै किए और सड़क पर पहूंच गया। मुझे कोई चीज़ बराबर नज़र नहीं आरही थी। अचानक कोई मुझ से टकरा गया । ज़बान से बेसाख़ता सॉरी निकल गया। लेकिन टकराने वाले ने मेरा बाज़ू थामते हुए फ़लक शि्गाफ़ क़हक़हा बुलंद किया मैंने चौंक कर देखा वो आबिद था । भागने की वजह से मेरी सांस फूली हुई थी। आबिद ने मेरी बदहवासी को देख कर एक और क़हक़हा लगाया और बोला क्यों क्या बात है ? इस क़दर नहूसत क्यों बरस रही है तुम्हारे चेहरे पर ?
मैंने हवास यकजा करते हुए कहा आबिद मैं वाक़ई बहुत परेशान हूँ। तुम शायद यक़ीन ना करोगे मगर में सच्च कहता हूँ मैं बिलकुल बेक़सूर हूँ।
तुमने आख़िर क्या किया है? आबिद ने झल्लाकर पूछा में उस वक़्त तुम्हारे कमरे से आरहा हूँ, मैंने क़दरे सँभल कर कहा।
अच्छा तो फिर ? आबिद मुस्कराने लगा तो क्या हुआ भाई कहते क्यों नहीं कम्बख़्त !
तुम मुझसे कल ही मिले थे मगर तुम ने नहीं बताया कि तुम्हारे कमरे में कोई और भी आगया है ।
कोई और? आबिद ने सवालिया नज़रों से मुझे देखा भला कोई और कहाँ से आसकता है मेरे कमरे में?
क्यों बनते हो मेरे दोस्त? मैंने तास्सुफ़ भरी आवाज़ में कहा काश तुम ने मुझे पहले ही बता दिया होता कि तुम्हारे कमरे में ज़नाना आगई है तो मुझ से ऐसी नाज़ेबा हरकत क्यों सरज़द होती?
ज़नाना और मेरे कमरे में ? कहीं तुम्हारा दिमाग़ तो नहीं चल गया क्या बकते हो । आबिद ने जल्दी से कहा मुझे बेवक़ूफ़ बनारहे हो।
मैंने चिढ़कर कहा अभी तुम्हारे कमरे में एक लड़की मैंने देखी है।… उफ़ आबिद ..क्या तुम .. चंद लम्हों के तवक्कुफ़ के बाद मैंने जुमला पूरा क्या मज़ाक़ बंद ना करोगे? सच्च कहो वो लड़की कौन है? मालूम होता है तुम उस वक़्त नशे में हो आबिद ने कहा वर्ना स्टार हॉस्टल में भला कोई लड़की कैसे आसकती ? आबिद साफ़ मकर गया स्टार हॉस्टल के शराइत से तुम वाक़िफ़ हो!
मैं चकरा गया मैंने उसे पूरी रूदाद सुनाई ।

कुछ देर के बाद आबिद क़हक़हा लगा कर कहने लगा यार मेरा कमरा तो मुक़फ़्फ़ल है , ये देखो चाबी मेरे पास है।
इसके क़हक़हे की गूंज ख़त्म हुई मैंने कहा अगर तुम्हें यक़ीन नहीं आता तो चल कर देखो लो। तुम्हारे पलंग पर बिस्तर की क्या हालत होगई है । मसहरी के बाज़ू जो सुराही रखी थी वो मेरे पैर के लगते ही लुढ़क गई है और सारा पानी कमरे में मौजूद है और वो लड़की भी वहीं मौजूद होगी!। लेकिन जब हम कमरे में पहूंचे तो हैरत से मेरी आँखें फैल गईं । कमरा मुक़फ़्फ़ल था और अंदर कोई रोशनी ना थी । कमरा खोलने पर आबिद ने रोशनी की तो पलंग पर बिछे हुए बिस्तर पर एक शिकन भी मौजूद ना थी । सुराही वाक़ई औंधी पड़ी थी लेकिन पानी की एक बूँद भी ज़मीन पर नहीं थी। रात देर तक में आबिद से मनवाने की सुई करता रहा कि मैंने जो कुछ देखा वो हक़ीक़त थी मगर आबिद ये बात नहीं मान रहा था ।

दूसरे दिन सुबह हम दोनों स्टार हॉस्टल के रूबरू बूढ़े फ़ौजी की पान की दुकान के आगे खड़े हुए उसी मौज़ू पर गरमागरम बहस कररहे थे कि बूढ़े लँगड़े फ़ौजी ने हमारी गुफ़्तगु में मुदाख़िलत करते हुए कहा बेशक आपने उस लड़की को देखा होगा। आपसे पहले भी बहुत से लोग उसे देख चुके हैं। कहा जाता है कि इस हॉस्टल की इमारत की तामीर के वक़्त इस ज़मीन पर एक बेवा की झोंपड़ी थी जिसमें वो अपनी जवान लड़की के साथ रहती थी । हॉस्टल के मालिक के इसरार के बावजूद वो अपनी झोंपड़ी छोड़ने को तैय्यार ना हुई इस लिए एक दिन झोंपड़ी को आग लगादी थी । बेवा तो बच गई लेकिन उसकी बीमार नौजवान लड़की आलम-ए-ख़्वाब में ज़िंदा जल गई । उसकी रूह यहां बरसों से भटक रही है। साल में एक रात आती है जब मख़सूस वक़्त पर ऐसा वाक़िया पेश आता है । ख़ौफ़ के मारे मेरे रोंगटे खड़े होगए और आबिद कह रहा था कि वो आज ही हॉस्टल छोड़ देगा।