यौमे तासीस तकरीब में वज़ीरे आला ने कहा कि मैं एसेम्बली में नौजवान हूं। मेरी उम्र कम है। एक्सपीरिएन्स कम है। शायद एक-दो लोगों से उम्र में ज्यादा हो सकता हूं। यहां मुझसे एक्सपीरिएन्स लोग हैं। शायद यहां का चपरासी भी हमसे ज्यादा एक्सपीरिएन्स हो।
मुझे बड़ी जवाबदेही मिली है। मेरी कोशिश है कि हम इस जवाबदेही को समझें। झारखंड की सियासत ने कितने उतार-चढ़ाव देखे हैं। कितनी हुकूमतें आयीं, कितनी हुकूमतें आयेंगी। इसमें कोई हैरत नहीं है। यह चलता रहता है।
समय नहीं पहचाना, तो हो जायेगी देर
तकरीब में वज़ीरे आला हेमंत सोरेन ने कहा कि वक़्त हमने पहले ही गंवाये हैं। अब वक़्त नहीं पहचानेंगे, तो तरक़्क़ी से दूर हो जायेंगे। शायद यह रियासत पहले ही तरक़्क़ी से कोसों दूर हो चुका है। तबसीरह सही है, लेकिन तमाम को रियासत के तरक़्क़ी के लिए मिल कर काम करना होगा। अब सबक लेने का भी वक़्त नहीं है। रियासत का तरक़्क़ी सिर्फ हुकूमत की जवाबदेही नहीं है, सबकी जिम्मेवारी है। रियासत में वसायल की कमी नहीं है। पैसे की कमी नहीं है। कमी काम के सिस्टम और काम की काबलियत में है। वज़ीरे आला ने कहा कि तबसीरह होनी चाहिए।
लेकिन जब जरूरत से ज्यादा होती है, तो ठीक नहीं। दूसरे जगहों पर हम अपने रियासत की तस्वीर खराब कर बताते हैं। रियासत के फी ऐसी बातें होती हैं, जो नहीं होनी चाहिए। यह रियासत हमारा, आपका है। कोई अपने घर को खराब नहीं कहता है। रियासत की तस्वीर बाहर में अलग बनी है, इसे बनाने के लिए हम सभी जिम्मेवार हैं। अब सोचना है कि यह ठीक कैसे होगी। इक्तिदार और अपोजीशन मिल कर काम करे। यह एसेम्बली हमें जिम्मेवारी का एहसास कराता है। हम आज़ाद हैं। अपनी पोलोसियाँ बना सकते हैं। जम्हूरियत में हुकूमत आती-जाती है। हम सिस्टम सुधारें और तरक़्क़ी के रास्ते पर चलें।