कोलकता, १५ सितंबर ( पी टी आई) सदर जमहूरीया ( राष्ट्रपति) परनब मुकर्जी ने आज कहा कि दस्तूर हिंद में जिस वहदत (एकता) में कसरत का तज़किरा ( बातचीत) किया गया है वो वफ़ाक़ी ढाँचे के लिए बहुत ज़रूरी है ।
वो हुकूमत मग़रिबी बंगाल की जानिब से उन के एज़ाज़ ( स्म्मान) में शहरी इस्तिक़बालीया तक़रीब से ख़िताब कर रहे थे । उन्होंने कहा कि एक वफ़ाक़ी ढांचा रखने के बावजूद लफ़्ज़ मुत्तहदा ( मिला हुआ) इस्तेमाल किया गया है और वफ़ाक़ का लफ़्ज़ इस्तेमाल नहीं किया गया क्योंकि हमारा मुल़्क वहदत ( एकता) में कसरत की ख़ुसूसीयत रखता है ।
उन्होंने केशव आनंद भारती मुक़द्दमा का हवाला दिया जिस के दौरान दस्तूर में 24 वें तरमीम ( तबदील) की गई थी । हालाँकि पार्लीमेंट को दस्तूर साज़ी के इख़्तयारात हासिल हैं । सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया है कि ये मुल्क के ढाँचे की बुनियाद है और इस के ज़रीया बेहतरीन देख भाल की जा सकती है ।
कोई मुकम्मल पारलीमानी जमहूरीयत हमारे मुल्क में मौजूद नहीं है । सदर जमहूरीया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर आमिला ( कार्यकारिणी/ काम् करने वाला) और मुक़न्निना (LEGISLATURE) इस बुनियादी ढांचा में कोई दख़ल अंदाज़ी करना चाहते हैं और इस के लिए दस्तूर में तरमीम करते हों तो इस का अदालती जायज़ा इस के बाद का लाज़िमी इक़दाम क़रार दिया गया है ।
उन्होंने कहा कि वो ये बात इस लिए कह रहें कि अगर वो क़ौम की माक़ूल ( उचित) तरक़्क़ी चाहते हैं तो हमें दस्तूर का दिफ़ा (रक्षा/ हिफाजत) करना होगा और साथ ही साथ किसी वक़्ती इश्तिआल के इमकानात का ख़ातमा भी करना होगा ।