इलाक़ाई पार्टीयों की सयासी बरतरी ने मर्कज़ में हुक्मराँ पार्टीयों के लिए बहुत सी उलझनें पैदा कर दी हैं। एन सी टी सी के मसला पर इलाक़ाई पार्टीयों ने अपना मौक़िफ़ वाज़िह कर दिया है। वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह की डिनर पार्टी में यू पी ए की अहम हलीफ़ पार्टीयों की अदम शिरकत से एक तशवीश ये पैदा हुई है कि यू पी ए में फूट पड़ जाएगी।
वस्त मुद्दती इंतेख़ाबात का मसला अभी इतना शिद्दत इख्तेयार नहीं कर रहा है जितना एन सी टी सी के मसला पर रियास्तों के हुक़ूक़ सल्ब करने का मसला शदीद हो रहा है। एन सी टी सी से फ़िलफ़ौर दसतबरदारी का मुतालिबा करने वाली पार्टीयों ने लोक सभा में भी इस पर ज़बरदस्त एहतिजाज और हंगामा किया। कांग्रेस को अपनी ही हलीफ़ पार्टीयों और हरीफ़ दोनों से सख़्त तन्क़ीदों का सामना है।
तृणमूल कांग्रेस को एन सी टी सी पर एतराज़ है क्योंकि ये वफ़ाक़ी ढांचा को तबाह करने के लिए काफ़ी है। सदर जमहूरीया ने भी अपने ख़िताब में इन सी टी सी के मसला पर इज़हार-ए-ख़्याल किया था। सदारती ख़िताब पर होने वाले तहरीक तशक्कुर पर मुबाहिस के दौरान अपोज़ीशन बी जे पी के इलावा समाजवादी पार्टी ने भी हुकूमत पर शदीद तन्क़ीद की है। अगर हुकूमत ने अपने हलीफ़ों के दबाव में आकर सदर जमहूरीया के ख़िताब में तरामीम या बजट के बारे में तहरीक कटौती से काम लिया तो ये हुकूमत के लिए भारी पड़ेगा।
इन्सेदाद-ए-दहशत गर्दी क़ानून लाने के लिए एन सी टी सी का क़ियाम किस हद तक मर्कज़ और रियास्तों के दरमयान तआवुन का काम करेगा, ये तो वक़्त ही बताएगा, मगर इस मसला पर इलाक़ाई पार्टीयां और मर्कज़ की क़ौमी जमातों में रसा कुशी से एक ख़राब मिसाल पैदा होगी। तृणमूल कांग्रेस का इद्दिआ है कि एन सी टी सी के क़ियाम से रियास्तों के इख़्तयारात मुतास्सिर होते हैं। अपोज़ीशन की ज़ेर-ए-क़ियादत कई रियास्तों के चीफ़ मिनिस़्टरों ने एन सी टी सी के क़ियाम की मुख़ालिफ़त की है। उसे वफ़ाक़ीयत पर हमला क़रार दिया गया है मगर मर्कज़ी वज़ीर-ए-दाख़िला पी चिदम़्बरम एन सी टी सी के क़ियाम को नागुज़ीर बताकर इलाक़ाई पार्टीयों के ग़ुस्सा को मज़ीद हवा दे रहे हैं।
इस मसला पर मग़रिबी बंगाल के बिशमोल मर्कज़ और कई रियास्तों के दरमयान गोया सर्द जंग का छिड़ जाना किसी सूरत हुकूमत के इस्तिहकाम के लिए मुनासिब नहीं है। जिन रियास्तों ने क़ौमी इन्सेदाद-ए-दहशत गर्दी सेंटर (एन सी टी सी) के क़ियाम की मुख़ालिफ़त की है, उन की तशवीश को दूर करने के लिए मर्कज़ को मुसबत क़दम उठाना चाहीए।
रियास्तों का एहसास है कि इस सेंटर के क़ियाम से रियास्तों की कारकर्दगी सल्ब हो जाएगी। वफ़ाक़ीयत को ख़तरा लाहक़ होगा। रियास्तों की मुख़ालिफ़त और एतराज़ात के बाइस ही इस मंसूबा पर सख़्ती के साथ हुकूमत ने रोक लगा दी है, वर्ना ये मंसूबा यक्म मार्च से नाफ़िज़-उल-अमल होना था। वज़ीर-ए-आज़म की हिदायत पर ही वज़ारात-ए-दाख़िला ने रियास्तों के अंदेशों को दूर करने की कोशिश शुरू की मगर इस से कोई फ़ायदा हासिल नहीं होगा क्योंकि रियास्तों की असल तशवीश वफ़ाक़ी ढांचा को पहूंचने वाले ख़तरा के बारे में है, अगर मर्कज़ी हुकूमत एन सी टी सी के ज़रीया अपने इख़्तेयारात में इज़ाफ़ा करे तो रियास्ती सतह पर हुकूमतों का वजूद घट जाएगा।
इस के बाद मर्कज़ का रोल बालादस्ती इख्तेयार करे तो फिर नाराज़गियों के दरमयान वो किसी क़ानून को सख़्ती से किस तरह नाफ़िज़ कर सकेगी, ये ग़ैर वाज़िह है। रियास्तों के तआवुन के बगै़र इन्सेदाद-ए-दहशत गर्दी क़ानून को रूबा अमल नहीं लाया जा सकेगा।
तृणमूल कांग्रेस ने सदर जमहूरीया के ख़ुतबा से भी एन सी टी सी के हवाले को हज़फ़ करने और इस ख़ुतबा में तरमीम के लिए ज़ोर दिया है। अगर ऐसा किया जाता है तो फिर मर्कज़ी हुकूमत अपनी बक़ा के लिए उठाने वाले क़दम के बाद के हालात से किस तरह निमटेगी, ये वही बेहतर जानती है। ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ हमारा क़ौमी निज़ाम इलाक़ाई पार्टीयों की ताक़त के आगे बेबस है।
इस मुल्क के सियासतदानों और हुकूमत के दानिश्वरों को इलाक़ाई ताक़त की हक़ीक़त को तोड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहीए, जबकि इन ज़ंजीरों के हलक़े काटने की तदबीर करनी होगी जिस से हुक्मरानी का निज़ाम अबतर होता जा रहा है। वफ़ाक़ीयत का गला घोटने की कोशिशों से ख़राबियां पैदा होंगी। मर्कज़ी हुकूमत को अपनी हलीफ़ पार्टीयों के सयासी किरदार का ख़्याल रखने के साथ साथ इलाक़ाई उसूलों का भी पास-ओ-लिहाज़ रखना ज़रूरी है।
जो सयासी पार्टीयां अपने अंदर हक़ीक़त पसंदाना मौक़िफ़ पैदा करना नहीं चाहतीं, उन्हें अपना मुहासिबा करना चाहीए। अवाम ने उन्हें वोट दे कर इस लिए मुंतख़ब किया ताकि वो रियास्ती-ओ-क़ौमी सतह पर अवाम की फ़लाह-ओ-बहबूद के कामों की अंजाम दही को तर्जीह दें।
अदल-ओ-इंसाफ़ के साथ तर कुयात के मुआमले में इलाक़ाई और क़ौमी सतह पर फ़र्क़ पाया जाए तो इसके लिए वो जमातें ही ज़िम्मेदार होंगी जो सिर्फ अपने मुफ़ादात की ख़ातिर मर्कज़ के उसूलों-ओ-मंसूबों की मुख़ालिफ़त या हिमायत करती हैं। ऐसे क़ाइदीन का कोई एहतिसाब ना हो तो मौजूदा हुकूमत के सामने ये सवाल उठेगा कि आख़िर वो अपनी यक़्तरफ़ा पालिसीयों के ज़रीया रियास्तों को नाराज़ करने का अमल कब तक जारी रखेगी।