शबेकद्र और ईद-उल-फित्र: दो अजीम तोहफे

(मौलाना मुसलेहउद्दीन कासमी)अल्लाह तआला ने अपने बंदों को बेशुमार नेमतों से सरफराज फरमाया है। इरशादे बारी है- और अगर तुम अल्लाह की नेमतों को शुमार करना चाहो तो शुमार में नहीं ला सकते। (सूरा इब्राहीम-34) चांद, सूरज, सितारे,हवा, पानी, मकान, बागात, फल, खेतियां, अनाज, हाथ, पांव, आंख, जबान, सब अल्लाह की नेमतें हैं जिनसे इंसान हर लम्हा फायदा उठा रहा है, मगर अल्लाह की कुछ नेमतें ऐसी हैं जो मखसूस अवकात में बंदों को मिलती हैं जिनकी अगर इंसान दिल से कदर कर ले तो उसकी दुनिया व आखिरत संवर जाए। उन्हीं नेमतों में शबेकद्र और ईद-उल-फित्र है जो माहे रमजानुल मुबारक और इसके इख्तिताम पर बंदों को मिलती हैं।

शबेकद्रः- शबेकद्र क्या है? यह शबे विसाल है, ऐसा विसाल कि रोजाना बंदा अल्लाह के दरबार में जाता था, उस शब अल्लाह तआला आसमाने दुनिया पर नुजूल फरमाते हैं गोया अल्लाह तआला मुलाकात के लिए खुद बंदे को मौका दे रहे हैं और अल्लाह तआला की तरफ से शरफे मुलाकात बख्शा जा रहा है। हजरत जिब्रईल अमीन (अलै0) तशरीफ लाते हैं, फरमाया- फरिश्ते और फरिश्तों के सरदार जिब्रईल अमीन (अलै0) तशरीफ लाते हैं आसमाने दुनिया पर। यही अल्लाह तआला की मुलाकात का जरिया और तरीका है।

यूं समझो कि शबेकद्र के आने से हिज्र और फिराक के दिन खत्म हो गए और अल्लाह से मुलाकात का बंदों को मौका मिल गया। तमाम फरिश्ते और फरिश्तों के सरदार आसमाने दुनिया पर आकर आवाज लगाते हैं- और शबेकद्र में रोने वालो! गुनाहों से माफी मांगने वालो! रात में खुदा के हुजूर सजदा करने वालो! अल्लाह के हुजूर हाथ फैलाने वालो! तुम्हारे लिए भलाई ही भलाई है, बख्शिश ही बख्शिश है और यह समां फजिर होने तक रहता है, गोया कोई बदनसीब ही होगा जो इस रात की बरकत से मालामाल न हो सके। एक हदीस में फरमाया गया है- जो शख्स शबेकद्र से महरूम हो गया पूरी भलाई से महरूम हो गया औेेर शबेकद्र की खैर से वही महरूम होता है जो कामिल महरूम है। (इब्ने माजा)

मतलब यह है कि चंद घंटे की रात होती है और इसमें इबादत कर लेने से हजार महीने से ज्यादा इबादत का सवाब मिलता है। चंद घंटे बेदार रहकर अल्लाह के सामने पेशानी रख देना, उसकी इबादत कर लेना, नफिलें पढ लेना कोई ऐसी काबिले जिक्र तकलीफ नहीं जो बरदाश्त से बाहर हो।

यह बड़ी नालायकी मानी जाएगी कि अल्लाह तआला की नवाजिश और दाद व दहिश तकसीम हो और मोमिन बंदा गफलत में पड़ा रहे। एक और हदीस में आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया- जो शख्स शबेकद्र में ईमान के साथ और सवाब की नीयत से (इबादत के लिए) खड़ा रहा उसके पिछले तमाम गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। (बुखारी शरीफ) खड़ा होने का मतलब यह है कि नमाज पढे और इसी हुक्म में यह भी है कि तिलावत और जिक्र में मशगूल हो और सवाब की उम्मीद रखने का मतलब यह है कि रिया वगैरह की नीयत से खड़ा न हो बल्कि इखलास के साथ महज अल्लाह की रजा और हुसूले सवाब की नीयत से इबादत में मशगूल रहे। बाज उलेमा ने ”एहतसाबन“ का मतलब यह बयान किया है कि सवाब की नीयत करके बशाशते कल्ब के साथ खड़ा हो बोझ समझ कर इबादत में न लगे।

यहां यह जिक्र कर देना भी मुनासिब होगा कि जिस शब के फजायल आयते करीमा और अहादीसे मजकूरा में बयान किए गए है वह कौन सी शब है? ताकि उम्मत उस शब के अनवार से पूरी तरह फायदा उठा सके। इस सिलसिले में अर्ज यह है कि अहादीस के जखीरे में किसी खास रात का तअय्युन नहीं किया गया है अलबत्ता रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातों में तलाश करने का आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हुक्म दिया है।

हजरत आयशा (रजि0) फरमाती हैं- नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया- शबेकद्र को रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातों में तलाश करो। (बुखारी शरीफ)

शबेकद्र का अगर इस तरह तअय्युन कर दिया जाए कि वह खास फलां रात है तो बहुत से लोग सिर्फ उसी रात में इबादत पर इक्तफा कर लेते और दूसरी रातों का एहतमाम बिल्कुल तर्क कर देते और इस एहतमाल की सूरत में मोमिन बंदों को कई रातों में इबादत की तौफीक नसीब हो जाती है। दूसरे यह कि तअय्युन की सूरत में अगर किसी शख्स की वह रात छूट जाती तो अफसोस की वजह से और रातों में बशाशते कल्ब के साथ जागना नसीब न होता।

अदम तअय्युन की बड़ी हिकमत यही है कि तालिब बंदे मुख्तलिफ रातों में इबादत व जिक्र और दुआ का एहतमाम करें।
हजरत आयशा (रजि0) इशाद फरमाती हैं कि मैंने नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से अर्ज किया मुझे बताइए अगर मुझे मालूम हो जाए कि कौन सी रात शबेकद्र है तो मैं उस रात क्या दुआ मांगूं? आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया- यह दुआ करो- ऐ अल्लाह! तू बहुत माफ करने वाला, बड़ा करम फरमा है,माफ कर देना तुझे पसंद है सो तू हमारी खताएं बख्श दे।

अल्लाह तआला उम्मते मुसलेमा को इस रात की कद्रदानी की तौफीक अता फरमाए- आमीन।

ईद-उल-फित्रः- दूसरा अजीम तोहफा ईद-उल-फित्र है। इस्लाम जैसा इंटरनेशनल और तमाम आलमे इंसानियत का दीन है उसी तरह जामे और इंटरनेशनल इसके त्यौहार भी हैं। ईद-उल-फित्र अपनी खुसूसियत और जामेइयत के लिहाज से एक अजीब व गरीब त्यौहार है।

इसकी हकीकी खुशी तो उन्ही खुशनसीबों को होती है जो मुकद्दस महीने रमजान के मुबारक अवकात को पूरे आदाब और एहतियात के साथ गुजारते हैं। यूं तो ईद-उल-फित्र की खुशी में बच्चे, बच्चियां, जवान, बूढे सब ही शरीक होते हैं मगर इनाम सिर्फ उन्ही लोगों को मिलता है जिनके हाथ में रोजे का सर्टिफिकेट हो।

रमजानुल मुबारक की जिस्मानी और माली इबादत त रियाजत और इन इबादात में खुलूस व लिल्लाहियत का फितरी तकाजा भी था कि इस मेहनते शाका के बाद एक दिन मसर्रतों का हो। इसलिए अल्लाह तआला की तरफ से अहले इस्लाम को यह खुशी इस तरीके से अता हुई कि इस दिन रोजा हराम करार दे दिया गया।

एक महीने तक तो सुबह सादिक से लेकर गुरूबे आफताब तक खाने-पीने पर पाबंदी लगा दी गई और ईद-उल-फित्र के दिन गोया एक तरीके से खाने-पीने को लाजिम करार दे दिया गया ताकि इस खुशी में हर फर्द शरीक हो और किसी को यह कहने की गुजाइश ही न रहे कि आज मैं रोजे से हूं।

यही चीज ईद-उल-फित्र की जामेइयत और यकसानियत का मजहर है और सारी खुशियों के साथ-साथ यह हुक्म इस दिन की अजमत का तर्जुमान है।

एक हदीस में आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया- जिस शख्स ने पांच रातों को अपनी इबादत से जिंदा किया उसपर जन्नत वाजिब हो जाएगी, तरविया की रात, अरफात की रात, कुर्बानी की रात, ईद-उल-फित्र की रात और शाबान की पन्द्रहवीं रात। ईद की रात को जागना गोया जन्नत लेना है।

ईद की रात को जागना जिंदा दिलों का काम है। जिंदा दिल वह होते हैं जिनके दिल जिक्रे इलाही से आबाद हो। आज हकीकत में शबेईद की इस फजीलत से हम गाफिल हैं। हम शबे बरात और शबेकद्र को तो जाग लेते हैं जिस कदर भी हमें तौफीक मुयस्सर होती है मगर ईद की रात में ख्वाबे गफलत में पड़े रहते हैं जबकि इस रात को भी बेदार रहना और जिक्रे इलाही से आबाद रखना जन्नत हासिल करने का सबब बताया गया है।

ईद-उल-फित्र खुदाई इनाम का दिनः- हर मेहनत वाले काम के बाद इंसान फितरतन उसके अज्र व सवाब का ख्वाहां रहता है और चूंकि मजहबे इस्लाम इंसानी फितरत के बिल्कुल मवाफिक है इसलिए रोजा जैसी मुश्किल इबादत के बाद अल्लाह तआला ने एक दिन इनाम का मुकर्रर फरमा दिया ताकि बंदे को उसके रोजों का सिला और बदला अता करे।

एक हदीस में नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया -जब ईद-उल-फित्र का दिन होता है तो फरिश्ते तमाम रास्ते के नाके पर खड़े हो जाते हैं और आवाज देते हैं ऐ मुसलमानो! अल्लाह के दरवाजे पर आओ, वह खैर अता करेगा और अज्र से नवाजेगा। मैंने तुम्हें रात के कयाम का हुक्म दिया था तो तुमने कयाम किया और तुम्हें दिन के रोजे का हुक्म दिया था तो तुम ने रोजा रखा और अपने परवरदिगार के हुक्म की इताअत की सो तुम अपना इनाम ले लो।

फिर जब नमााज के लिए खड़े होते हैं तो एक फरिश्ता आवाज देता है- सुनो! आगाह हो जाओ, तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें बख्श दिया अब पाक होकर अपने घरों को जाओ। ईद-उल-फित्र में यह आम माफी का एलान उन्ही खुशनसीब रोजेदारों के लिए हैं जो खुलूस दिल से हर मुमकिन रोजो और रमजान महीने का हक अदा करते हैं अल्लाह तआला हम सबको उन्ही खुशनसीबों में शामिल फरमाए-आमीन।

—————बशुक्रिया: जदीद मरकज़