शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर

रमजान महीनें की रातों में अल्लाह की एक खास रात है जो ‘‘लैलतुल कद्र’’ कहलाती है और वह सबाव के एतबार से हजार महीनों से बेहतर है। रमजानुल मुबारक का आखिरी अशरा अपने अंदर बेशुमार बरकतें और फजीलतें रखता है और लैलतुल कद्र इसी अशरे में आती है। अल्लाह ने इस रात की बरकतों के बारे में पूरी एक सूरत नाजिल फरमाई-‘‘बेशक! हम ने इस कुरआन को लैलतुल कद्र में नाजिल किया और तुम्हें क्या मालूम कि लैलतुल कद्र हजार महीनों से बेहरत है। इस रात में फरिश्ते और जिब्रईल अपने रब की इजाजत से हर हुक्मे सलामती लेकर उतरते हैं और यह रात सरासर फजिर होने तक रहती है।’’
सही बुखारी व मुस्लिम में है कि अल्लाह के रसूल (सल0) ने इस रात की फजीलत के बारे में फरमाया- जिसने ईमान के साथ और सवाब के इरादे से लैलतुल कद्र में कयाम किया उसके सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। सही बुखारी में एक हदीस जो हजरत इबादा बिन सामत (रजि0) से रिवायत है- अल्लाह के रसूल (सल0) घर से निकले ताकि हमें लैलतुल कद्र के बारे में बतलाएं रास्ते में दो मुसलमान लड़ पड़े। आपने फरमाया तुम्हे लैलतुल कद्र बतलाने के लिए निकला था लेकिन फलां-फलां के लड़ने से लैलतुल कद्र का तअय्युन उठा लिया गया।

गौर करें कि दो मुसलमानों के लड़ने की वजह से तअय्युन उठाया गया इससे मालूम हुआ कि जहां लड़ाई झगड़ा हो वहां से अल्लाह की रहमत उठा ली जाती है। अल्लाह तआला ने अपनी हिकमत व रहमत से उसे रमजान के आखिरी अशरे में रखा है ताकि मुसलमान उसकी जुस्तजू में लगे रहें और उनकी तलब व हिम्मत बढ़े और आखिरी अशरे की ताक राते इबादत व रियाजत में गुजारे जैसा कि नबी करीम (सल0) का मामूल था कि आप आखिरी अशरे की ताक रातो मे बेदार रहते थे और अपने घर वालों को भी जगाते थे और बमुकाबला पहले दो अशरो के इस आखिरी अशरे में बहुत ज्यादा इबादत करते और इसी अशरे को आप (सल0) ने दोजख की आग से निजात का जरिया करार दिया है।

बुखारी शरीफ में हजरत आयशा सिद्दीका (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (सल0) ने फरमाया लैलतुल कद्र रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातो में तलाश करो। इसी तरह सिद्दीका (रजि0) ने आप (सल0) से सवाल किया कि अगर मैं लैलतुल कद्र पालूं तो क्या पढ़ूं तो आप (सल0) ने इरशाद फरमाया- यह पढ़ो- ऐ अल्लाह! बेशक तू माफ करने वाला है और माफी को पसंद फरमाता है लिहाजा मेरे गुनाहों को माफ फरमा दें।’’
लैलतुल कद्र रमजान के आखिरी अशरे में पांच ताक रातों में से कोई एक रात है। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि खुसूसियत और एहतमाम के साथ तस्बीह व तकदीस, तकबीर व तहलील और जिक्रे इलाही व तिलावते कुरआन और नफिल नमाजो में मशगूल रहे।

यह लैलतुल कद्र की सआदत खासतौर पर उम्मते मोहम्मदिया के लिए मखसूस हुई है ताकि इस उम्मत के लोग अपनी छोटी उम्रो के बावजूद बहुत ज्यादा सवाब हासिल कर लें। इसलिए एक रिवायत का हासिल यह है कि जब नबी करीम (सल0) को पिछली उम्मतों के लोगों की उम्रो की ज्यादाती के बारे में मालूम हुआ तो आप ने अफसोस का इजहार फरमाया। इसलिए अल्लाह ने आपको गौर आपकी उम्मत को लैलतुल कद्र की अजीम सआदत से नवाज दिया। जिस तरह रमजान तमाम महीनों से अफजल व बेहतर है उसी तरह रमजान का आखिरी अशरा दोजख की आग से आजादी दिलाता है।

नबी करीम (सल0) आखिरी अशरे में इबादत का खुसूसी एहतमाम फरमाते खुद एतकाफ करते और सहाबा और नेक बीवियों को भी एतकाफ की तलकीन फरमाते। बल्कि हजरत आयशा सिद्दीका (रजि0) से रिवायत है जब रमजान का आखिरी अशरा शुरू होता तो नबी करीम (सल0) कमर कस लेते और शब बेदारी फरमाते, जिक्र व दुआ में मशगूल रहते और अपने घर वालों को भी जगाते ताकि वह भी इन रातों की बरकतों और सआदतों से मुस्तफैज हो सकें।

लैलतुल कद्र का कुरआन व हदीस में कोई तअय्युन नही। आखिरी अशरे की ताक रातों में से केाई रात हो सकती है। (बुखारी) हजरत आयशा (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (सल0) फरमाते हैं कि तुम लैलतुल कद्र को रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातों में तलाश करो। लैलतुल कद्र हजार महीनों से बेहतर है। जिसमें जिब्रईल (अलै0) फरिश्तों के साथ अल्लाह के हुक्म से हर हुक्मे अम्न व सलामती लेकर उतरते हैं और यह रात फजर होने तक रहती है। जब लैलतुल कद्र आती है तो अल्लाह के हुक्म से हजरत जिब्रईल फरिश्तों के एक हुजूम के साथ जमीन पर उतरते हैं। फिर जिब्रईल के कहने से फरिश्ते अल्लाह के हुजूर खड़े होने वालों, बैठने वालों नमाज पढ़ने वालों और अल्लाह का जिक्र करने वालों का जिक्र करने वालों को सलाम करते हैं और दुआओं मे आमीन कहते है। यहां तक कि फजर का वक्त हो जाता है फजर को जिब्रइल फरिश्तों को पुकारते हैं- ऐ फरिश्तों! अब चलो तो फरश्तिे कहते है- ऐ जिब्रईल अल्लाह ने मोमिनों की हाजतों के बारे में क्या किया? तो हजरत जिब्रईल कहते हैं कि आज की रात अल्लाह ने सबपर रहमत की नजर फरमाई है और अल्लाह ने सब को माफ कर दिया और सब के गुनाह बख्श दिए, सिवाए चार किस्म के लोगो के। हजरत इब्ने अब्बास फरमाते हैं हमने पूछा अल्लाह के रसूल (सल0) वह कौन हैं। फरमाया- शराब पीने वाला, अपने वाल्दैन से कतअ ताल्लुक करने वाला, रिश्तेदारों के हुकूक अदा न करने वाला और दूसरे मुस्लिम भाइयों से बुग्ज व कीना और नफरत रखने वाला।

(बेहिकी)
इन लम्हात में गफलत लापरवाई या गलत काम न करें और न ही नुमाइशी तौर तरीके अपनाएं, यह तलबे मगफिरत की रात है। इसमें इंफिरादी इज्तिमाई भलाई की दुआएं करें। हमें अल्लाह के एहकाम से बागियाना रवैया भी खत्म करना चाहिए और कुरआन से ताल्लुक जोड़ना चाहिए। कुरआन की तिलावत के साथ तफसीर से कुरआन का मुताला करके अपनी इल्मी सलाहियत और ईमान में इजाफा करना चाहिए।(अब्दुल गफूर जाहिद)

———–बशुक्रिया: जदीद मरकज़