शब-ए-बरात एक ऐसी रात जिसके शुरु होते ही अल्लाह रब्बुल इज्जत पहले आसमान पर जलवा अफरोज होता है। इस रात के शुरु होने से पहले ही मौसम खुशगवार हो गया। दिनभर ठंडी हवा के झोंके जिस्म को ताजगी पहुंचाते रहे। रात इबादत से नूरानी हो गई।
सभी ने बारगाहे इलाही में हाथ उठाकर गुनाहों से बख्शिश तलब की। रोये-गिड़गिड़ाए और अल्लाह के सामने अपनी हाजत भी रखीं। दामन को खुशियों से भर देने की इल्तिजा की। अपने उन रिश्ते-नातेदारों के लिए जन्नत की मांगी, जो इस दुनिया से रुख्सत हो गए हैं।
अल्लाह तआला ने अपने बंदों के लिए यह रात रमजान से पहले आने वाले इस्लामी माह शाबान की 14 तारीख को अता फरमाई। यह बरकत और बख्शिश वाली रात है। इस रात को लेकर लोगों में सुबह से ही जोश / खुशी देखी गयी। जुमे की नमाज के दौरान मस्जिदों में इस रात की अहमियत पर रोशनी डाली गई। ईशा की नमाज के बाद मस्जिदों में नफिल और कजा नमाज अदा किए जाने का सिलसिला शुरु हो गया, जो तड़के फज्र तक चला।
बीच-बीच में दुआएं भी मांगी जाती रहीं। मुहल्लों में जलसों का प्रोग्राम भी हुआ। इस दौरान शब-ए-बरात की अहमियत बयां की जाती रही।
कब्रिस्तानों में दुआ-ए-मगफिरत
सभी कब्रिस्तान में शाम ढलने के बाद भीड़ पहुंचने का सिलसिला शुरु हो गया। लोगों ने अपने रिश्तेदारों की कब्र पर फूल पेश किए। अगरबत्तियां व मोमबत्तियां जलाकर फातिहा पढ़ी। कब्र वालों की रूह पर ईसाले सवाब पहुंचाया। खासतौर से शहर के बड़े कब्रिस्तान कल्लू मियां का तकिया, चौपुला का नूरी कब्रिस्तान, मुहल्ला कोट का कब्रिस्तान, कोहाड़ापीर, शाहबाद और मालियों वाली पुलिया के कब्रिस्तान में भारी भीड़ दिखाई दी।
दरगाह पर भी रौनक
ईशा की नमाज के बाद दरगाह आला हजरत पर भी भीड़ दिखाई दी। आला हजरत की कायम रजा मस्जिद में कजा व नफिल नमाज पढ़ी गई। दरगाह पर हाजरी दी। यह सिलसिला पूरी रात चला।
सुब्हानी मियां पहुंचे कब्रिस्तान
दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन मौलाना सुब्हान रजा खां सुब्हानी मियां और नायब सज्जादानशीन मौलाना अहसन रजा कादरी ने सिटी स्टेशन वाके कब्रिस्तान जाकर खानदान के लोगों की कब्र पर फातिहा पढ़ी। सभी के लिए मगफिरत की दुआ की।