शब-ओ-रोज़ की हिक्मत

और हम ने बना दिया है तुम्हारी नींद को बाइस आराम। नीज़ हमने बना दिया रात को पर्दापोश। और हम ने दिन को रोज़ी कमाने के लिए बनाया। (सूरतुन नबा-।९ ता ११)

अगर इन बारीकियों में ग़ोताज़नी की तुम्हें मोहलत नहीं तो ज़रा अपनी नींद और बेदारी की दो मुख़्तलिफ़ हालतों में ग़ौर करो। बेदारी की हालत में तुम दिमाग़ी या जिस्मानी मशक़्क़त करते हो, तुम थक कर चूर हो जाते हो, तुम में मज़ीद काम करने की सकत बाक़ी नहीं रहती, अचानक नींद तुम्हें अपनी आग़ोश में ले लेती है।

कुछ वक़्त के लिए तुम दुनिया विमाफ़ेहा से बेख़बर हो जाते हो। जुमला तफ़क्कुरात और अंदेशों से तुम्हें नजात मिल जाती है। कुछ देर सो लेने के बाद जब तुम बेदार होते हो तो दिमाग़ी दरमांदगी और जिस्मानी थकावट काफ़ूर हो चुकी होती है।

जोश-ओ-निशात की कैफ़ीयत ऊद कराती है और तुम अज़सर-ए-नौ जिहाद ज़िंदगी का आग़ाज़ कर देते हो। सुनो! हम ने ही तुम्हारे लिए नींद को आराम-ओ-राहत का ज़रीया बनाया है। अगर हम तुम्हें नींद की नेअमत से महरूम कर दें तो ये ज़िंदगी तुम्हारे लिए मौत से भी ज़्यादा तकलीफ़देह बन जाये और दुनिया की सारी लज़्ज़तें हेच हो जाएं।

ये मेरी क़ुदरत है, जिस ने नींद, जिसे तुम मौत की बहन कहा करते हो, उसी को हम ने क़ुव्वत-ओ-निशात का सरचश्मा बना दिया है। जिसकी क़ुदरत कामिला का ये आलम है, क्या इसके लिए तुम्हें दुबारा ज़िंदा करना नामुमकिन है? कुछ तो इंसाफ़ से काम लो।

ज़रा शब-ओ-रोज़ के इस तसलसुल पर ग़ौर करो, रात आती है तो सारी कायनात पर अंधेरे का पर्दा डाल दिया जाता है। जो काम दिन के उजाले में तुम नहीं कर सकते, वो रात की इस तारीकी में तुम बिलातकल्लुफ़ अंजाम दे सकते हो। दिन भर की तग-ओ-दो के बाद तुम घर वापस आते हो, अपने बाल बच्चों के साथ रात बसर करते हो, तुम्हें रात के तारीक सन्नाटों में जो आराम मिलता है और जो मीठी नींद तुम सोते हो, वो आराम और मीठी नींद दिन के उजाले में कहाँ नसीब होती है।